Atmadharma magazine - Ank 158
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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: १६ : आत्मधर्म : १५८
अनेकान्तमूर्ति भगवान आत्मानी
* (२३) नष्क्रयत्व शक्त *
आत्मा ज्ञानमात्र छे, ते ज्ञानमात्र आत्मामां स्वयमेव अनेकान्त प्रकाशे छे, एटले ज्ञानस्वरूप आत्मा
स्वयमेव अनंत धर्मोवाळो छे. आवा अनेकान्तमय आत्मानी प्रसिद्धि कई रीते थाय? –तेनो अनुभव कई रीते
थाय? –तेनुं आ वर्णन छे. शरूआतमां आचार्यदेवे कह्युं छे के ज्ञानलक्षणवडे आत्मानी प्रसिद्धि थाय छे. आत्मा
तरफ न वळतां एकला पर ज्ञेयो तरफ ज जे ज्ञान वळे ते ज्ञानमां आत्मानी प्रसिद्धि थती नथी, तेथी ते
मिथ्याज्ञानने आत्मानुं लक्षण पण कहेता नथी; अंतरमां वळीने आत्माने लक्षित करे ते ज्ञानमां आत्मानो
प्रसिद्ध अनुभव थाय छे, ने ते ज्ञान ज खरेखर लक्षण छे. आवा ज्ञानलक्षणने मुख्य करीने आत्माने ज्ञानमात्र
कह्यो, त्यां शिष्यने प्रश्न थयो के–प्रभो! आत्मामां अनंतधर्मो होवा छतां आप तेने ‘ज्ञानमात्र’ केम कहो छो?
ज्ञानमात्र कहेवाथी शुं एकांत नथी थतो? तेना समाधानमां आचार्यदेवे कह्युं के: अनंतधर्मोवाळा आत्माने
ज्ञानमात्र कहेवा छतां एकांत नथी थतो, केम के आत्माना ज्ञानमात्र भावनी साथे ज अनंत शक्तिओ परिणमे
छे तेथी ते ज्ञानमात्र भावने स्वयमेव अनेकान्तपणुं छे.
ते ज्ञानमात्र भावनी साथे परिणमती–उल्लसती शक्तिओनुं आ वर्णन चाले छे. आचार्यदेवे ४७
शक्तिओ वर्णवी छे, तेमांथी २२ शक्तिओनुं विवेचन थई गयुं छे. हवे २३ मी निष्क्रियत्व–शक्ति छे. “समस्त
कर्मना उपरमथी प्रवर्तेली आत्मप्रदेशोनी निष्पंदता स्वरूप निष्क्रियत्व शक्ति छे.” ज्ञानमात्र आत्मामां आवी
पण एक शक्ति छे.
आत्माना प्रदेशोमां हलन–चलनरूप क्रिया थाय ते योग छे, ते क्रियाना निमित्ते कर्मो आवे छे; पण ते
कर्मो के प्रदेशोना कंपनरूप क्रिया आत्मानो स्वभाव नथी; आत्मानो स्वभाव तो स्थिर–अकंप रहेवानो छे.
अकंप स्वभावी आत्मा शरीरने हलावेचलावे के कर्मो आववामां निमित्त थाय–ए वात क्यां रही?
स्वभावद्रष्टिमां तो आत्मा कर्मने निमित्त पण नथी. आत्माना स्वभावमां एवी कोई शक्ति नथी के जड
शरीरादिकने हलावे, के कर्मोने खेंचे. शरीरनुं हालवुं–चालवुं–बोलवुं–खावुं वगेरे क्रियाओ आत्मा साथे मेळवाळी
लागे, त्यां अज्ञानीने भ्रम थई जाय छे के “माराथी आ क्रिया थाय छे,” –आत्माना अकंप स्वभावनी तेने
खबर नथी. भाई, शरीरादि क्रिया तो स्वयं जडनी शक्तिथी थाय छे, तेनो तो तुं कर्ता नथी; पण तारा
आत्मप्रदेशोमां जे कंपन थाय ते पण तारुं खरुं स्वरूप नथी, निष्क्रिय एटले के अडोल–स्थिर–अकंप रहेवानो
तारो स्वभाव छे.