Atmadharma magazine - Ank 157
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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: २२० : ‘आत्मधर्म’ २४८२ : आसो :
चित्तने धर्ममां जोड ने!
धर्मी जीवने पुण्यना प्रतापे सहेजे लक्ष्मी वगेरे मळी होय तेने ते पात्रदान–यात्रा–महोत्सव–
जिनबिंब–प्रतिष्ठा वगेरे पुण्यकार्योमां लगावे छे. पण ‘खरचवा माटे हुं लक्ष्मी मेळवुं’ एमां तो
ममतानुं पोषण छे; जो खरेखर रागनी मंदता होय तो जे मळेलुं छे तेमांथी ममता घटाड ने!
जेम कोई जीव एम माने के ‘केवळी भगवाने अनंत भव दीठा हशे तो एक पण भव घटशे
नहि’–तो एम कहेनारनी द्रष्टि भव उपर अने भवना कारणरूप विकार उपर ज पडी छे, पण
केवळज्ञानना कारणरूप ज्ञायकस्वभाव उपर तेनी द्रष्टि नथी, ते केवळी भगवाननुं नाम लईने पण
मात्र ऊंधी द्रष्टिने ज पोषी रह्यो छे. तेम जे जीव एम कहे छे के “भविष्यमां दानादि वडे पुण्य करवा
माटे अत्यारे हुं लक्ष्मी मेळवी लउं”–तो ते पण पुण्यना बहाने मात्र ममता ज पोषी रह्यो छे, तेने
खरेखर लक्ष्मी उपरनो लोभ घटयो ज नथी. पांच लाख मळ्‌या छे एने वधारीने दस लाख करुं ने
पछी दानमां वापरशुं–एम कहे छे, तो हे मूढ! अत्यारे पांच लाख छे तेमांथी तो एक लाखनी
ममता घटाड! ममता तो घटाडवी नथी ने भविष्यमां पुण्य करवानी ओथ लईने तुं ऊलटो ममता
वधारे छे, ते तो तारो अविवेक छे.
प्रश्न:– लक्ष्मी भेगी करवा पाछळ अमारो भाव तो एवो छे के पछी धर्मादामां वापरशुं, एटले
अमारी तो शुद्धवृत्ति छे!
उत्तर:–लक्ष्मी वगेरे रळवानो भाव पापवृत्ति वगर आवे ज नहि. शुद्धवृत्ति होय तो लक्ष्मी
वगेरे मेळववानो भाव होय ज नहि. जेम नदीमां पाणीनुं पूर आवे तेमां चारे कोरनो मेल पण
भेगो ज आवे, तेम लक्ष्मीना ढगला भेगा करवानी वृत्तिमां पापभाव रहेलो ज छे. जो पापनो
भाव पण न होय–लोभकषाय न होय–तो, आत्माना हित खातर तो उद्यम केम नथी करतो? ने
लक्ष्मी मेळववा खातर केम उद्यम करे छे? लक्ष्मी भेगी करवा माटे उद्यम करे छे–दिनरात तेमां
उपयोग तो जोडे छे अने छतां कहे छे के अमने पापभाव नथी–तो ते तारी दुर्बुद्धि छे. माटे हे भाई!
संतो तने हितनो उपदेश आपे छे के आवो अवतार मळ्‌यो तो हवे तारी बुद्धिने आत्माना
हितकार्यमां जोड....कांईक निवृत्ति लईने चैतन्यस्वभाव तरफनुं वलण कर...जेथी तारुं हित थाय.
तारा जीवननी एकेक क्षण लाखेणी जाय छे, आत्माना हित माटे तेनो उपयोग करीने तेने सफळ
बनाव. जो चैतन्यना हितनी दरकार न करी ने लक्ष्मी भेगी करवामां ज जीवन वीताव्युं तो तारो
आ अवतार एळे चाल्यो जशे... ने संसारमां फरीने अनंतकाळेय आवो अवसर नहि मळे. आ
हितनो महा मोंघो अवसर आव्यो छे, माटे सावधान थईने तारा हितनो उद्यम कर.
ईष्टोपदेशना प्रवचनमांथी.