Atmadharma magazine - Ank 156
(Year 13 - Vir Nirvana Samvat 2482, A.D. 1956)
(Devanagari transliteration).

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संतोनी शीतल छायामां
“अम बाळकोने चरणोमां राखजो. सर्व पर्याये करजो सहाय.
– वंदन करुं भावथी हुं.”
हे वीरनंदन...धर्मपिता गुरुदेव! जेम आपनो आत्मा आनंदमय चैतन्यप्रभाथी झळकी रह्यो छे तेम
आपनी मुद्रा पण प्रसन्नतामय ब्रह्मतेजथी चमकी रही छे. ब्रह्मजीवननी अद्भुत मोजमां आप महाली रह्या
छो....ने हाकलद्वारा अनेक जीवोने ए तरफ दोरी रह्या छो. आपनी वीरहाकल सांभळतां ज आत्मार्थी जीवो
झबकी ऊठे छे....अने संसारना विष जेवा विषयोने ठोकर मारीने आत्मिक–आनंदने साधवा माटे आपना
शरणे दोडया आवे छे.
.तारा चरणोमां रहीए सदाय.
[चित्रमां, परमपूज्य गुरुदेव अने बालब्रह्मचारी भाईओनुं द्रश्य छे. परम पूज्य गुरुदेवनी एक तरफ
ब्र. चंदुभाई तथा ब्र. अमुभाई छे.: अने बीजी तरफ ब्र. गुलाबचंदभाई तथा ब्र. हरिभाई छे. आ बधा
भाईओए लगभग दसवर्ष पहेलांं पू. गुरुदेव पासे ब्रह्मचर्य प्रतिज्ञा अंगीकार करी छे; अने पू. गुरुदेवनी
शीतल छायामां तेओ पोतानुं जीवन वीतावे छे.
]