Atmadharma magazine - Ank 157
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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: २३२ : ‘आत्मधर्म’ २४८२ : आसो :
आत्मस्वरूपने प्राप्त करवानी भावना दिनरात वर्ते छे, एक क्षण पण तेने भूलतो नथी... एक आत्मानी ज
लो–लगनी लागी छे. आवी लगनीथी द्रढ प्रयत्न करतां जरूर आत्मानो अनुभव थाय छे. माटे ते ज करवा जेवुं
छे–एम आचार्यदेवनो उपदेश छे.
‘रुचि अनुयायी वीर्य’ एटले के जेने आत्मानी खरेखरी रुचि अने धगश जागी होय तेनो प्रयत्न
वारंवार आत्मा तरफ वळ्‌या करे छे. जेम–देहमां जेने आत्मबुद्धि छे ते देहने सरखो राखवा रातदिन तेनो
प्रयत्न ने चिंता कर्या करे छे; जेने पुत्रनो प्रेम छे ते पुत्रनी पाछळ केवा झूरे छे?–खावा पीवामां कयांय चित्त
लागे नहि ने ‘मारो...पुत्र’ एवी झूरणा ते निरंतर कर्या करे छे! तेम आ चैतन्यस्वरूप आत्मानी जेने खरेखरी
प्रीति छे ते तेनी प्राप्ति माटे दिनरात झूरे छे एटले के तेमां ज वारंवार प्रयत्न कर्या करे छे... विषय–कषायो तेने
रुचता नथी..... एक चैतन्य सिवाय बीजे कयांय तेने चेन पडतुं नथी... एनी ज भावना भावे छे, एनी ज
वात ज्ञानीओ पासे पूछे छे...एनो ज विचार करे छे.
जेम माताना वियोगे नानुं बाळक झूरे छे ने तेने कयांय चेन पडतुं नथी, कोई पूछे के तारुं नाम शुं?–
तो कहे छे के ‘मारी बा’ खावानुं आपे तो कहे के ‘मारी बा!’–एम एक ज झूरणा चाले छे...माता वगर तेने
कयांय जंप वळतो नथी... केमके तेनी रुचि मातानी गोदमां पोषाणी छे; तेम जिज्ञासु आत्मार्थी जीवनी रुचि
एक आत्मामां ज पोषाणी छे, आत्मस्वरूपनी मने प्राप्ति केम थाय–ए सिवाय बीजुं कांई तेने रुचतुं
नथी...दिनरात ए ज चर्चा...ए ज विचार... ए ज रटणा एने माटे ज झूरणा! जुओ, आवी अंदरनी धगश
जागे त्यारे आत्मानी प्राप्ति थाय. अने आत्मानी जेने एकवार प्राप्ति थई गई–अनुभव थई गयो ते
समकिती पण पछी वारंवार तेना आनंदनी ज वार्ता–चर्चा–विचार अने भावना करे छे. ‘आत्मानो आनंद
आवो..... आत्मानी अनुभूति आवी... निर्विकल्पता आवी’–एम तेनी ज लगनी लागी छे. ज्ञान ने आनंद
ज मारुं स्वरूप छे–एम जाणीने एक तेनी ज लो लागी छे, तेमां ज उत्साह छे, बीजे कयांय उत्साह नथी.
आवी लगनीपूर्वक ज्ञानानंदस्वरूप आत्मानी भावनाथी–द्रढ प्रयत्नथी–अज्ञान छूटीने ज्ञानमय निजपदनी
प्राप्ति थाय छे.
द्धत्त्त्
समयसारनी पंचमी गाथामां आचार्य कुंदकुंदस्वामी कहे छे के–
सर्वज्ञभगवानथी मांडीने अमारा गुरुपर्यंतना पर–अपर गुरुओए
अनुग्रहपूर्वक अमने उपदेश आप्यो...शुं उपदेश आप्यो?
–‘शुद्धात्मतत्त्वनो उपदेश आप्यो.’
सर्वज्ञथी मांडीने अमारा गुरुपर्यंत सर्वे गुरुओए अनुग्रहपूर्वक–प्रसन्न
थईने शुद्धात्मतत्त्वना उपदेशरूप प्रसादी अमने आपी...ने अमे ते प्रसादी झीलीने
निजवैभव प्रगट कर्यो.
भगवाने अने संतोए प्रसन्न थईने–अमने स्वीकारीने–अनुग्रहपूर्वक
प्रसादीरूपे जे शुद्धात्मतत्त्वनो उपदेश आप्यो ते ज अमे अमारा निजवैभवथी
अहीं दर्शावीए छीए. आनाथी विपरीत उपदेश वडे जो कोई धर्म मनावतुं होय
तो भगवाननो अने संतोनो अनुग्रह तेना उपर छे ज नहि.
[समयसार गा. ५ उपरना व्याख्यानमांथी.]