लो–लगनी लागी छे. आवी लगनीथी द्रढ प्रयत्न करतां जरूर आत्मानो अनुभव थाय छे. माटे ते ज करवा जेवुं
छे–एम आचार्यदेवनो उपदेश छे.
प्रयत्न ने चिंता कर्या करे छे; जेने पुत्रनो प्रेम छे ते पुत्रनी पाछळ केवा झूरे छे?–खावा पीवामां कयांय चित्त
लागे नहि ने ‘मारो...पुत्र’ एवी झूरणा ते निरंतर कर्या करे छे! तेम आ चैतन्यस्वरूप आत्मानी जेने खरेखरी
प्रीति छे ते तेनी प्राप्ति माटे दिनरात झूरे छे एटले के तेमां ज वारंवार प्रयत्न कर्या करे छे... विषय–कषायो तेने
रुचता नथी..... एक चैतन्य सिवाय बीजे कयांय तेने चेन पडतुं नथी... एनी ज भावना भावे छे, एनी ज
वात ज्ञानीओ पासे पूछे छे...एनो ज विचार करे छे.
कयांय जंप वळतो नथी... केमके तेनी रुचि मातानी गोदमां पोषाणी छे; तेम जिज्ञासु आत्मार्थी जीवनी रुचि
नथी...दिनरात ए ज चर्चा...ए ज विचार... ए ज रटणा एने माटे ज झूरणा! जुओ, आवी अंदरनी धगश
जागे त्यारे आत्मानी प्राप्ति थाय. अने आत्मानी जेने एकवार प्राप्ति थई गई–अनुभव थई गयो ते
समकिती पण पछी वारंवार तेना आनंदनी ज वार्ता–चर्चा–विचार अने भावना करे छे. ‘आत्मानो आनंद
आवो..... आत्मानी अनुभूति आवी... निर्विकल्पता आवी’–एम तेनी ज लगनी लागी छे. ज्ञान ने आनंद
ज मारुं स्वरूप छे–एम जाणीने एक तेनी ज लो लागी छे, तेमां ज उत्साह छे, बीजे कयांय उत्साह नथी.
आवी लगनीपूर्वक ज्ञानानंदस्वरूप आत्मानी भावनाथी–द्रढ प्रयत्नथी–अज्ञान छूटीने ज्ञानमय निजपदनी
प्राप्ति थाय छे.
अनुग्रहपूर्वक अमने उपदेश आप्यो...शुं उपदेश आप्यो?
निजवैभव प्रगट कर्यो.
अहीं दर्शावीए छीए. आनाथी विपरीत उपदेश वडे जो कोई धर्म मनावतुं होय
तो भगवाननो अने संतोनो अनुग्रह तेना उपर छे ज नहि.