Atmadharma magazine - Ank 157
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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(१६)
: आसो : २४८२ ‘आत्मधर्म’ : २३५ :
प्रालेयनीलहरितारुणपीतभासं
यन्मूर्तिमव्ययसुखावसथं मुनींद्रा:
ध्यायंति सप्ततिशतं जिनवल्लभानां
त्वद्धायानतोस्तु सततं मम सुप्रभातं
(अनुष्टुप)
सुप्रभातं सुनक्षत्रं मांगल्यं परिकीर्तितं,
चतुर्विंशति तीर्थानां सुप्रभातं दिनेदिने.
सुप्रभातं सुनक्षत्रं श्रेय: प्रत्यभिनंदितं,
देवता ऋषय: सिद्ध: सुप्रभातं दिनेदिने.
सुप्रभातं तवैकस्य वृषभस्य महात्मन:,
येन प्रवर्तित तीर्थं भव्यसत्वसुखावहं.
सुप्रभातं जिनेन्द्राणं ज्ञानोन्मीलितचक्षुषां,
अज्ञानतिमिरांधानां नित्यमस्तमितो रवि:
सुप्रभातं जिनेन्द्रस्य वीर: कमललोचन:
येन कर्मावटी दग्धा शुकलध्यानोग्र वह्निना
सुप्रभातं सुनक्षत्रं सुकल्याणं सुमंगलं,
त्रैलोकय हितकर्तृणां जिनानामेव शासनं.
एवा हे वर्द्धमान भगवान!–
–आपना ध्यानथी मने सदाय सुप्रभात हो.
(९) तमालवृक्षना समुदाय समान कांतिने धारण करनारा हे नेमिनाथ भगवान!–
भयंकर उपसर्गने सहन करवावाळा हे पार्श्वनाथ भगवान!–
अने, स्याद्वादसूक्तिरूपी मणिने माटे दर्पण समान
(१०) जेमना शरीरनी कांति सफेद, नील, लीली, लाल अने पीळी छे, जेओ अविनाशीक सुखना स्थान
छे अने मुनीश्वरो जेमनुं ध्यान करे छे एवा (१७०) एकसो सीत्तेर हे जिनवल्लभ श्री सीमंधरादिक तीर्थंकर
भगवतो! आपना ध्यानथी मने सदाय सुप्रभात हो.
(११) चोवीस तीर्थंकरोनुं सुप्रभात हंमेशा–दिनेदिने (बधा जीवोने माटे) सुप्रभातरूप, उत्तम नक्षत्ररूप
तथा मंगळरूप मानवामां आव्युं छे.
(१२) देवता (अरिहंतदेव वगेरे) ऋषिओ अने सिद्धभगवंतो ते पण हंमेशा सुप्रभातरूप छे, तथा ते
सुप्रभात उत्तम नक्षत्ररूप अने श्रेय प्रत्ये अभिनंदित (श्रेयकारी) मानवामां आव्युं छे,
(१३) भव्य जीवोने सुख देनारुं तीर्थ जेमणे चलाव्युं छे एवा महात्मा आदिनाथ भगवान सुप्रभातरूप छे.
(१४) जेमना ज्ञानचक्षुओ पूरेपूरा ऊघडी गया छे एवा जिनेन्द्र भगवंतोनुं सुप्रभात,
अज्ञानअंधकारथी अंध थयेला जीवोना अज्ञानअंधकारने टाळवा माटे सदाय सूर्यसमान हो. अर्थात्
केवळज्ञानरूपी सुप्रभात जेमने खीली गयुं छे एवा श्री जिनेन्द्र–रविनां उपदेश रूपी किरणो भव्य जीवोना
अज्ञानअंधकारने दूर करीने सुप्रभात प्रगटावे छे. बहारना सूर्यमां एवुं सामर्थ्य नथी.
(१५) शुकलध्यानरूपी उग्र अग्नि वडे जेमणे कर्म अटवीने भस्म करी नाखी एवा कमललोचन
वीरजिनेन्द्रनुं सुप्रभात सर्वे जीवोने सुप्रभातरूप हो.
(१६) त्रण लोकनुं हित करनारुं श्री जिनेन्द्रदेवनुं शासन ज सुप्रभातरूप, सुनक्षत्ररूप, परमकल्याणरूप
अने उत्तम मंगळरूप छे.
* ईति सुप्रभात मंगल *