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हशे. आ विलासी उच्छृंखलताना काळमां, मानवो पण मुश्केल पडे एवो आ प्रसंग छे. परम पूज्य गुरुदेवना
प्रतापे अनेक प्रकारनी प्रभावना थई रही छे तेमांनो आ एक प्रकार छे. पूज्य गुरुदेव पोते आत्मानुभव करी
मुमुक्षुओने ज्ञानमूर्ति आत्मानां दर्शन करवानो एकधारो पावनकारी उपदेश आपी रह्या छे. “ते ज्ञानमूर्तिनां
दर्शन करी भवसागर केम तरीए?” एवी भावनावाळा जीवोने ते दर्शन न थाय त्यां सुधी तेनी ज गडमथल
करतां करतां अनेक प्रकारना शुभ राग आवे छे. गुरुदेवना पुनित प्रतापे गामोगाम अनेकानेक जीवो ज्ञानमूर्ति
आत्मानी प्राप्ति अर्थे आध्यात्मिक वांचन करे छे, विचार करे छे, मंथन करे छे, आत्मस्वरूपनी झंखना करे छे.
आ एक ऊंचा प्रकारनो शुभ भाव छे. वळी गुरुदेवे उपदेशेला सर्वज्ञस्वभावी आत्मानो अनुभव न थाय त्यां
सुधी अनेक जीवोने सर्वज्ञ जिनेश्वरदेवो प्रत्ये भारे भक्ति–उल्लासनो प्रमोदभाव आवे छे, आ रीते गुरुदेवना
प्रतापे उल्लासपूर्ण भक्तिनो पण भारे प्रवाह वह्यो छे. ‘स्त्री–पुत्र–धनादिथी भिन्न एवो तुं परम पदार्थ छे,’
एवा गुरुदेवना स्वानुभवयुक्त उपदेशथी अनेक जीवोने धननी तृष्णा घटी अनेक गामोमां भव्य जिनमंदिरोनां
निर्माण थयां छे. वळी गुरुदेवना निमित्ते जुदा जुदा जीवोने योग्यतानुसार जुदा जुदा प्रकारना सद्गुणो
केळवाया छे. गुरुदेवना शुद्ध उपदेशना प्रतापे आनंदधाम आत्मानी ओळखाणनो यथाशक्ति प्रयत्न करनार
जीवोमां केटलाक पात्र जीवोने वैराग्य प्रगटी ब्रह्मचर्य–अंगीकारना शुभभाव पण आवे छे. ए रीते अनेक
जीवोए सजोडे ब्रह्मचर्य अंगीकार कर्युं छे अने केटलाक तो आजन्म ब्रह्मचारी रह्या छे.
छे–एम जाणतां छतां तेमणे आ जीवन ब्रह्मचर्य अंगीकार कर्युं छे. घणा लोको तो ब्रह्मचर्यनुं फळ मोक्ष ज माने
छे अने कहे छे के ‘एक भवपर्यंत ए असिधारा जेवुं दुःखमय ब्रह्मचर्य गमे तेम करीने पाळी लईए तो कायमनुं
मुक्तिसुख मळी जाय.’ शुभभावनुं आवुं मोटुं फळ माननाराओमां पण ब्रह्मचर्य अंगीकार करनार अत्यंत जूज
नीकळे छे. पूज्य गुरुदेवनी स्वानुभवझरती वाणी तो