Atmadharma magazine - Ank 157
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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: २२४ : ‘आत्मधर्म’ २४८२ : आसो :
अनेकान्तमूर्ति भगवान आत्मानी
केटलीक शक्तिओ
(२)
• अभोकतृत्वशक्ति •
ज्ञायकस्वरूप आत्मामां जेम विकारना अकर्तापणारूप शक्ति छे तेम हर्ष–शोकादि विकारना
अभोक्तापणारूप शक्ति पण छे. “समस्त, कर्मथी करवामां आवेलां, ने आत्माना ज्ञातृत्वमात्रथी जुदां एवा
परिणामोना अनुभवना उपरमस्वरूप अभोकतृत्व शक्ति छे.” ज्ञानने अंतरमां वाळतां जे अतीन्द्रिय आनंदनो
भोगवटो थयो तेमां हर्ष–शोकना भोगवटानो अभाव छे. हर्ष–शोकादि विकारी भावोने कर्मथी करवामां आवेला
कह्या ते ज्ञायकस्वभावनी द्रष्टिथी कह्युं छे; अकर्तृत्वशक्तिना विवेचनमां तेनो घणो खुलासो आव्यो छे ते मुजब
आ अभोकतृत्वशक्तिमां पण समजी लेवुं.
परलक्षे हर्ष–शोकना भावो थाय छे तेने अनुभववानी एक समयपूरती पर्यायमां लायकात छे, पण
आत्मानो त्रिकाळस्वभाव तो ते अनुभवथी रहित छे. जो त्रिकाळ–स्वभाव ज तेवो होय तो ते विकारना
वेदनथी छूटीने अंर्तअनुभवना निर्विकार आनंदनुं वेदन थई शके नहीं. ते उपरांत अहीं तो पर्यायने भेळवीने
एवी वात छे के, पर्यायमां जेने एकांत हर्ष–शोकनुं ज वेदन छे ने तेनाथी पार ज्ञायकस्वभावनुं वेदन जरापण
नथी, तेने आत्मानी अभोकतृत्वशक्तिनी श्रद्धा थई ज नथी. साधकने, अल्प–हर्षादि वखते पण तेनाथी भिन्न
ज्ञायकस्वभावनी द्रष्टि वर्ते छे एटले एकला हर्षादिनुं ज वेदन तेने नथी पण द्रष्टिना बळे हर्षशोकना
अभावरूप ज्ञायकस्वभावनुं वेदन पण तेने वर्ते ज छे; ए रीते तेने अभोक्ताशक्तिनुं निर्मळ परिणमन शरू
थई गयुं छे.
आत्माथी भिन्न एवा शरीर, पैसा, स्त्री, अन्न, वस्त्र, रोग वगेरे पर पदार्थने भोगववानुं तो आत्माना
स्वरूपमां कदी छे ज नहि. परनो भोगवटो करवानुं अज्ञानी माने छे ते तो तेनी मात्र भ्रमणा छे, ते कांई परने
नथी भोगवतो, पण पर तरफना वलणथी हर्ष–शोकना भाव करीने अज्ञानभावथी मात्र तेने ज भोगवे छे.
अहीं अभोक्तृत्वशक्तिमां तो आचार्यदेव एम समजावे छे के ते हर्ष–शोकना भावो पण आत्माना
ज्ञायकस्वभावथी जुदा छे तेथी तेने भोगववानो पण आत्मानो स्वभाव नथी. आत्मानो स्वभाव तो
ज्ञायकस्वभावमां एकाग्र थईने पोताना वीतरागीआनंदने भोगववानो छे.
• आत्माना द्रव्यमां गुणमां के पर्यायमां कयांय परनो तो भोगवटो छे ज नहि.
• हर्ष–शोक–चिंता वगेरेनो भोगवटो आत्माना द्रव्य–गुणमां नथी, मात्र अज्ञानदशामां एक
समयपूरतो छे.
• अने, विकारना अभोक्तास्वरूप एवा त्रिकाळी द्रव्य–