Atmadharma magazine - Ank 157
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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: २३४ : ‘आत्मधर्म’ २४८२ : आसो :
संतप्तकांचनरुचे जिनशीतलाख्य
श्रेयान्विनष्ट दुरिताष्ट कलंकपंक,
बंधुकबंधुर रुचे जिनवासुपूज्य
त्वद्धयानतोत्तु सततं मम सुप्रभातं
उद्ड दर्पकरिपो विमलामलांग
स्थेमन्ननंतजिदनंत सुखांबुराशे,
दुष्कर्मकल्मषविवर्जित धर्मनाथ
त्वद्धयानतोस्तु सततं मम सुप्रभातं
देवामरी कुसुमसन्निभ शांतिनाथ
कुंथोदयागुणविभूषणभूषितांग,
देवाधिदेव भगवन्नरतीर्थनाथ
त्वद्धयानतोस्तुं सततं मम सुप्रभातं
यन्मोहमल्लमदभंजन मल्लिनाथ
क्षेमंकरावितथशासन सुव्रताख्य,
यत्संपदा, प्रशमितो नमिनामधेय
त्वद्धयानतोस्तु सततं मम सुप्रभातं
तापिच्छगुच्छरुचिरोज्ज्वल नेमिनाथ
घोरोपसर्गविजयिन् जिन पार्श्वनाथ,
स्याद्वादसूक्तिमणिदर्पण वर्द्धमान
त्वद्वयानतोस्तु सततं मम सुप्रभातं
(प) तपावेला सुवर्णसमान जेमना शरीरनी कांति छे एवा हे शीतलनाथ भगवान!–
पापस्वरूप आठ कर्मरूपी कादवनो जेमणे नाश कर्यो छे एवा हे श्रेयांसनाथ जिनेन्द्र!–
तथा बपोरना फूलना समान जेमना शरीरनी कांति छे एवा हे वासुपूज्य भगवान!–
–आपना ध्यानथी मने सदाय सुप्रभात हो.
(६) उद्धत कामनो नाश करनारा तथा सुंदर शरीरने धारण करनार एवा हे विमलनाथ जिनेन्द्र!–
अनंत सुखना समुद्र तथा धैर्यवंत एवा हे अनंतनाथ भगवान!–
तथा दुष्ट कर्मरूपी मलथी रहित एवा हे धर्मनाथ भगवान :–
–आपना ध्यानथी सदा मने सुप्रभात हो.
(७) अमरी नामना फूल जेवो जेमना शरीरनो रंग छे एवा हे शांतिनाथ भगवान!–
दयागुणरूपी आभूषणथी भूषित जेमनुं अंग छे एवा हे कुंथुनाथ भगवान!–
अने, देवाधिदेव तथा तीर्थना अधिपति एवा हे अरनाथ जिनेन्द्र!–
–आपना ध्यानथी मने सदाय सुप्रभात हो.
(८) मोहमल्लनो नाश करनारा हे मल्लिनाथ भगवान! कल्याणकारी अने सत्य जेमनुं शासन छे एवा
हे मुनिसुव्रतनाथ भगवान!–
अने उत्तम परम वैराग्यसंपत्तिथी प्रशांत अवस्थाने पामेला एवा हे नमिनाथ भगवान!–
आपना ध्यानथी मने सदाय सुप्रभात हो.