Atmadharma magazine - Ank 158
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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: मागशर: २४८३ : ११ :
– परम शांति दातारी –
अध्यात्म भावना
भगवानश्री पूज्यपादस्वामी रचित ‘समाधिशतक’ उपर परमपूज्य
सद्गुरुदेवश्री कानजीस्वामीना अध्यात्मभावना – भरपूर
वैराग्यप्रेरक प्रवचनोनो सार.
(१)
[“आत्मधर्म” ना घणा जिज्ञासु वांचको सहेला लेखोनी मागणी करे छे...... आ अंकथी शरू
थता समाधिशतकना आ प्रवचनो अध्यात्मरसथी भरपूर होवा छतां सरळ अने सहेलाईथी समजी
शकाय तेवां छे...... आशा छे के जिज्ञासु वांचको आ लेखमाळाद्वारा सहेलाईथी अध्यात्मरसनुं पान
करी शकशे..]
श्री सिद्धपरमात्माने नमस्कार.
श्री समंधरादि जिनेन्द्रदेवोने नमस्कार.
समाधिदातार पूज्यपादस्वामीने नमस्कार.
बोधिदातार श्री कहानगुरुदेवने नमस्कार.
त्रिरत्नदातारी जिनवाणी माताने नमस्कार.
[वर स. २४८२, वशख वद अकम]
आ समाधितंत्र शरू थाय छे. सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र ते समाधि छे. समाधि कहो के शांति कहो, तेनी
प्राप्ति केम थाय ते वात आ समाधिशतकमां श्री पूज्यपादस्वामीए बतावी छे.
पूज्यपादस्वामीनुं बीजुं नाम देवनंदी हतुं. लगभग १४०० वर्ष पहेलांं तेओ आ भरतभूमिमां
विचरता हता; अने जेम श्री कुंदकुंदाचार्यदेव सीमंधर भगवान पासे विदेहक्षेत्रे गया हता तेम आ
पूज्यपादस्वामी पण विदेहीनाथना दर्शनथी पावन थया हता–एवो उल्लेख शिलालेखोमां छे. तेमणे सर्वार्थसिद्धि
(तत्त्वार्थसूत्रनी टीका), तेमज जैनेन्द्र व्याकरण वगेरे