Atmadharma magazine - Ank 156
(Year 13 - Vir Nirvana Samvat 2482, A.D. 1956)
(Devanagari transliteration).

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: २२६ : आत्मधर्म (‘ब्रह्मचर्य अंक’–बीजो.) २४८२ : आसो :
सुखबुद्धिनो भ्रम थई गयो तेने ब्रह्मचर्य न कहेवाय. संयोगोमां सुखनो भ्रम ते महान अब्रह्म छे.
अतीन्द्रिय आनंदथी भरेलो चैतन्यब्रह्म आत्मा असंयोगी तत्त्व छे तेने चूकीने, संयोगमां ज तेनी तीव्र
वृत्ति छे तेने तो चैतन्यना अनुभवनी पात्रता नथी. चैतन्यना अतीन्द्रियसुखनो रंग जेने लागे तेने
ईन्द्रियविषयोनो रंग ऊडी जाय. संयोगी चीजमां जे वृत्तिनो तीव्र वेग करी नांखे छे तेने असंयोगी स्वभाव
तरफ वळवानो अवकाश रहेतो नथी. स्वभावनी रुचि थाय अने बाह्यविषयो तरफनी वृत्तिनो वेग मोळो न
पडे–एम बने ज नहीं.
आ ब्रह्मचर्यप्रसंगथी आत्माना विचार माटे विशेष निवृत्ति मळे छे. अवकाश लईने आत्माना
विचारमां आगळ वधवा माटे आ एक निमित्त छे.
१४. समकिती धर्मात्माए आत्माना अतीन्द्रिय आनंदनो स्वाद चाख्यो छे; ते जाणे छे के मारो आत्मा
ज्ञान–आनंदस्वरूप छे, तेमां एकाग्र थवुं ते ज मारो धर्म छे ने तेमां ज मारी शांति छे, ए सिवाय बाह्यलक्षे
पुण्य–पापनी जे वृत्तिओ थाय तेमां मारी शांति नथी, अने संयोगोमां पण स्वप्नेय मारुं सुख नथी. चौद
ब्रह्मांडमां कोई मारो आनंद आपनार नथी, मारो आनंद मारामां ज छे. ईन्द्रपदना वैभवमां के ईन्द्राणीना
सहवासमां पण मारो आनंद नथी. आवा भानपूर्वक चैतन्यना अतीन्द्रियआनंदना वेदन पासे, ईन्द्राणी जेवी
नवयौवना स्त्रीने नीरखतां ते कष्टानी पूतळी भासे छे, तेमां स्वप्नेय सुख भासतुं नथी, ते भगवान समान
छे. पोताना परमात्मस्वरूपनुं सहज सुख तेना वेदनमां आवी गयुं छे, तेथी चौद ब्रह्मांडना कोई पण विषयमां
जरापण सुखबुद्धि तेने थती नथी;–ते भगवान समान छे, अने अल्पकाळमां पूर्णानंदने साधीने ते साक्षात्
परमात्मा थई जशे.
मोंघा मानवजीवनुं कर्तव्य
समुद्रनां पाणीथी पण जेनी तृषा न छीपी तेनी तृषा एक टीपुं पाणीथी तूटवानी नथी;
तेम आ जीवे स्वर्गादिना भोग अनंतवार भोगव्या छतां तृप्ति न थई, तो सडेला ढींगला
समान आ मानवदेहना भोगथी तेने कदापि तृप्ति थवानी नथी. माटे भोग खातर जिंदगी
गाळवा करतां मनुष्यजीवनमां ब्रह्मचर्य पाळवुं अने निवृत्तिथी तत्त्वनो अभ्यास करवो ते ज
आ मोंघा मानवजीवनमां करवा जेवुं उत्कृष्ट कर्तव्य छे.
घणा भूख्या गीधने रोटलानो कटको मळ्‌यो, पण पाणीमां तेनुं प्रतिबिंब जोतां मांसना
कटकानी लालचे ते पण खोयो; तेम आ संसारमां अनंत जन्म–मरणना प्रवाहमां तणाता जीवने
अल्प मानवजीवननो कटको मळ्‌यो, तेने मूर्ख जीव विषयोमां वेडफी नांखे छे. अरे! आ मोंघा
जीवनने विषयभोगनी लालसामां वेडफी नांखवा करतां वैराग्य लावी ब्रह्मचर्य पाळवुं अने
निवृत्तिथी तत्त्वनो अभ्यास करवो ते आ मोंघा जीवननुं महा कर्तव्य छे.
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देहने खातर अनंत जीवन व्यतीत थया..... संतो कहे
छे के हवे आत्मार्थने खातर आ जीवन अर्पण करो.