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करवा जतां–जो के शुभभावोने तेओ बंधरूप समजे छे तो पण–तेमने विधविध शुभभावो आवी जाय छे. ए
रीते चौद चौद कुमारिका बहेनोए (–पहेलांंनां छ बहेनो साथे गणतां वीश वीश कुमारिका बहेनोए) असिधारा
समान मनाती महान प्रतिज्ञा अंगीकार करी छे.
करवाना भावथी तथा पूज्य बेनश्री–बेननी कल्याणकारिणी छायामां निरंतर रहेवानी भावनाथी लेवामां
आवतुं आ ब्रह्मचर्य ए जुदी वात छे.
सतत सुलभ–सुखमय–साहजिक लागतुं अने अब्रह्मचर्य असिधारा समान दुर्लभतर–अति दुःखमय लागतुं!
नमस्कार छे ते सहजानंदमय मुनिदशाने!
विरल थई गयो छे. भावप्रधानता विनानी थोथां जेवी क्रियाओ जैनशासनमां जड घालीने बेठी छे, जाणे के
शुष्क क्रियाकांड ते ज जैनधर्म होय! आवा आ काळमां परम पूज्य गुरुदेवे सहजानंदमय आत्मानो अनुभव करी
‘जैनधर्म दर्शनमूलक छे अने मोक्षमार्ग सहजानंदमय छे, कष्टमय नथी’ एवी जोरदार घोषणा करीने अनेक
जीवोने आत्मदर्शनना पुरुषार्थमां प्रेर्या अने तेना परिणामे जिनप्ररूपित यथार्थ सहज मुक्तिमार्ग प्रकाशित थयो
तथा शास्त्रस्वाध्याय–देव–भक्ति–वैराग्य–ब्रह्मचर्यादि शुभ भावोमां पण नूतन तेज प्रगट्युं. जिनोपदिष्ट शीतळ
अध्यात्मज्ञानथी शून्य जेवा आ बळबळता काळने विषे तीर्थधाम सोनगढमां अध्यात्मजळनो जोरदार शीतळ
फुवारो ऊडी रह्यो छे, जेनी शीतळ फरफर–शीकर–छांट सारा भारतवर्षमां दूरदूरनां अनेक नानां मोटां गामोमां
फेलाईने अनेक सुपात्र जीवोने शीतळता अर्पे छे, ए अध्यात्मफुवाराना शीतळ छांटणांना प्रतापे ज ए विशाळ
अध्यात्म–वडलानी शीतळ छायाना प्रभावे ज आ बहेनोने आजीवन ब्रह्मचर्यनो शुभभाव प्रगट्यो छे.
आत्मसाक्षात्कार छे....निश्चय करी आ ज सत्संग–सत्पुरुष छे एवो साक्षीभाव उत्पन्न थयो होय ते जीवे तो
अवश्ये करी प्रवृत्तिने संकोचवी, पोताना क्षणे क्षणे, कार्ये कार्ये अने प्रसंगे प्रसंगे तीक्ष्ण उपयोगे करी जोवा,
जोईने ते परिक्षीण करवा; अने ते सत्संगने अर्थे देह त्याग करवानो योग थतो होय तो ते स्वीकारवो.
छे अने मुमुक्षुमंडळनुं गौरव वधार्युं छे. तेओ आत्महितमां आगळ आगळ वधो!
आवे त्यां सुधी ते पदना आस्वादमांथी झरती परमोपकारी गुरुदेवनी कल्याणकारिणी शीतळ वाणीनुं श्रवण–
मनन हो, तेमां रहेला गहन भावोने समजवानो उद्यम हो के जेथी निज पद पामी अनंत दुःखमय भवसागरने
तरी जईए.