Atmadharma magazine - Ank 157
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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: आसो : २४८२ ‘आत्मधर्म’ : २३१ :
• आत्मानी लगनी •
पुत्रना वियोगमां माता झूरे छे. आत्मार्थी जीव आत्माना माताना वियोगमां पुत्र झूरे छे.
अनुभव माटे झंखे छे.
[श्री समाधिशतक गाथा ५३ उपरना प्रवचनमांथी]

जे आत्मार्थी छे, जेने आत्मानो अनुभव करवानी लगनी लागी छे तेणे तो वारंवार आत्मस्वरूपनी ज
भावना करवी जोईए. संतो पासे जईने तेनुं ज श्रवण करवुं, तेनो ज प्रश्न करवो, तेनी ज कथा करवी. तेनी ज
ईच्छा–भावना करवी, तेमां ज तत्पर थवुं, तेमां ज उत्साहित थवुं, तेनो ज आदर करवो, तेमां ज श्रद्धा–ज्ञानने
जोडवा.–आ रीते सर्व प्रकारथी आत्मस्वरूपना अनुभवनो प्रयत्न करतां जरूर तेनी प्राप्ति थाय छे. अंतरमां
जयारे आवो प्रयत्न जागे त्यारे ज आत्मानी लगनी लागी कहेवाय.
अहीं घणा बोल कहीने ए बताव्युं छे के जिज्ञासुने आत्मस्वरूपना अनुभवनी झंखना ने धगश केटली
ऊग्र होय? जेम एकनो एक वहालो पुत्र खोवाई गयो होय त्यां माता तेने केवा केवा प्रकारे शोधे?–अने जो
कोई तेनो पत्तो मळवानी वात संभळावे तो केवा उत्साहथी सांभळे! तेम जिज्ञासुने आत्माना स्वरूपना निर्णय
माटे एवी लो लागी छे के वारंवार तेनुं ज श्रवण, तेनी ज पृच्छा, तेनी ज ईच्छा, तेमां ज तत्परता ने तेना ज
विचार करे छे. जगतना विषयोनो रस तेने छूटतो जाय छे ने आत्मानो ज रस वधतो जाय छे.–आवा द्रढ
अभ्यासथी ज आत्मानी प्राप्ति (अनुभव) थाय छे.
जिज्ञासुने आत्मानी केवी लगनी होय ते बताववा अहीं माता–पुत्रनो सरस दाखलो आप्यो छे: जेम
कोईनो एकनो एक वहालो पुत्र खोवाई जाय तो ते केवी रीते तेने ढूंढे छे!! जे मळे तेने ए ज वात कहे के
‘कयांय मारो पुत्र?... जाणकारोने ए ज पूछे के ‘कयांय मारो पुत्र देख्यो!!’ –एक मिनिट पण तेनो पुत्र तेना
चित्तमांथी खसतो नथी. दिनरात तेनी प्राप्ति माटे तीव्र उत्सुकताथी झूरे छे.........तेम आत्मस्वरूपनी जेने
जिज्ञासा जागी छे ते आत्मार्थी जीव सत्समागमे तेने ढूंढे छे, तेनी ज वात पूछे छे के ‘प्रभो! आत्मानो
अनुभव केम थाय!!’