Atmadharma magazine - Ank 156
(Year 13 - Vir Nirvana Samvat 2482, A.D. 1956)
(Devanagari transliteration).

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संतोनी शीतल छायामां
“अम बाळकोने चरणोमां राखजो.सर्व पर्याये करजो सहाय.
– वंदन करुं भावथी हुं.”
आज दिन सुवर्ण ऊग्यो गुरुजीना प्रतापथी, महा भाग्य खील्यां आज मारे नाथ आव्या आंगणे. अम
बाळना आधार गुरुजी, तरण तारण आप छो, मुज हृदय ऊछळी जाय हुं कई विध पूजुं नाथने? तुज गुण
अपरंपार प्रभुजी बाळको केम वर्णवे? आनंद हृदये ऊछळे प्रभु! आपनां दर्शन थकी. नाचुं बजावुं भक्तिथी
गुण गान गाउं प्रेमथी, आ बाळ विनवे नाथ प्रभुजी! चाहुं सेवा चरणनी. सत् पंथना प्रेरक प्रभु! जय जय
थजो तुज जगतमां, कल्याणकारी नाथ! मारां वंदन हो तुज चरणमां. चैतन्य तणी वृद्धि करी रहुं आत्मशक्तिमां
सदा, प्रेर्या करो ए बोध मुजने, गुरु कहान उर वसिया सदा. शुद्धात्मनी शक्ति प्रकाशी, स्वरूपगुप्त बनावजो,
मुजने तमारी साथ राखी ब्रह्मपदमां स्थापजो. शाश्वत तीर्थमां साथ राखी, दर्शन अनंत भगवंतनां, आ दासने
शिवपंथ स्थापी, राखो तमारां चरणमां.
[
चित्रमां पूज्य बेनश्रीबेन अने २० बालब्रह्मचारी बहेनोनुं द्रश्य छे. ब्रह्मचर्यप्रसंग निमित्ते आश्रममां
पू. गुरुदेवने आहारदान बाद थयेली स्तुति अहीं आपी छे.]