Atmadharma magazine - Ank 156
(Year 13 - Vir Nirvana Samvat 2482, A.D. 1956)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २४८२ आत्मधर्म (‘ब्रह्मचर्य अंक’–बीजो.) : २२९ :
जाय तेम नथी. आ समजवा माटे स्वभावनी रुचिपूर्वक धीरजथी सतत प्रयत्न करवो जोईए. जेणे
आत्मस्वभावनुं भान कर्युं तेने ते भान सदाय रह्या करे छे, खातां–पीतां क्यारेय आत्मा भूलातो
नथी. सदाय आवुं आत्मभान रह्या करे–ए ज करवानुं छे. आवुं भान थया पछी ज्ञानीने ते गोखवुं
नथी पडतुं, तेनी सहजदशा ज एवी थई जाय छे.
[६]
अहो, आ वात समजवा माटे अंतरमां अपूर्व होंसथी आत्मानी दरकारपूर्वक अभ्यास करवो
जोईए. स्त्रीनो प्रेमी तेनी वात केवी होंसथी सांभळे छे!–छतां त्यां तो कांई सुख नथी. आ तो
आत्मानी मुक्ति मळे तेवी वात छे, मोक्षना अभिलाषीने आ समजवा माटे अंतरमां होंस ने
उत्साह जोईए. आ सम्यग्दर्शननी रीत समज्या वगर क्यांय आरो के उगारो नथी. जे जीव आ
समजशे ते जीव मोहनो नाश करीने, क्रमेक्रमे अकंपपणे स्वभावमां आगळ वधीने, चारित्रदशा
प्रगट करीने, केवळ ज्ञान अने सिद्धपदने पामशे.
• • • •
पू. गुरुदेव सम्यक्त्वनो उपाय बतावे छे
चर्चामां एक जिज्ञासु भाईए पूछयुं :
विकल्पद्वारा सात तत्त्वनी प्रतीतरूप आंगणे आव्यो पण अंदर प्रवेश न कर्यो–एटले शुं?
उत्तरमां पू. गुरुदेवे कह्युं :
‘हुं जीव छुं, अजीव माराथी भिन्न छे’ ईत्यादि प्रकारे सात तत्त्व विकल्पथी जाण्या......पण
ते विकल्प सम्यग्दर्शननुं कारण नथी. विकल्पमां एकता करीने तेना ज वेदनमां जीव अटक्यो,
पण विकल्पथी जुदो पडीने स्वभावना वेदनमां न आव्यो तेथी सम्यग्दर्शन न थयुं. केमके
सम्यग्दर्शननी आदिमां (–शरूआतमां) विकल्प नथी पण आत्मा ज छे, एटले के विकल्पना
आश्रयथी सम्यग्दर्शननी शरूआत थती नथी पण आत्माना ज आश्रयथी सम्यग्दर्शननी
शरूआत थाय छे.
अनंतवार विकल्प सुधी आवीने तेमां ज अटकी गयो पण स्वभावमां न वळ्‌यो तेथी
एम कहेवाय के आंगणे आव्यो पण अंदर प्रवेश न कर्यो.
सम्यग्दर्शननी आदिमां मध्यमां के अंतमां विकल्प नथी; अंतर्मुख थईने प्रतीत करतां
आत्मा पोते ज सम्यग्दर्शनादिनुं कारण थाय छे, तेथी सम्यग्दर्शननी आदिमां मध्यमां ने अंतमां
आत्मा ज छे. पहेलांं विकल्प हतो माटे सम्यक्त्व थयुं–एम नथी. विकल्प वखते पण निर्णयमां
तो एम हतुं के आ विकल्प मारा सम्यक्त्वनुं साधन नथी, हजी आ विकल्पथी आगळ जईने
आत्मामां ऊंडा ऊतरवानुं छे, हजी स्वभावमां अंतर्मुख थवानुं छे. अंतर्मुख थतां आत्मा पोते
ज साधन थईने सम्यक्त्व थाय छे.
[रात्रिचर्चामांथी : श्रावण वद बीज]