
मृत्युना मुखमांथी ऊगारनार छे, ते एक शरणभूत थाय तेम नथी.–एकवार आत्मामां आवो
निर्णय करे तो पण केटली शांति थई जाय! पोताना हितनो उपाय तेना हाथमां आवी गयो.
नहि, केम के तेनुं वलण ज संयोग तरफ छे. अनुकूळ संयोग कंई कायम तो रहेतो नथी, संयोग
तो एक क्षणमात्रमां पलटी जशे, माटे तेना आश्रये आत्मानी शांति नथी. आत्मानो स्वभाव
पोते सुखस्वरूप छे ते निरंतर रहेनार छे, माटे तेना अवलंबने ज आत्मानुं हित अने शांति
छे’–आम पहेलां हितना उपायनी खोज करीने तेने निर्णय करवो जोईए.–आ रीते संतोनो
ईष्टोपदेश छे, संतोए हितमार्गनो आवो उपदेश आप्यो छे.
जिज्ञासा जागवी जोईए. लक्ष्मी वधी तेने मूढ प्राणी देखे छे, पण आयुष्य घटयुं तेने ते देखतो
नथी. ज्यां मरणना टाणां आवशे त्यां लक्ष्मी शरणरूप नहि थाय, वैद्यो बचावी नहि शके, कुटुंबी
कोई एक पगलुंय साथे नहि आवे, ए वखते शरणभूत तो तने तारो आत्मा ज थशे, ते ज तने
शांति आपशे, ते ज तारी साथे आवशे; माटे आत्मा शुं चीज छे तेनी ओळखाण कर.
हे भव्य! जो तारे तारुं हित करवुं होय तो ए व्यवहारनो पक्ष छोडी दे......ने तारा
ज्ञानना निर्णयमां एक ज प्रकार आवी जाय के आहा! आ एक ज मारुं अवलंबन छे. ज्यां
अंतरना लक्षपूर्वक आवो पक्ष थाय त्यां प्रयत्ननी दिशा स्वभाव तरफ वळ्या थया विना रहे ज
नहि......एटले के आत्माना आश्रये अल्पकाळमां तेने सम्यग्दर्शन थाय ज.