Atmadharma magazine - Ank 157
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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: २२८ : ‘आत्मधर्म’ २४८२ : आसो :
कदी थती नथी एटले तेमने मूंझवण थती नथी, शंका थती नथी. माटे खरेखर ते चिंताना के हर्षना भोक्ता
नथी, तेनुं भोक्तापणुं तेमने विरमी गयुं छे; तेमने तो आनंदनुं भोक्तापणुं छे.
वळी हर्षशोकना जे परिणाम छे ते ज्ञातापरिणामथी जुदा ज छे, एटले ज्ञानी तेनो भोक्ता नथी पण
ज्ञाता ज छे. तेने हर्ष–शोकना अल्प परिणाम थाय छे तेमां ते तन्मय नथी थतो; जो तेमां तन्मय थई जाय तो
तेनुं अभोक्तापणुं रहेतुं नथी, एटले के मिथ्यात्व थई जाय छे. अज्ञानी हर्ष–शोक वगेरेमां तन्मय थईने तेने ज
भोगवे छे, तेनाथी जुदा ज्ञानस्वभावनुं जरापण वेदन तेने रहेतुं नथी.
क्षणिक विकार जेटलो ज पोताने मानीने तेनो ज जे भोक्ता थाय छे ते जीव अनंतधर्मोना पिंडरूप
अनेकान्तस्वभावमांथी खसीने एकांत तरफ ढळ्‌यो छे एटले एकांत अशुद्धआत्मा ज तेने भासे छे. क्षणिक
विकारना भोगवटा जेटलो आत्मा नथी पण त्रिकाळ तेनो अभोक्ता छे एटले के ज्ञान–आनंद वगेरे
अनंतशक्तिनो पिंड आत्मा छे–एम अनेकांतस्वरूप–अनंतशक्तिनो पिंड आत्मा बतावीने, अज्ञानीने एकांत
बुद्धि छोडावीने आत्माना स्वभावमां लई जवानी आ वात छे. भाई, तुं तारी आत्मशक्तिनो विश्वास कर,
तारी शक्ति नानी (क्षणिक विकार जेवडी) नथी, तारी शक्ति तो मोटी छे, अनंत–शक्तिथी तारो आत्मा महान
छे, विकारनो अभोक्ता थईने स्वभावनी शांतिनो भोगवटो करवानी तारामां शक्ति छे; तारामां ज आवी
शक्ति छे तो बीजानी तारे शी जरूर छे? माटे तुं तारी शक्तिनो विश्वास कर, तो ते शक्तिना अवलंबने शांति
प्रगटे ने अशांतिनुं वेदन छूटी जाय. तारी शक्तिना अविश्वासने लीधे ज तुं बहारमां भटकीने संसारमां रखडयो
छे. तने पोताने तारी शक्तिनो विश्वास न आवे तो बीजुं कोई तने शांति आपी शके तेम नथी केमके तारी
शांति बीजा पासे नथी.
बहारमां अनुकूळ–प्रतिकूळ संयोग–वियोग आवे त्यां हर्षशोक करीने तेना वेदनमां अज्ञानी एवो
एकाकार थई जाय छे के तेनाथी भिन्न आत्मानुं अस्तित्व ज भूली जाय छे. जराक प्रतिकूळतानी भींस आवे
त्यां तो जाणे आत्मा खोवाई ज गयो. पण अरे भाई! एवा संयोग–वियोग संसारीने न आवे तो शुं सिद्धने
आवे? सिद्ध भगवानने संयोग–वियोग के हर्ष–शोक न होय. नीचली दशामां तो ते होय.–परंतु ते होवां छतां,
हुं तो तेनाथी भिन्न ज्ञानस्वभावी सिद्धसमान छुं, जेम सिद्धभगवाननो आत्मा संयोग–वियोगथी ने हर्ष–
शोकथी अत्यंत जुदो छे तेम मारो आत्मस्वभाव पण संयोग–वियोगथी ने हर्ष–शोकथी जुदो छे, मारो
निजभाव तो ज्ञानमात्र ज छे–एम शुद्धआत्माने ध्येयरूपे राखीने तेना तरफ वलण करे तो तेनुं परिणमन
सिद्धदशा तरफ थया करे, तेने विकारनुं वेदन क्षणे क्षणे टळतुं जाय ने सिद्धभगवान जेवा अतीन्द्रिय आनंदनुं
वेदन खीलतुं जाय.–आवी साधक दशा छे, ने आ ज धर्म छे.
आत्मानी शक्तिओनुं आ वर्णन चाले छे; आ शक्तिओना वर्णन द्वारा आत्मानो स्वभाव बताववो
छे. आ बावीसमी शक्तिमां कहे छे के समस्त कर्म तरफना भावोनो आत्मा अभोक्ता छे. जुओ, कर्मनी
१४८ प्रकृतिमांथी घातिकर्मो, वेदनीय, गोत्र तेम ज तीर्थंकर–नामकर्म वगेरे ७८ प्रकृतिओने “जीवविपाकी”
गणी छे, अने अहीं कहे छे के जीव तेनो अभोक्ता छे. त्यां गोमट्टसार वगेरेमां तो जीवनी ते ते प्रकारनी
अशुद्धपर्याय साथेनो निमित्त–नैमित्तिक संबंध बताववा कथन छे, अने अहीं जीवनो शुद्धस्वभाव बताववो
छे. जीवना शुद्ध ज्ञायकस्वभावमां विकारनो के कर्मनो पाक छे ज नहि, जीवना स्वभावमां तो ज्ञानने
आनंदनो ज विपाक थाय छे.
सातमी नरकमां कोईने समकित थाय ते पण एम निःशंक जाणे छे के आ नरकना संयोगनो के ते
तरफना असाताभावनो भोगवटो मारा ज्ञायकस्वभावमां नथी; ए ज प्रमाणे सवार्थसिद्धिमां रहेला जीवो पण
ते अनुकूळ संयोगथी के ते तरफना साताभावना वेदनथी पोताना ज्ञायकस्वभावने जुदो ज अनुभवे छे.
जुओ भाई! बहारना संयोग–वियोगनो प्रेम छोडीने