Atmadharma magazine - Ank 155
(Year 13 - Vir Nirvana Samvat 2482, A.D. 1956)
(Devanagari transliteration).

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(१) निश्चय सम्यग्दर्शन (२) कुधर्म (३) व्यवहार सम्यग्दर्शन (४) कुगुरु (प) एकान्तवाद (६) निर्जरा
उत्तर (३) :–
(१) निश्चयसम्यग्दर्शन:– जगतना समस्त पर द्रव्योथी ने परभावोथी भिन्न पोताना शुद्ध आत्मानी
श्रद्धा करवी–अटळ रुचि करवी–अनुभवसहित प्रतीत करवी ते निश्चय सम्यग्दर्शन छे.
(२) कुधर्म:– ज्यां मिथ्यात्व तथा रागद्वेषरूप भावहिंसामां तेमज त्रसस्थावर जीवोना घातरूप द्रव्य–
हिंसामां धर्म मानवामां आवतो होय, अने सर्वज्ञदेव, निर्ग्रंथगुरु वगेरेना स्वरूपने विपरीत मानवामां आवतुं
होय ते कुधर्म छे.
(३) व्यवहार सम्यग्दर्शन:– जीव अजीवादि साते तत्त्वोने जेम छे तेम जाणीने श्रद्धा करवी, तथा
सर्वज्ञदेव, निर्ग्रंथगुरु अने अनेकान्तमय अहिंसा धर्म तेनी श्रद्धा करवी ते व्यवहार सम्यग्दर्शन छे.
(४) कुगुरु:– जेना अंतरमां मिथ्यात्वादि परिग्रह वर्ते छे, जेओ पोतानी महंतता अर्थे कुलिंग–खोटा
वेषो धारण करे छे, अथवा वस्त्रादि परिग्रह राखीने पण पोताने मुनि मनावे छे, –तेने कुगुरु जाणवा. कुगुरुओ
ते पथ्थरनी नौका समान छे, पथ्थरनी नौकानी माफक तेओ स्वयं तो भवसागरमां डुबे छे ने तेमनो आश्रय
(श्रद्धा–भक्ति) करनाराने पण ते डुबाडे छे.
(प) एकान्तवाद:– वस्तु तो नित्य–अनित्य ईत्यादि अनेक धर्मस्वरूप होवा छतां, बीजा धर्मोनी
अपेक्षा छोडीने तेने सर्वथा एक ज धर्मरूप कहेवी ते एकान्तवाद छे. जेम के ‘आत्मा नित्य ज छे’ –अथवा
‘आत्मा अनित्य ज छे’ –एम मानवुं ते बंने एकान्तवाद छे.
(६) निर्जरा:– सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रना बळथी पूर्वकर्मोनुं खरी जवुं ते निर्जरा छे. शुद्धोपयोगथी
आत्मामां एकाग्र थतां शुभ–अशुभ समस्त ईच्छाओ रोकाई जाय छे ते तप छे, तेना वडे कर्मो खरी जाय छे;
तेमां शुद्धोपयोग ते भाव निर्जरा छे, ने जडकर्मोनुं अंशे खरी जवुं ते द्रव्यनिर्जरा छे.
प्रश्न:– (३) ब:– नीचेना विषयो पूर्वापर संबंध आपीने समजावो–
(१)......... सो सम्यग्ज्ञान कला है. (२)......... शिवस्वरूप शिवकार.
(३)......... तिनही को सेवत गिनत चैन. (४)......... आतम–अनातम के ज्ञानहीन.
(५)......... जगजाल भ्रमण को देहु त्याग.
उत्तर:– (३) ब:– (१) निश्चय मोक्षमार्गरूप सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रनुं स्वरूप बतावतां पं.
दौलतरामजी छह ढाळामां त्रीजी ढाळमां कहे छे के–
परद्रव्यनितें भिन्न आपमें रुचिसम्यक्त्व भला है,
आप रूप को जाननो सो सम्यक्ज्ञान कला है...
परथी भिन्न पोताना शुद्धात्मानी रुचि ते सम्यक्त्व छे, अने पोताना आत्मस्वरूपनुं ज्ञान ते
सम्यग्ज्ञानरूपी कळा छे........
(२) छह ढाळाना मंगलाचरणमां ज कहे छे के–
तीन भुवन में सार वीतराग–विज्ञानता, शिवस्वरूप शिवकार नमहुं त्रियोग सम्हारिके.
राग–द्वेष रहित एवुं जे वीतरागी–विज्ञान ते त्रण भुवनमां सारभूत छे अने ते शिवस्वरूप एटले के
कल्याण–स्वरूप छे, तथा शिवकार एटले मोक्ष करावनारुं छे; तेथी ते वीतरागीविज्ञानने मन–वचन–कायाथी
सावधानी–पूर्वक नमस्कार करुं छुं.
(३) मिथ्याद्रष्टि जीवो तत्त्वोनी विपरीत श्रद्धा कई रीते करे छे ते बतावतां बीजी ढाळमां कहे छे के–
तन उपजत अपनी उपज जान, तन आप को नाश मान,
आदि प्रगट ये दुःख दैन, तिनही को सेवत गिनत चैन.
शरीर ऊपजतां पोताना आत्मानी उत्पत्ति माने छे ने शरीरनो नाश थतां पोताना आत्मानो नाश
माने छे. तथा रागादिक प्रगटपणे दुःख देनारा होवा छतां तेना सेवनथी सुख माने छे.
(४–५) बीजी ढाळमां, गृहीत मिथ्याचारित्रनुं स्वरूप बतावीने ते छोडवानो उपदेश आपतां कहे छे के–
जो ख्याति लाभ पूजादि चाह धरि करत विविध विध देह दाह,
आतम–अनातम के ज्ञानहीन जे जे करनी तन करन छीन;
ते सब मिथ्या चारित्र त्याग अब आतम के हित पंथ लाग,
जगजाल भ्रमण को देहु त्याग अब दौलत निज आतम सुपात्र.
[अनुसंधानार्थे जाुओ टाईटल पृष्ठ २]