: मागशर: २४८३ : १३ :
जुओ, आ मंगलाचरण!! मंगलाचरणमां सिद्धभगवानने याद कर्यां छे. सिद्धभगवानने जाणतां आ
आत्मा पोताना वास्तविक स्वरूपे जणाय छे, ने सिद्धभगवानथी जुदुं एवुं बधुंय पररूपे जणाय छे.
जुओ, आमां बधा शास्त्रोनुं भणतर आवी गयुं. ‘आ आत्मानो स्वभाव सिद्धभगवान जेवो छे, जेवो
सिद्धभगवाननो आत्मा छे तेवो मारो आत्मा छे, ने ते सिवाय जे रागादि छे ते मारा आत्मानो स्वभाव
नथी’ आवी ओळखाण करवी ते बधा शास्त्रोनो सार छे.
हे सिद्ध परमात्मा! आप केवळज्ञाननी मूर्ति छो, परिपूर्ण ज्ञानस्वरूप छो, ने रागरहित छो; एवो ज
मारा आत्मानो स्वभाव छे. –आ प्रमाणे सिद्धभगवानने ओळखतां तेवो पोतानो आत्मस्वभाव जाण्यो एटले
तेणे पोताना आत्मामां ज सिद्धभगवानने ऊतारीने, अंतर्मुख थईने सिद्धभगवानने नमस्कार कर्या.
नमो सिद्धाणं–सिद्धभगवंतोने नमस्कार हो. केवा सिद्ध भगवान? के जेने रागादि नथी ने परिपूर्ण
केवळज्ञान छे; आम सिद्धना आत्माने जाणतां राग रहित ने ज्ञान सहित एवो आत्मा जणाय छे. सिद्धनो
आत्मा शुद्ध छे, तेथी तेने जाणतां आत्मानुं शुद्ध स्वरूप जणाय छे, ने स्वपरनुं भेदज्ञान थाय छे. जेणे आवुं
भेदज्ञान कर्युं तेणे सिद्धभगवानने परमार्थ नमस्कार कर्या.
सिद्धमां जे छे ते स्व;
सिद्धमां जे नथी ते पर.
आ रीते सिद्धभगवानने जाणतां स्व–परनुं भेदज्ञान थाय छे; माटे मंगलाचरणमां सिद्धभगवानने
नमस्कार कर्या छे. आ रीते सिद्धभगवान जेवा शुद्ध आत्मानो निर्णय करवो ते सम्यग्दर्शन छे, ने ते पहेलो
अपूर्व धर्म छे.
अहो! जुओ आ आदर्श!! आत्माना आदर्शरूपे सिद्धने स्थाप्या, ने बीजुं बधुं लक्षमांथी काढी नांख्युं.
जेने आवुं लक्ष छे तेणे ज सिद्धने नमस्कार कर्या छे. जेणे सिद्धनो विनय कर्यो ते रागनो आदर करतो नथी,
अने जे रागनो आदर करे छे तेणे रागरहित एवा सिद्धभगवाननो आदर खरेखर कर्यो नथी. आत्मानुं शुद्ध
स्वरूप अने रागादि ए बंनेना भेदज्ञान वगर सिद्धभगवानने खरेखर ओळखी शकाय नहि. जेणे
सिद्धभगवानने ओळख्या तेणे पोताना शुद्ध स्वभावने सिद्धसमान जाण्यो ने रागने स्वभावथी भिन्न जाण्यो.
ए रीते रागथी पाछो फरीने पोताना शुद्ध स्वरूपमां नम्यो तेणे सिद्धने खरा नमस्कार कर्यां.
सिद्धभगवानने कदी कोई संयोगमां रागादि थता नथी. जे जीव रागने भलो (ईष्ट) माने छे तेणे
रागरहित एवा सिद्धने खरेखर ईष्ट नथी मान्या. सिद्धभगवानने ईष्ट माननार पोताना शुद्ध ज्ञानानंदस्वरूपने
ज ईष्ट मानीने ते तरफ ज नमे छे–तेनो ज आदर करे छे, रागनो आदर ते करतो नथी. सिद्धभगवानने जाणतां
आत्मा पोताना शुद्धस्वरूपने जाणे छे, तेथी मांगळिकमां सिद्धभगवानने नमस्कार कर्यां छे.
समयसारना मांगळिकमां पण वदित्तु सव्वसिद्धे कहीने कुंदकुंदाचार्यदेवे सिद्धभगवानने नमस्कार कर्या
छे, –केमके सिद्धभगवंतो शुद्ध आत्माना प्रतिच्छंदना स्थाने छे तेथी तेमना स्वरूपने जाणतां शुद्धआत्मानुं स्वरूप
जणाय छे; ए ज रीते अहीं पूज्यपादस्वामीए पण सिद्धभगवंतोने नमस्कार कर्या छे. “जे सिद्धनुं स्वरूप ते
मारुं स्वरूप; अने जे सिद्धना स्वरूपमां नहि ते मारुं स्वरूप नहि” –आ प्रमाणे सिद्धने ओळखतां स्व–परनुं
भेदज्ञान थाय छे, ते अपूर्व मंगळ छे.
(वर स. २४८२, वशख वद बज)
आत्मा ज्ञान–आनंदस्वरूप छे, तेनी श्रद्धा करीने तेमां लीन थतां निर्विकल्प शांति थाय तेनुं नाम
समाधि छे. आ समाधि ते मोक्षनो उपाय छे, ने तेनुं फळ मोक्ष छे.
अहीं, ग्रंथकर्ताने तेमज श्रोताओने आत्मानी मुक्तिनी अभिलाषा छे, तेथी मुक्ति पामेला एवा
सिद्धभगवानने नमस्कार कर्या छे. आ मंगलाचरणना श्लोकमां मोक्षमार्गनुं तेमज मोक्षनुं स्वरूप बताव्युं छे.
सिद्ध भगवानने जाणतां ‘आत्मा आत्मारूपे जणाय छे ने पर पररूपे जणाय छे’ –आवुं भेदज्ञान ते मोक्षनो
उपाय छे अने परिपूर्ण ज्ञान ने आनंदरूप दशा प्रगटे ते मोक्ष छे.