(१)
(२)
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(४)
: आसो : २४८२ ‘आत्मधर्म’ : २३३ :
स.प्र.भ.त स्त.त्र
(शार्दूलविक्रिडित)
यत्स्वर्गावतरोत्सवे यदभवज्जन्माभिषेकोत्सवे
यद्दीक्षाग्रहणोत्सवे यदखिलज्ञानप्रकाशोत्सवे
यन्निर्वाणगमोत्सवे जिनपते : पूजाद्भुतं तद्रवे:
संगीतस्तुतिमंगलै: प्रसरतां मे सुप्रभातोत्सव:।
(वसंततिलका)
श्रीमन्नतामरकिरीटमणिप्रभाभि:
आलीढपादयुग दूर्घरकर्मदूर,
श्रीनाभिनंदन जिनाजित शंभवाख्य
त्वद्धयानतोस्तु सततं मम सुप्रभातं।
छत्रत्रय प्रचलचामरवीज्यमान
देवाभिनंदन मुने सुमते जिनेन्द्र,
पद्मप्रभारुणमणिद्युतिभासुरांग
त्वद्धयानतोस्तु सततं मम सुप्रभातं।
अर्हन् सुपार्श्व कदलीदलवर्णगात्र
प्रालेयतारगिरिमौक्तिकवर्ण गौर,
चंद्रप्रभ स्फटिक पांडुर पुष्पदंत
त्वद्धयानतोस्तु सततं मम सुप्रभातं।
(गुजराती भावार्थ)
(१) श्री जिनेन्द्रदेवना, १स्वर्गमांथी माताना गर्भमां आववाना समये करवामां आवेला उत्सवमां,
२जन्माभिषेक वखतना उत्सवमां, ३दीक्षाग्रहण वखतना उत्सवमां, ४केवळज्ञान प्रगट थयुं ते वखतना उत्सवमां
अने ५मोक्षप्राप्ति वखतना उत्सवमां,–ए रीते पंचकल्याणक प्रसंगमां श्री जिनेन्द्रभगवाननी जेवी आश्चर्यकारी
पूजा थई तेवा प्रकारना मंगळरूप गायन अने स्तुतिथी मारो सुप्रभातनो उत्साह थाओ.
(२) अणिमा वगेरे विभूति सहित नम्रीभूत थयेला देवोना मुगटोनां मणिओनी प्रभाथी जेमनां बंने
चरणो आलिंगित छे, अने दुर्घर कर्मोने जेमणे दूर करी नांख्या छे, एवा हे आदिनाथ, अजितनाथ अने
संभवनाथ भगवान! आपना ध्यानथी मने सदा सुप्रभात हो... अर्थात् मारो सुप्रभातनो समय हंमेशा
आपना ध्यानमां व्यतीत हो.
(३) त्रण छत्र जेमना शिर उपर शोभी रह्या छे तथा जेमनी बंने बाजु चोसठ चामर ढळे छे एवा हे
अभिनंदन अने सुमतिनाथ जिनेन्द्र!–
तथा जेमनुं शरीर पद्मरागमणिनी प्रभासमान सुशोभित छे एवा हे पद्मप्रभ जिनेन्द्र!–
–आपना ध्यानथी मने सदा सुप्रभात हो.
(४) केळना पान जेवो जेमना शरीरनो रंग छे एवा हे सुपार्श्वजिन!–
हिमालय पर्वत, चांदीनो विजयार्द्ध पर्वत अने मोती समान जेमना उज्जवळ (शुभ्र) वर्ण छे एवा हे
चंद्रप्रभ जिनेन्द्र!–
अने स्फटिकसमान निर्मळ कांतिना धारक एवा हे पुष्पदंत भगवान!–
–आपना ध्यानथी मने सदा सुप्रभात हो.