भोगवटामां ज लीन छे. –आवी सिद्धदशा ते आत्मानुं ध्येय छे, ते ज आत्मानुं ईष्ट छे. शास्त्रकर्ता पूज्यपाद
स्वामीने तेमज व्याख्याता अने श्रोताजनोने आवुं शुद्ध आत्मपद प्राप्त करवानी उत्कट अभिलाषा छे तेथी तेवा
छे. शास्त्रकर्ताने, व्याख्याताने तेमज श्रोताजनोने सिद्धपदनी प्राप्तिनी ज भावना छे, ने तेने माटे ज अनुष्ठान
(उपाय) करे छे, तेथी सिद्धभगवाननुं बहुमान करीने तेमने नमस्कार कर्या छे: अहो! अमने आ एक सिद्धपद
ज परमप्रिय छे, ते सिवाय रागादि के संयोग अमने प्रिय नथी; माटे शुद्धपदने पामेला सिद्धभगवंतोने नमस्कार
करीने शुद्ध आत्मानो ज अमे आदर करीए छीए.
नमस्कार करे छे.
केवळज्ञान प्रगट कर्युं छे; अने दरेक जीवना अंतरमां चैतन्य
दरियो छलोछल छलकाई रह्यो छे, तेमां अंर्तद्रष्टि करवी ते
सम्यग्दर्शन छे. आखो परिपूर्ण चैतन्य आत्मा छे तेनुं भान
कर्या सिवाय बीजी कोई रीते साचुं सम्यक्त्व थतुं नथी. दरेक
आत्मा प्रभु छे, पूर्ण सामर्थ्यवाळा छे; वर्तमान अवस्थामां
अपूर्णता भले हो, पण ते अपूर्णता सदा रह्या करे–एवुं तेनुं
स्वरूप नथी. पर्यायथी पण परिपूर्ण थवानुं दरेक आत्मानुं
सामर्थ्य छे. आवा आत्मस्वभावने ओळखीने तेना अनुभवथी
ज धर्मनी शरूआत थाय छे.