: १२ : आत्मधर्म : १५८
महान ग्रंथो रच्या छे. तेमनी अगाध बुद्धिने लीधे योगीओए तेमने ‘जिनेन्द्रबुद्धि’ कह्या छे. तेओ
महाब्रह्मचारी तेमज विशिष्ट ऋद्धिओना धारक हता. एवा महान आचार्य श्री पूज्यपादस्वामीए रचेल आ
समाधितंत्र अथवा समाधिशतक आजे शरू थाय छे. तेनुं मंगलाचरण–
सकल विभाव अभावकर किया आत्मकल्याण,
परमानंद–सुबोधमय, नमुं सिद्ध भगवान.
आत्मसिद्धि के मार्गका, जिसमें सुगम विधान,
उस समाधियुत तंत्रका, करुं सुगम व्याख्यान.
आत्मानी अवस्थामां जे मोह–राग–द्वेषना भावो छे ते विभाव छे, तेमां असमाधि छे; आत्माना
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप समाधि वडे ते सकल विभावनो अभाव करीने जेओ सिद्ध थया ते
सिद्धभगवंतोने हुं नमस्कार करुं छुं. सिद्धभगवान केवा छे? परम आनंद अने ज्ञानमय छे, पोतानुं
आत्मकल्याण कर्युं छे, अने समस्त विभावनो अभाव कर्यो छे.
आवा सिद्धभगवानने ओळखीने अहीं तेमने नमस्कार कर्या छे. –कई रीते? के जेवा सिद्धभगवान छे
तेवी ज ताकात मारा आत्मामां छे–एम सिद्धसमान पोताना आत्माने प्रतीतमां लईने सिद्धभगवानने
नमस्कार कर्या छे. नाटक–समयसारमां कहे छे के–
“चेतनरूप अनुप अमूरत सिद्धसमान सदा पद मेरो” सिद्धभगवान जेवा परिपूर्ण ज्ञान अने आनंद
मारा आत्मामां भर्या छे, –एवा सिद्धसमान आत्माने प्रतीतमां लेवो ते सिद्ध थवानो मार्ग छे, ने ते ज
सिद्धभगवानने परमार्थ नमस्कार छे, ते अपूर्व मांगळिक छे.
ए रीते मांगळिकरूपे सिद्धभगवानने नमस्कार करीने, जेमां आत्मसिद्धिना मार्गनो सहेलो उपाय
बताव्यो छे एवा आ समाधितंत्रना व्याख्याननो प्रारंभ करवामां आवे छे.
शास्त्रकर्ता श्री पूज्यपादस्वामी, मोक्षना ईच्छुक भव्य जीवोने मोक्षनो उपाय अने मोक्षनुं स्वरूप
बताववानी ईच्छाथी, शास्त्रनी निर्विघ्न समाप्ति वगेरे फळनी ईच्छा करता थका विशिष्ट ईष्टदेव श्री
सिद्धभगवानने नमस्कार करे छे: जुओ, सौथी पहेलांं तो मोक्षार्थी जीवनी वात लीधी छे; जे जीव मोक्षार्थी छे...
आत्मार्थी छे... ‘हुं कोण छुं ने मारुं हित केम थाय?’ एम जेने आत्माना हितनी जिज्ञासा जागी छे–एवा
जीवने मोक्षनो उपाय बताववा माटे आ शास्त्रनो उपदेश छे. ‘काम एक आत्मार्थनुं’ –एटले जेने एक
आत्मार्थनी ज भावना छे, बीजी कोई भावना नथी, आत्मानो ज अर्थी थईने श्रीगुरु पासे हितनो उपाय
समजवा आव्यो छे ने पूछे छे के प्रभो! आ आत्माने शांति केम थाय? आ आत्मानुं हित केम थाय? एवा
आत्मार्थी जीवने आ आत्माना मोक्षनो उपाय आचार्यदेव बतावे छे.
जेने लक्ष्मी केम मळे के स्वर्ग केम मळे–एवी भावना नथी पण आत्माना हितनी भावना छे ते जिज्ञासु
थईने श्री आचार्यदेव पासे तेनो उपाय समजवा आव्यो छे. लक्ष्मीमां के स्वर्गना वैभवमां आत्मानुं सुख नथी.
जो तेमां सुख होत तो ईन्द्रो अने राजाओ पण मुनिओना चरणनी सेवा केम करत? मुनिवरो पासे तो लक्ष्मी
वगेरे नथी, अने ईन्द्र पासे तो घणो वैभव छे, छतां ते ईन्द्र पण मुनिना चरणे नमस्कार करे छे. ते उपरथी
एम नक्की थयुं के लक्ष्मी वगेरेमां सुख नथी; अने लक्ष्मी वगेरेनी जेने भावना छे तेने आत्माना हितनी
भावना नथी. अहीं तो बीजी बधी रुचि छोडीने एक आत्माना हितनी ज जेने भावना छे एवा मुमुक्षु जीवने
आचार्यदेव आत्माना हितनो उपाय बतावे छे.
तेमां मंगलाचरणरूपे ईष्ट तरीके सिद्ध परमात्माने नमस्कार करे छे–
येनात्माऽबुद्धयतात्मैव परत्वेनैव चापरम्।
अक्षयानन्तबोधाय तस्मै सिद्धात्मने नमः।। १।।
जेमना द्वारा आत्मा आत्मारूपे जणाय छे अने पर पररूपे जणाय छे, तथा जेओ अक्षयअनंतबोध
स्वरूप छे एवा सिद्ध–आत्माने अमारा नमस्कार हो.
हे सिद्ध परमात्मा! आपे आत्माने आत्मारूपे जाण्यो छे ने परने पररूपे जाण्या छे, अने ए रीते
जाणीने आप अक्षयअनंतबोधस्वरूप थया छो, तेथी एवा पदनी प्राप्ति अर्थे हुं आपने नमस्कार करुं छुं.