Atmadharma magazine - Ank 157
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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: २३० : ‘आत्मधर्म’ २४८२ : आसो :
आ छे निर्दोष थवानो उपाय
आत्मानी क्षणिक हालतमां दोष थतां अज्ञानीने तो पोतानो आखो
आत्मा ज दोषस्वरूप भासे छे, पण ते ज वखते आत्मानो स्वभाव
गुणथी भरेलो छे–ते तेने भासतो नथी, एटले ते दोषने टाळी शकतो
नथी. ज्ञानी तो क्षणिक दोष वखते पण पोताना त्रिकाळी गुण स्वभावने
जाणतो थको, ते गुणना जोरे दोषनो नाश करी नांखे छे.
ज्यां दोष थाय छे त्यां ज गुण भर्या छे;
ज्यां अल्पज्ञता छे त्यां ज स्वभावमां सर्वज्ञतानुं सामर्थ्य पडयुं छे.
ज्यां दुःख थाय छे त्यां ज त्रिकाळी सुखगुण रहेलो छे.
ज्यां क्रोध थाय छे त्यां ज त्रिकाळी क्षमागुण भरेलो छे.
–आ रीते क्षणिक दोष अने त्रिकाळीगुण बंने एक साथे वर्ती रह्यां
छे, तेमां गुणस्वभावने ओळखीने तेनुं अवलंबन लेतां दोष टळी जाय छे
ने गुणनी निर्दोष–दशा प्रगटे छे.
–पू. गुरुदेव
‘अप्प स परमप्प’
जेओ परमात्मा थया तेमने पण पूर्वे बहिरात्मदशा हती, पछी
पोतानी परमात्मशक्तिनुं श्रवण करतां तेनुं बहुमान लावीने, तेनी सन्मुख
थतां ते बहिरात्मपणुं टळ्‌युं ने अंतरात्मपणुं थयुं; पछी स्वभावमां लीन
थईने तेओ परमात्मा थया. आ रीते पहेलां जेओ बहिरात्मा हता तेओ
ज पोतानी शक्ति अवलंबने अंतरात्मा थईने परमात्मा थया. आवी
परमात्मा थवानी ताकात दरेक आत्मामां छे.