Atmadharma magazine - Ank 156
(Year 13 - Vir Nirvana Samvat 2482, A.D. 1956)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २४८२ आत्मधर्म (‘ब्रह्मचर्य अंक’–बीजो.) : २४५ :
बस! बंने साधक सखीओनुं मिलन थयुं...पू. गुरुदेवनी छायामां बंने बहेनो एकबीजाना
जीवनमां एवा गुंथाई गया–जाणे के श्रद्धा अने शांतिनुं मिलन थयुं! ....जाणे के वैराग्य अने
भक्तिनुं मिलन थयुं.......जाणे के आनंद अने ज्ञाननुं मिलन थयुं!
ए ८९नी सालथी आजसुधी बंने बेनो भेगां ज छे......एमनी एकरसता देखीने ज्यारे कोई पूछे छे
के ‘आप बंने सगी बहेनो छो!’–त्यारे गंभीरताथी मोढुं मलकावीने तेओ कहे छे के “ना....सगी बहेनो करतांय
विशेष छीए...”... अने खरेखर एम ज छे. एमना देह भले बे देखाय छे पण बे देह वच्चे आत्मा तो जाणे
एक ज होय!–एवी एमना हृदयनी एकता छे.

परम पूज्य गुरुदेवने आ बंने बेनो प्रत्ये पुत्रीवत् अपार वात्सल्य छे......अने आ बंने बहेनोना
रोमेरोममां पू. गुरुदेव प्रत्ये अपार उपकारनी जे भक्ति भरेली छे तेनुं वर्णन करवानी कांई चेष्टा करवी ते
मात्र ‘देडकाना ठेकडा’ जेवी ज गणाशे. टूंकामां एटलुं ज कहेवुं बस थशे के–पू. गुरुदेवना आत्मस्पर्शी
अध्यात्मोपदेशने यथार्थपणे आत्मामां झीलीने, पवित्र ज्ञानथी अने वैराग्यथी, विनयथी अने अर्पणताथी,
भक्तिथी अने प्रभावनाथी, सर्व प्रकारे तेओए पू. गुरुदेवनी अने जिनशासननी शोभा वधारी छे.