: भादरवो : २४८२ ‘आत्मधर्म’ : २११ :
श्री जैनदर्शन शिक्षणवर्ग – सोनगढ
• प्रथम श्रेणीनी परीक्षामां पूछायेला प्रश्नो अने तेना जवाबो •
(छ ढाळा तथा जैनसिद्धांत प्रवेशिका)
प्रश्न:– (१) आत्माना भेद अने दरेकना प्रभेदोनुं स्वरूप स्पष्टताथी लखो.
उत्तर:– (१)
आत्माना त्रणभेद छे– (१) बहिरात्मा (२) अंतरात्मा अने (३) परमात्मा.
(१) जे शरीरने ज आत्मा माने छे तथा शरीरनी क्रियाने पोतानी माने छे ते बहिरात्मा छे.
(२) भेदविज्ञान द्वारा आत्माने शरीरादिथी भिन्न जाणे छे ते अंतरात्मा–सम्यग्द्रष्टि छे. अंतरात्मा पण
जघन्य, मध्यम अने उत्कृष्ट एम त्रण प्रकारना छे. चोथा गुणस्थानवर्ती अव्रती सम्यग्द्रष्टि ते जघन्य अंतरात्मा
छे; सम्यग्दर्शन तथा आत्मज्ञान उपरांत व्रतधारी पंचमगुणस्थानवर्ती श्रावक, तेमज बाह्य–अंतर परिग्रहरहित
छठ्ठा गुणस्थानवर्ती महाव्रतधारी मुनि, तेओ मध्यम अंतरात्मा छे; अने सातमा गुणस्थानथी बारमा
गुणस्थान सुधी वर्तता आत्मध्यानमां लीन शुद्धोपयोगी मुनिवरो ते उत्तम अंतरात्मा छे.
आ त्रणे प्रकारना अंतरात्माओ मोक्षमार्गे विचरनारा छे.
(३) आत्माना परम सर्वज्ञपदने पामेला जीवो ते परमात्मा छे; तेना बे प्रकार छे; एक सकल
परमात्मा, अने बीजा निकलपरमात्मा.
शरीरसहित एवा अरिहंत परमात्मा ते सकल परमात्मा छे; तेमने लोकालोकवर्ती समस्त पदार्थोने
जाणनारुं केवळज्ञान, तेम ज केवळदर्शन अनंतसुख तथा अनंतवीर्य एवा चतुष्टय प्रगटी गया छे, तथा
ज्ञानावरणादि चार घातिकर्मो टळी गयां छे; चार अघातिकर्मो बाकी छे. तेओ केवळज्ञानादि अंतरंग लक्ष्मीथी
तथा समवसरणादि बहिरंग लक्ष्मीथी संयुक्त छे, परम औदारिक शरीर तेमने होय छे, पण क्षुधा, तृषा, रोग
वगेरे अढार महादोषो होता नथी. तेरमा अने चौदमा गुणस्थाने वर्तता आवा अरिहंत भगवान ते सकल
परमात्मा छे.
‘घनघातिकर्म विहीन ने चोत्रीस अतिशय युक्त छे,
कैवल्य ज्ञानादिक परमगुण युक्त श्री अर्हंत छे.’
शरीर रहित एवा सिद्धभगवान ते निकलपरमात्मा छे. तेमने ज्ञानावरणादि आठे कर्मोनो नाश थई
गयो छे, ने शरीरादि नोकर्म पण छूटी गया छे. तेओ लोकाग्रे शरीररहित बिराजे छे. ज्ञान ज तेमनुं शरीर छे,
ने सादि–अनंत अनंत आत्मिक अतीन्द्रियसुखने भोगवे छे. द्रव्यकर्म–भावकर्म–नोकर्म रहित आवा
सिद्धपरमात्मा ते निकलपरमात्मा छे.