Atmadharma magazine - Ank 156
(Year 13 - Vir Nirvana Samvat 2482, A.D. 1956)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २४८२ आत्मधर्म (‘ब्रह्मचर्य अंक’–बीजो.) : २२१ :
नथी, मारे तो बैरांओ साथे परिचय नथी, तेथी बेनोनो आ प्रसंग तो खरेखर आ बे बेनोने आभारी छे.
बेनोनी छत्रछायामां आ ब्रह्मचारी बेनोनुं रक्षण ने पालन थाय छे, ते बेनोनो प्रभाव छे. आ बेनोनां
(बेनश्री चंपाबेन तथा बेन शांताबेनना) आत्मा अलौकिक छे.......... आ काळे आवा बेनो पाक्या ते मंडळनी
बेनुंना महाभाग्य छे..... जेनां भाग्य हशे ते तेमनो लाभ लेशे.”
त्यारबाद समस्त संघ तरफथी नूतन ब्रह्मचारी बहेनोने अभिनंदन आपतां विद्वान भाईश्री
हिंमतलालभाईए कह्युं हतुं के–आजे मंगळ दिवस छे.........एक साथे १४ बेनोए ब्रह्मचर्यप्रतिज्ञा लीधी ते
गुरुदेवनो महा प्रभाव छे.......... आनंदनिधान चैतन्यभगवानना दर्शन करीने तेनुं जे स्वरूप पू. गुरुदेव
बतावे छे ते झीलीने, “अमे अमारा आवा आनंदनिधानने केम वरीए!.....ने आ दुःखद भवसागरथी केम
तरीए?”–एवी भावनाथी, “ज्यां सुधी ए आनंदधाम हाथ न लागे त्यां सुधी ते आनंदधामने स्पर्शीने
आवती संतोनी वाणी सांभळ्‌या ज करीए.......... संतोनी छायामां रहीने ए आनंदधामनी झांखी करावनारी
वाणीनुं मंथन कर्या ज करीए” –आवी भावनाथी आजे आ बेनोए ब्रह्मचर्यप्रतिज्ञा लीधी छे. ते माटे तेमने
अत्यंत अभिनंदन घटे छे...........जे भावनाथी तेमणे आ कार्य कर्युं छे ते भावनामां आगळ वधीने तेओ
पुरुषार्थ वडे आत्महित साधे–एम ईच्छीए.....आपणे सौए पण ए करवा जेवुं छे के जेथी अनंत भवभ्रमणथी
छूटीए......आ बेनोए जे विराट प्रयत्न आदर्यो छे ते माटे तेमने फरीने अभिनंदन!....तेओए तेमना कुटुंबने
अजवाळ्‌युं छे.......ने मुमुक्षुमंडळनुं गौरव वधार्युं छे.”
–आ उपरांत, आ प्रसंगे तार अने पत्रोद्वारा केटलाक अभिनंदनना संदेशाओ आव्या हता ते पण वांची
संभळाव्या हता. तेमां ईंदोरथी प्रतिष्ठाचार्य पंडित श्री नाथुलालजी अभिनंदन देतां पोताना पत्रमां प्रमोदपूर्वक
लखे छे के–
“श्री पूज्य स्वामीजी से श्री दसलक्षणधर्म के प्रारंभिक दिवस भाद्रपद शुक्ला ५ को प्रातः आजीवन
ब्रह्मचर्यप्रतिज्ञा ग्रहण करने वाली १४ कुमारी बहनों के प्रति मैं हार्दिक आदरभाव प्रगट करता हूँ।
“बालब्रह्मचारी तीर्थंकर श्री नेमिनाथ और श्री पार्श्वनाथ के पश्चात् श्री महावीरस्वामीका यह
तीर्थकाल है तथा बालब्रह्मचारी श्री पूज्य कानजीस्वामी की अपूर्व वाणीका प्रभाव है कि जिनके आदर्शका
मूर्तरूप सौराष्ट्र के अनेक तरुणा बालब्रह्मचारी बन्धुओंमें द्रष्टिगोचर हो रहा है। इसी प्रकार ब्राह्मी–सुन्दरी
और राजीमतीके आदर्शको कार्यान्वित करनेवाली सोनगढमें विद्यमान २० बालब्रह्मचारिणी बहनें तथा
युवानस्थामें ही ब्रह्मचर्य अंगीकार करनेवाले अनेक दम्पती भगवान महावीरके तीर्थकी प्रभावना कर उसे
सार्थक बना रहे हैं। निःसंदेह आज यह भौतिकता पर आध्यात्मिकताकी विजय है।
...... धन्य है श्री पूज्य स्वामी जी, और श्री पूज्य बहनश्री बहन!”
अभिनंदन–संदेश पछी श्री जैनस्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट तरफथी शेठ श्री प्रेमचंदभाईए बहेनोने
अभिनंदन आपतां, परम कृपाळु गुरुदेवनो महिमा वर्णव्यो हतो अने ‘आ बहेनो आत्मानी शांतिने लक्षमां
राखीने आगळ वधो’ –एवी भावनारूप आशीर्वाद आप्या हता; तेम ज दरेक बहेनने एकेक साडलो तथा
चांदीनो ग्लास भेट आपवामां आव्या हता.
त्यारबाद, ब्रह्मचर्यप्रतिज्ञा लेनार बधा बहेनोना वालीओए पोतपोताना तरफथी जिनमंदिरमां तेमज
कुमारिका–ब्रह्मचर्याश्रम वगेरेमां दाननी रकमो जाहेर करी हती. आ ब्रह्मचर्यप्रतिज्ञाना अवसर उपर जुदाजुदा
अनेक गामोथी हजार उपरांत लोको आव्या हता..... ने दरेक गामना श्री संघोए पोतानुं वात्सल्य बताव्युं हतुं.
अनेक लोकोए कुमारिका–ब्रह्मचर्याश्रमना फंडमां हजारो रूपियानी रकमो लखावी हती. सुतार अने रबारी
सुद्धांए रकमो लखावीने आ प्रसंगे पोतानो प्रमोद जाहेर कर्यो हतो.
अंतमां, जयजयकारपूर्वक आ प्रसंगनी पूर्णता थतां ब्रह्मचारीबेनो तरफथी श्रीफळनी लाणी थई हती.