
नथी, तेनुं भोक्तापणुं तेमने विरमी गयुं छे; तेमने तो आनंदनुं भोक्तापणुं छे.
तेनुं अभोक्तापणुं रहेतुं नथी, एटले के मिथ्यात्व थई जाय छे. अज्ञानी हर्ष–शोक वगेरेमां तन्मय थईने तेने ज
भोगवे छे, तेनाथी जुदा ज्ञानस्वभावनुं जरापण वेदन तेने रहेतुं नथी.
विकारना भोगवटा जेटलो आत्मा नथी पण त्रिकाळ तेनो अभोक्ता छे एटले के ज्ञान–आनंद वगेरे
अनंतशक्तिनो पिंड आत्मा छे–एम अनेकांतस्वरूप–अनंतशक्तिनो पिंड आत्मा बतावीने, अज्ञानीने एकांत
बुद्धि छोडावीने आत्माना स्वभावमां लई जवानी आ वात छे. भाई, तुं तारी आत्मशक्तिनो विश्वास कर,
तारी शक्ति नानी (क्षणिक विकार जेवडी) नथी, तारी शक्ति तो मोटी छे, अनंत–शक्तिथी तारो आत्मा महान
छे, विकारनो अभोक्ता थईने स्वभावनी शांतिनो भोगवटो करवानी तारामां शक्ति छे; तारामां ज आवी
शक्ति छे तो बीजानी तारे शी जरूर छे? माटे तुं तारी शक्तिनो विश्वास कर, तो ते शक्तिना अवलंबने शांति
प्रगटे ने अशांतिनुं वेदन छूटी जाय. तारी शक्तिना अविश्वासने लीधे ज तुं बहारमां भटकीने संसारमां रखडयो
छे. तने पोताने तारी शक्तिनो विश्वास न आवे तो बीजुं कोई तने शांति आपी शके तेम नथी केमके तारी
शांति बीजा पासे नथी.
त्यां तो जाणे आत्मा खोवाई ज गयो. पण अरे भाई! एवा संयोग–वियोग संसारीने न आवे तो शुं सिद्धने
आवे? सिद्ध भगवानने संयोग–वियोग के हर्ष–शोक न होय. नीचली दशामां तो ते होय.–परंतु ते होवां छतां,
हुं तो तेनाथी भिन्न ज्ञानस्वभावी सिद्धसमान छुं, जेम सिद्धभगवाननो आत्मा संयोग–वियोगथी ने हर्ष–
शोकथी अत्यंत जुदो छे तेम मारो आत्मस्वभाव पण संयोग–वियोगथी ने हर्ष–शोकथी जुदो छे, मारो
निजभाव तो ज्ञानमात्र ज छे–एम शुद्धआत्माने ध्येयरूपे राखीने तेना तरफ वलण करे तो तेनुं परिणमन
सिद्धदशा तरफ थया करे, तेने विकारनुं वेदन क्षणे क्षणे टळतुं जाय ने सिद्धभगवान जेवा अतीन्द्रिय आनंदनुं
वेदन खीलतुं जाय.–आवी साधक दशा छे, ने आ ज धर्म छे.
१४८ प्रकृतिमांथी घातिकर्मो, वेदनीय, गोत्र तेम ज तीर्थंकर–नामकर्म वगेरे ७८ प्रकृतिओने “जीवविपाकी”
गणी छे, अने अहीं कहे छे के जीव तेनो अभोक्ता छे. त्यां गोमट्टसार वगेरेमां तो जीवनी ते ते प्रकारनी
अशुद्धपर्याय साथेनो निमित्त–नैमित्तिक संबंध बताववा कथन छे, अने अहीं जीवनो शुद्धस्वभाव बताववो
छे. जीवना शुद्ध ज्ञायकस्वभावमां विकारनो के कर्मनो पाक छे ज नहि, जीवना स्वभावमां तो ज्ञानने
आनंदनो ज विपाक थाय छे.
ते अनुकूळ संयोगथी के ते तरफना साताभावना वेदनथी पोताना ज्ञायकस्वभावने जुदो ज अनुभवे छे.