Atmadharma magazine - Ank 156
(Year 13 - Vir Nirvana Samvat 2482, A.D. 1956)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २४८२ आत्मधर्म (‘ब्रह्मचर्य अंक’–बीजो.) : २४३ :
ज्ञानवैराग्यनां सींचन

नेमिनाथ कुमारनो रथ नजीक ने नजीक आवी रह्यो छे............
भगवानना रथने झरुखामांथी झांखी रहेली राजीमती एकाएक सखीने कहे छे के अरे मारी
साहेली! तुं जलदी माता–पिता पासे जईने कहे के भगवान नेमिकुमारे पशुओनो करुण पोकार
सांभळीने वैराग्यथी रथ पाछो फेरवी नाख्यो छे, नवसर हार तोडी नांख्या छे, ने हाथमांथी
कंकणना दोरडा छोडी नांख्या छे......एणे मनमां दीक्षा लेवानो निश्चय करी लीधो छे..........
(.......... राजीमती गंभीरताथी कहे छे:–) हे सखी! मातापिताने कहेजे के हवे अमे पण संजम
धारण करशुं.... अने गढगीरनार जईने कर्म फंदने काटवानो उद्यम करशुं.
–राजीमतीनी दीक्षानो केवो सरस वैराग्य–प्रसंग!!
(१४ कुमारीका बेनोनी ब्रह्मचर्यदीक्षा पहेलांंनी सौथी छेल्ली भक्तिनो आ भाग छे. आवा ज्ञान–
वैराग्यनुं सींचन अने पोषण पू. बेनश्रीबेन निरंतर करी ज रह्या छे. संतोनी छायामां निरंतर ज्ञान–वैराग्यनी
आवी भावनाना वातावरणमां वसनारा १४–१४ कुमारीका बेनोए पू. गुरुदेव पासे ज्यारे ब्रह्मचर्यनी दीक्षा
लीधी–ए प्रसंग पण केवो वैराग्यप्रेरक हतो!!)