Atmadharma magazine - Ank 156
(Year 13 - Vir Nirvana Samvat 2482, A.D. 1956)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 39 of 41

background image
: २४६ : आत्मधर्म (‘ब्रह्मचर्य अंक’–बीजो.) २४८२ : आसो :
पू. गुरुदेव कहे छे के आ काळे आवा बेनो पाकया छे ते मंडळनी बेनुंना महाभाग्य छे. जेनां भाग्य हशे
ते तेमनो लाभ लेशे. एमनुं ज्ञान, एमनो वैराग्य, एमनी अर्पणता, एमना संस्कारो, –ए बधुं लोकोने
समजवुं कठण पडे तेम छे.
• • •
सं. १९९१मां पू. गुरुदेवे प्रगटरूपे ज्यारे संप्रदायनुं परिवर्तन कर्युं अने सौराष्ट्रभरमां चारे कोरथी
विरोधना ढोलकां वागवा मांडयां, त्यारे आ बंने बहेनोए “ए तो बधा आठ दिवस बोलीने बेसी जशे,–बधुं य
आठ दिवसमां ठरी जशे” एम कहीने जे हिंमत बतावी छे, अने जरूर पडे तो पोताना अंगत दागीना पण
वापरी नांखवा तैयार थईने जे अर्पणता बतावी छे,–तेनी कथनी आजेय भक्तोना हैयांने रोमांचथी
हचमचावी मुके छे!
त्यार पछी सं. १९९३थी मांडीने आजसुधी तो घणाय अद्भुत प्रसंगो बन्या छे, परंतु ए बधानुं
सविस्तर वर्णन आ स्थाने थई शके तेम नथी.
हवे तो, परमपूज्य गुरुदेवना महान प्रभावथी हजारो जीवो भक्तिपूर्वक गुरुदेवना पावन उपदेशने
अनुसरी रह्या छे, गामेगाम जिनमंदिरो ने मंडळो स्थपाई चूक्या छे, धार्मिक प्रवृत्तिओ पण दिने दिने वृद्धिगत
थती जाय छे. गामेगामना मुमुक्षुमंडळो पोतानुं संचालन पू. बेनश्रीबेननी सलाह–सूचनानुसार करी रह्या छे,
तेओश्रीनी आज्ञा बधा भक्तजनो प्रमोदपूर्वक शिरोधार्य करे छे.
प्रतिष्ठामहोत्सव वगेरे विशेष प्रभावनाना कार्यो तेओ केवी कुशळताथी ने भक्तिथी शोभावे छे ते तो ते
प्रसंगो नजरे जोनारने ज ख्याल आवे.
छेल्ला केटलाक वरसोथी सोनगढमां श्राविका–ब्रह्मचर्याश्रम बंधायेल छे; तेमां पूज्य बंने बहेनो रहे छे,
तेओ ज आश्रमना अध्यक्ष छे; अने पू. गुरुदेवना उपदेशथी प्रभावित थयेला अनेक मुमुक्षु बहेनो, पोताना
गाम अने कुटुंबने छोडीने, आत्महितनी भावनथी पू. बेनश्रीबेननी शीतळ हूंफमां पोतानुं जीवन वीतावे
छे.....ने पू. बेनश्रीबेन ज्ञान–वैराग्यना सींचनद्वारा तेओना जीवननुं घडतर करे छे. ए घडतरना प्रतापे २०
कुमारिका बेनोए तो बालब्रह्मचर्यनी प्रतिज्ञा लई लीधी छे.
जयवंत वर्तो. आ काळना श्राविक – शिरोमणि बंने धर्ममाताओ.
आनंदनी स्फुरणा
अहो! संतोना श्रीमुखेथी आत्माना आनंदनी के सम्यग्दर्शननी वात सांभळतां पण
आत्मार्थी जीवोने केवो उल्लास आवे छे! संतोना श्रीमुखथी नीकळतुं ए आनंदनुं झरणुं गमे
तेवी वेदनाने भूलावी देवा समर्थ छे.
अहा! सम्यग्दर्शन ए केवी परमशरणभूत वस्तु छे के गमे ते प्रसंगे तेने याद करतां ज
जगत आखानुं दुःख भूलाई जाय ने आत्मामां आनंदनी स्फूरणा जागे.–तो ए सम्यग्दर्शनना
साक्षात् वेदननी शी वात!!
खरेखर, ए आनंदमग्न समकिती संतोनी जगतमां बलिहारी छे.
• • • • • •