Atmadharma magazine - Ank 156
(Year 13 - Vir Nirvana Samvat 2482, A.D. 1956)
(Devanagari transliteration).

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: २२० : आत्मधर्म (‘ब्रह्मचर्य अंक’–बीजो.) २४८२ : आसो :
भक्ति आदि कार्यो तो तेमने माटे सहज छे. आ बहेनोए अनेक वर्षना सत्समागम अने अभ्यास बाद
पोतानी मेळे ज ब्रह्मचर्य–जीवन गाळवानो निर्णय कर्यो छे, ते माटे कोईए तेमने कह्युं नथी, एटलुं ज नहि
परंतु ज्यारे तेमणे ब्रह्मचर्य माटेना पोताना विचारो जणाव्या त्यारे तेमनी द्रढतानी कसोटी करीने ज तेमना
वडीलोए तेमने संमति आपी छे. आ बहेनो पोतानी भूमिकाने लक्षमां राखीने रात्रीभोजनत्याग, कंदमूळ
वगेरे अभक्ष्य त्याग ईत्यादि योग्य संयमपूर्वक रहे छे; अने निवृत्तिपूर्वक पोताना ध्येयने पहोंची वळवा माटे
शक्ति अनुसार प्रयत्न कर्या करे छे. संतोनी छायामां आत्मसाधना वडे तेओ पोताना शीघ्र ध्येयने प्राप्त
करो..... एवी भावना छे.
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ब्रह्मचर्य–प्रतिज्ञा लेवाना दिवसे (भादरवा सुद पांचमे) सवारमां भक्तमंडळ सहित बधा बहेनोए
भक्तिपूर्वक श्री देव–गुरु–शास्त्रनां दर्शन–स्तुति कर्या हता, तेम ज जिनमंदिरमां श्री जिनेन्द्रभगवाननुं तथा
तथा दसलक्षणधर्मनुं समूहपूजन कर्युं हतुं. त्यार बाद आजना प्रसंग निमित्ते श्री जिनवाणी मातानी रथयात्रा
बेन्डवाजां सहित नीकळी हती. ब्रह्मचर्य लेनारा चौद बहेनो सहित रथयात्रा गाममां फरीने ‘श्री प्रवचनमंडपे’
आवी हती.... त्यां प्रवचनमां पू. गुरुदेवे वैराग्यपूर्वक कह्युं हतुं के “आ शरीर तो धूळनुं ढींगलुं छे तेमां क्यांय
आत्मानुं सुख नथी.......तेना उपरथी द्रष्टि हठावीने, चैतन्यस्वभावमां एकाग्र थतां अंदरथी शांतिनुं एक झरणुं
आवे छे! जीव जे शांति लेवा मागे छे ते कोई संयोगोमांथी नथी आवती पण पोताना स्वभावमांथी ज आवे
छे.” पू. गुरुदेवनुं अध्यात्मरस–झरतुं आ प्रवचन सभाजनोने वैराग्यनी धूनमां डोलावतुं हतुं. ए चैतन्यस्पर्शी
प्रवचननुं श्रवण कर्या बाद चौदे बहेनो एकसाथे ब्रह्मचर्यप्रतिज्ञा लेवा माटे हाथ जोडीने ऊभा थया....ने
सभाजनो उत्सुकताथी ए वैराग्यप्रसंग नीहाळी रह्या....
परमपूज्य गुरुदेवे प्रथम मांगलिक संभळाव्युं; अने पूर्वे कोई कुदेव–कुगुरुना सेवनथी के साचा
देवगुरुना अविनयथी, के तीव्र हिंसादि परिणामथी जे दोषो लाग्या होय तेनुं “मिच्छामि दुक्कडं” कराव्युं हतुं.
त्यार बाद.... “नानी उमरमां आ बहेनो ब्रह्मचर्यप्रतिज्ञा ल्ये छे ते बहु सारुं काम करे छे” एम कहीने, पू.
गुरुदेवे ब्रह्मचर्यप्रतिज्ञा आपी हती के–तमारे चौदेय दीकरीओए पंचपरमेष्ठीनी साखे, चार तीर्थनी साखे ने
आत्मानी साखे जावज्जीवपर्यंत–आखी जिंदगी ब्रह्मचर्य पाळवुं.
बेनो हाथ जोडीने विनयथी सांभळी रही छे, ने गुरुदेव कहे छे : निवृत्तिथी आत्माना विचारना
अवकाश माटे आ ब्रह्मचर्य निमित्त छे. आत्माना लक्षमां आगळ वधवा माटे आ पण एक निमित्त छे.
शास्त्रोमां ब्रह्मचर्यना वखाण घणा आवे छे; द्रष्टि सहितनी वात तो जुदी छे, अने त्यारे पहेलांं पण पात्रजीवने
ब्रह्मचर्यादिनो रंग होय छे.
ए प्रमाणे बेनोनी ब्रह्मचर्यप्रतिज्ञा पूरी थया बाद पू. गुरुदेवे सभाने संबोधीने कह्युं के–“आजे आ
दीकरीयुंए ब्रह्मचर्य–प्रतिज्ञा लीधी ते बहु सरस कर्युं. आ बेनो घणा वर्षथी अहीं रहीने तत्त्वनुं श्रवण करे
छे.....अभ्यास करे छे...........ने समजणना लक्षे आ काम करे छे; धर्मनुं मूळस्वरूप शुं छे ने आ
ब्रह्मचर्यप्रतिज्ञानी मर्यादा केटली छे ते तेमना ख्यालमां छे. पहेलांं छ बेनुंए प्रतिज्ञा लीधी हती ने आजे आ
चौद बेनुंए प्रतिज्ञा लीधी, आम वीस बेनो थया. आवो प्रसंग घणा वर्षे बने छे. रामजीभाई तो कहे छे के
‘दीकरीयुंए डंका मार्या छे.” बीजाओए आनुं अनुकरण करवा जेवुं छे. घणा तो पचास पचास वर्षे पण वृत्तिने
वाळी नथी शकता, त्यारे आ तो नानी नानी उमरमांथी आ जातनी जवाबदारी ल्ये छे ते बेनोए घणी हिंमत
करी छे..........कोईए तेमने कह्युं नथी पण तेओने पोतानी मेळे ज आ जातना भाव थया छे...........आ तो
सहजना सोदा छे......” (पू. गुरुदेवे आटलुं कह्या बाद हिंमतभाई भाषण करवा उभा थया.........पण त्यां तो
अचानक एक वात याद आवतां पू. गुरुदेवे कह्युं–)
“हा! जुओ, एक वात रही गई. आ बेनुंनो आवो समूह तैयार थयो ते तो आ बेनोने
(बेनश्रीबेनने) आभारी छे; केमके हुं तो बेनुंनी वातमां क्यांय पडतो