एवा निस्पृह–वीतरागी संतनी आ वाणी छे,–जीवोने परम हितरूप एवो आ उपदेश छे. तेमां कहे
छे के अरे जीव! क्षणे क्षणे आयुष्य घटी रह्युं छे, बहारमां लक्ष्मी वगेरेनी वृद्धि खातर तुं तारो काळ
गूमावी रह्यो छे पण आत्माना ज्ञान–आनंदनी वृद्धि केम थाय तेनो तने विचार पण आवतो नथी.
अरे अविवेकी! तारा जीवन करतां पण तने लक्ष्मी वधारे वहाली छे! तेथी तुं लक्ष्मी खातर जीवन
गूमावी दे छे. –अरे धिक्कार छे तारी आवी मूढबुद्धिने! लाखो–करोडो रूपिया आपतां पण आ
मनुष्यजीवननी एकक्षण मळवी मोंघी छे, एवा मनुष्यजीवनने तुं फूटी बदामनी जेम व्यर्थ गूमावी
रह्यो छे. हे वत्स, तारा हितनो उपाय विचार.
भेगी करवाने बदले अत्यारे ज ममता घटाडीने, आत्महितनो उपाय कर ने! दानादिना बहाने
अत्यारे तुं तारी ममताने ज पोषी रह्यो छे. जेम कोई माणस एम विचारे के पहेलां शरीर उपर
कादव चोपडी लउं पछी स्नान करी लईश,–तो ते अविवेकी ज छे; तेम जे एम विचारे छे के
भविष्यमां दानादि करवा माटे अत्यारे वेपार–धंधा वगेरे करीने लक्ष्मी भेगी करी लउं, पछी
पात्रदानादि वगेरेथी पाप धोई नांखीश,–तो ते पण अविवेकी छे, वर्तमानमां पाप अने लोभनो
भाव पोषाई रह्यो छे तेने ते देखतो नथी. अरे मूढ! अत्यारे पाप करीने पछी पुण्य करवानुं कहे
छे,–तो तेना करतां अत्यारे ज पापभाव छोडीने आत्माना हितमां तारो उपयोग लगाव ने! कादव
लगाडीने पछी नहावुं एना करतां पहेलेथी ज कादव शा माटे लगाडवो! तेम अत्यारे पाप करीने
पछी पुण्य करीशुं–एवी ऊंधी भावनाने बदले, अत्यारे ज पाप छोडीने निवृत्तिथी तारा