Atmadharma magazine - Ank 158
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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: १० : आत्मधर्म : १५८
जुओ, आजे आ विहारनुं पहेलुं मंगलाचरण छे. हजी तो २००० माईल ठेठ सम्मेदशिखरजी सुधी
जवानुं छे. सम्मेदशिखरजी उपरथी अनंता तीर्थंकरो सिद्ध थया. ते कई रीते सिद्ध थया तेनी आ वात छे,
प्रभो! आ देहमां रहेला आत्माने तें कदी जाण्यो नथी. अहो! तारो आत्मा चैतन्य अने आनंदस्वरूप
छे. तारो आत्मा दीन के रंक नथी, सधन के निर्धन नथी, तारो आत्मा तो ज्ञान ने आनंदस्वरूप छे. आ देह तो
अशुचीस्वरूप अने अनित्य छे. तारा आत्मामां सर्वज्ञ थवानी ताकात भरी छे. तारा आत्मामां आनंद भर्यो
छे, पण तेने भूलीने बहारमांथी सुख लेवा जतां तारुं वास्तविक सुख टळी जाय छे. श्रीमद् राजचंद्र कहे छे के–
“बहु पुण्यकेरा पुंजथी शुभदेह मानवनो मळ्‌यो,
तोये अरे! भवचक्रनो आंटो नहि एके टळ्‌यो;
सुख प्राप्त करतां सुख टळे छे–लेश ए लक्षे लहो,
क्षणक्षण भयंकर भावमरणे कां अहो! राची रहो?”
आ देह अने लक्ष्मी तो जड छे, तेमां क्यांय तारुं सुख नथी, भाई! सुख तारा आत्मामां छे. आत्मानुं
भान जेओ करता नथी ने बाह्य विषयोमां सुख मानीने तीव्र हिंसादि पापपरिणाम करे छे ते जीवो पापनुं फळ
भोगववा माटे नीचे नरकमां जाय छे.
नरक पण नीचे वस्तु छे, ए कांई हंबग नथी; दरेक जीव पोते अनंतवार त्यां जईने दुःख भोगवी
आव्यो छे, पण अत्यारे भूली गयो छे. जेम गर्भ–अवस्थानी के बालवयनी वात याद न रही होय तेथी कांई
तेनुं अस्तित्व न हतुं–एम नथी. एम नरक पण छे; ने तीव्र पाप करनारा जीवो त्यां जाय छे. अहीं तो नरकादि
चारे गतिना अवतारनो अंत केम आवे तेनी वात छे, आत्म–धर्मनी आ वात छे.
अहीं तो आ पद्मनंदी पच्चीसीनो एकत्वअधिकार चाले छे. वन–जंगलमां वसता ने आत्माना आनंदमां
झूलता संतनी आ वात छे. तेमां कहे छे के: अरे जीव! तुं एकलो छे. तारा एकत्व स्वरूपमां ज तारो आनंद छे;
तेने एक वार संभाळ.
ज्ञान अने आनंदस्वरूपने पामेला परमात्माने हुं नमस्कार करुं छुं. –शा माटे? कर्मोना नाश माटे अने
आत्माना आनंदनी प्राप्ति माटे.
आत्मा आ शरीरना संयोग जेटलो नथी, पण शरीरथी जुदो ज्ञानस्वरूप छे. जुओ, बे माणस ल्यो, –
एक ७० वर्षनो छे ने बीजो ४० वर्षनो छे. ७० वर्षनो माणस पोतानी ५० वर्ष पहेलांंनी केवी दशा हती तेनुं
अत्यारे ज्ञान करी शके छे. तेनी माफक बीजो माणस–के जे ४० वर्षनो छे ते पण जो पोतानी ५० वर्ष पहेलांंनी
दशाने जाणवा मांगे तो केम न जाणी शके? एक आत्मा ५० वर्ष पहेलांंनी वात जाणी शके तो बीजो आत्मा केम
न जाणी शके? हवे जो ४० वर्षनो माणस पोतानी ५० वर्ष पहेलांंनी अवस्थाने जाणवा जाय तो तेने आ
भवथी आगळ चालतां पूर्व भवनी साथे संधि थई जाय, ने जातिस्मरण ज्ञान थई जाय. आत्माना
अस्तित्वनो यथार्थ निर्णय करवो जोईए.
जुओ, ८० वर्षनी उमरनो माणस पोतानी बाल, युवान ने वृद्ध ए त्रणे अवस्थाने एक साथे जाणी
शके छे, पण पूर्वनी वीती गयेली बाल के युवान अवस्थाने वर्तमानमां लावी शकतो नथी; एटले ते बाल,
युवान के वृद्धावस्था तो शरीरनी छे, ते जीवनुं स्वरूप नथी; जीवनुं स्वरूप तो ज्ञान छे. आवा ज्ञानस्वरूप
आत्माने ओळखवो ते करवा जेवुं छे. आवा आत्माना भान वगर करोडो–अबजोनी पेदाश हो के मोटो राजा
हो–तेनी कांई किंमत नथी. बहारना साम्राज्य तो अनंत वार मळ्‌या, तेमां आत्मानुं कांई हित नथी. आत्मानुं
खरुं साम्राज्य तो ज्ञान ने आनंदमां छे. ते ज्ञान–आनंदस्वरूप साम्राज्य केम प्राप्त थाय, ने आ अवतार केम
अटके–तेनी आ वात छे.
आत्माना ज्ञानमां समाधान करवानी ने शांति राखवानी ताकात छे. गमे तेवी प्रतिकूळताना प्रसंगमां
पण आत्मा ज्ञानना लक्षे समाधान करी शके छे. पचीस वरसे पचीस लाख रूा. कमाईने दीकरो आवतो होय तो
तेनो पिता केवो हर्ष पामे छे? त्यां एवो हर्ष पामे छे के पुत्र अने पैसानी प्रीति आडे शरीरना रोगने पण
भूली जाय छे. ए रीते त्यां एकना लक्षे बीजुं भूली जाय छे. तेम जेने आत्मानो खरो प्रेम होय, आत्मा
खरेखर वहालो होय ते आत्माना आनंदना लक्षे