: मागशर: २४८३ : ९ :
वल्लभीपुरमां मंगल प्रवचन
पालेजमां अनंतनाथ भगवाननी वेदीप्रतिष्ठा माटे, अने
शाश्वत तीर्थधाम सम्मेद शिखरजीनी यात्रा माटे पू. गुरुदेवश्री
विहार करी रह्या छे. ते विहारनुं आ सौथी पहेलुं मंगल प्रवचन
छे... तेमां पू. गुरुदेव भावपूर्वक कहे छे के: हे भगवान! आपने
नमस्कार करीने हुं आपनी पंक्तिमां बेसुं छुं... ने हुं पण परमात्मा
थवा माटे आपना पगले पगले आवुं छुं.
(कारतक सुद पूर्णिमा–रविवारना रोज वल्लभीपुरमां पू. गुरुदेवनुं मंगल प्रवचन)
श्री पद्मनंदी पच्चीसी
वल्लभीपुर
अेकत्वअिधकार: १ ता. १८–११–५६ रविवार
आत्माना धर्मनो आ विषय छे. अहीं मंगलाचरणमां चिदानंदस्वरूप परमात्माने नमस्कार करे छे:–
चिदानंदैकसद्भावं परमात्मानमव्ययम्।
प्रणमामि सदा शान्तं शान्तये सर्वकर्मणाम्।। १।।
सर्व कर्मनो नाश करीने आत्मानी शांतिनी प्राप्ति माटे, अहीं मांगळिक तरीके ज्ञान–आनंदस्वरूप
परमात्माने नमस्कार करुं छुं.
आ देहथी भिन्न आत्मा शुं चीज छे तेना भान वगर जीव अनादिथी चार गतिमां रखडी रह्यो छे. ‘हुं
कोण छुं?’ तेनी समजण पूर्वे एक क्षण पण करी नथी.
“हुं कोण छुं... क्यांथी थयो... शुं स्वरूप छे मारुं खरुं?
कोना संबंधे वळगणा छे... राखुं के ए परिहरुं!
एना विचार विवेकपूर्वक शांतभावे जो कर्या,
तो सर्व आत्मिक ज्ञानना सिद्धांत तत्त्वो अनुभव्या.”
जामसाहेब दिग्विजयसिंहजीने जामनगरमां आ श्लोक संभळाव्यो हतो. अरे, हुं कोण छुं? आ देह तो
क्षणिक संयोगी वस्तु छे, तो हुं अनादिअनंत टकनार देहथी भिन्न कोण छुं? मारुं स्वरूप शुं छे? एनो विचार
तो करो! जेओ परमेश्वर थया ते क्यांथी थया? आत्मामां शक्ति हती ते प्रगट करीने परमात्मा थया. जेम
लींडीपीपरमां तीखासनी ताकात भरी छे तेमांथी ज ६४ पहोरी तीखास प्रगटे छे, ते क्यांय बहारथी नथी
आवती; तेम आत्मानी परमानंद दशा क्यांय बहारथी नथी आवती, पण आत्मामां शक्ति भरी छे तेमांथी ज
ते प्रगटे छे.