Atmadharma magazine - Ank 156
(Year 13 - Vir Nirvana Samvat 2482, A.D. 1956)
(Devanagari transliteration).

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: २२२ : आत्मधर्म (‘ब्रह्मचर्य अंक’–बीजो.) २४८२ : आसो :
त्यारबाद ब्रह्मचारीबेनो धर्ममाता पू. बेनश्री–बेनना आशीर्वाद लेवा गया..........त्यां विनयपूर्वक
दर्शनादि कर्या. अने पू. बेनश्री–बेने प्रसंगोचित शिखामण आपतां घणा वात्सल्यपूर्वक कह्युं : “तमे
आत्महितना हेतुए जीवन गाळजो.....देव–गुरु–शास्त्र प्रत्ये भक्ति अने बहुमान वधारजो....अरसपरस
एकबीजानी बेनो हो–ए रीते वर्तजो....ने वैराग्यथी रहेजो....एमां शासननी शोभा छे. आत्मानुं कल्याण केम
थाय...ने ते माटे पू. गुरुदेव शुं कहे छे–तेनो विचार करवो....स्वाध्याय अने मनन वधारवुं. ब्रह्मचर्यप्रतिज्ञाने
लीधे आत्माना विचारने माटे निवृत्ति मळे छे एम पू. गुरुदेव वारंवार कहे छे, माटे निवृत्ति लईने स्वाध्याय–
मनन करवुं. आम तमारे तमारा जीवनमां आत्मानुं कल्याण करवानुं लक्ष राखवुं.
पू. बेनश्रीबेननी आवी सरस हित–शिखामणथी बधाने घणी प्रसन्नता थई हती.
आ प्रसंग निमित्ते ‘आश्रम’ सुशोभित मंडप वगेरे शणगारथी शोभतो हतो....ने त्यां आखो दिवस
उल्लासभर्युं वातावरण छवाई गयुं हतुं. आजना भक्ति वगेरे कार्यक्रमो पण विशेष उल्लासथी थया हता. ब्र.
बेनो तरफथी आहारदान माटे विनंति थतां भादरवा सुद छट्ठना रोज पू. गुरुदेवे आश्रममां पधारीने भोजन
कर्युं हतुं. आ रीते पू. गुरुदेव द्वारा थई रहेली अनेकविध प्रभावनानो आ एक महान प्रसंग ऊजवायो हतो.
परम प्रभावी पू. गुरुदेव द्वारा परम हितकर जैनधर्मनी अने वीतरागी देव–गुरु–शास्त्रनी जे
विजयध्वजा आज फरकी रही छे तेने देखीने कोई पण धर्मवत्सल जिज्ञासु जीवनुं हृदय प्रमोदथी प्रफुल्लित थया
वगर रही शकतुं नथी.
अंतमां, सर्वे हितार्थी जीवोने माटे एवी भावना छे के, तेओ आपणा जैनशासनना आ एक अति
मूल्यवान रत्नने पारखे, तेना द्वारा थई रहेली जैनधर्मप्रभावनाने देखीने प्रमोदित थाय अने दरेक आत्मार्थी
जीव पोताना आत्महितने माटे जेटलो लई शकाय तेटलो लाभ अवश्य ल्ये. विवेकीजनो आत्महितना
अवसरमां प्रमाद करता नथी.
जय जनन्द्र!.जय गरुदव!.जय जनशसन!
प्रयत्नी दिशा
आत्माना प्रयत्न बाबतमां दिशा बतावतां पू. गुरुदेव घणा ऊंडाणमांथी कहे छे के–
आत्मस्वरूप शुं छे तेनो निर्णय करवानी धून जागवी जोईए......बधा न्यायोथी नक्की
करवानी लगन लागवी जोईए......बधाय पडखेथी अंदर नक्की न थाय त्यां सुधी सख न पडे.....
एम ने एम उपर टपके जतुं न करी देवाय. अंदर मंथन करी करीने एवो द्रढ निर्णय करे के जगत
आखुं फरी जाय तोय पोताना निर्णयमां शंका न पडे. आत्माना स्वरूपनो आवो निर्णय करतां
वीर्यनो वेग तेना तरफ ज वळे छे. अंतरमां पुरुषार्थनी दिशा सूझी गई पछी तेने मार्गनी मुंझवण
थती नथी....पछी तो तेनी आत्मानी लगनी ज तेनो मार्ग करी ल्ये छे. आगळ शुं करवुं तेनो
पोताने ज ख्याल आवी जाय छे.....‘हवे मारे शुं करवुं’ एवी मुंझवण तेने थती नथी.
अहो! आत्मा पोते पोतानुं हित साधवा जाग्यो.........ने............हित न साधी शके एम
बने ज केम? आत्मानो अर्थी थईने आत्मानुं हित साधवा जे जाग्यो ते जरूर आत्महित साधे ज.