भाई! जो आत्मा न होय तो आ ईन्द्रियो क्यांथी जाणे? माटे जे जाणपणुं प्रवर्ते छे ते आत्मानी सत्तावडे जाण.
–ए रीते आत्मानुं होवापणुं त्यां सिद्ध कर्युं छे. अने अहीं तो जे आत्माना अस्तित्वने माने छे पण तेना
वास्तविक स्वरूपने नथी जाणतो ने परनो कर्ता माने छे, तेने आत्मानुं वास्तविक स्वरूप ओळखाववुं छे. भाई,
तारो आत्मा स्थिर स्वभावी छे, तारा आत्माना प्रदेशोमां जे परिस्पंदन थाय ते पण तारो स्वभाव नथी, तो
पछी ताराथी अत्यंत जुदा एवा जड पदार्थोने तारो आत्मा चलावे ए वात तो क्यां रही? प्रदेशोनुं कंपन तो
तारी पर्यायमां छे, परंतु परने हालववानुं तो तारी पर्यायमां पण नथी.
टाळीने निष्कंपदशा प्रगटे छे तेने अहीं निष्क्रियपणुं कह्युं छे.
उत्तर:– प्रदेशोना कंपनरूप क्रिया आत्मानो स्वभाव नथी ते अपेक्षाए तो आत्मा निष्क्रिय छे; पण
प्रतिमा थई गया छे, तेवो ज आत्मानो स्वभाव छे.
नथी, दरियो तो अंदरथी ऊछाळा मारतो मेलने बहार काढी नाखे छे, तेम आ आत्मा अनंत शक्तिओथी
ऊछळतो चैतन्य दरियो छे. हे जीव! अंतरमां अनंत शुद्ध शक्तिओथी भरचक चैतन्य–समुद्र ऊछळी रह्यो छे
तेने तो जो! अनंत शक्तिथी ऊछळता चैतन्य समुद्रने तो जे देखतो नथी ने कांठाना मेलनी माफक पर्यायना
क्षणिक विकारने ज देखे छे ने तेने ज आत्मा माने छे ते जीव लोकोत्तर मूर्ख एटले के मिथ्याद्रष्टि छे. अरे मूढ!
तारा आत्मानो स्वभाव तो अनंत शक्तिओना निर्मळ परिणमनरूपे ऊछळीने विकारने बहार काढी
नांखवानो छे, माटे अंतर्मुख नजर करीने आखा चैतन्य दरियाने देख, ने पर्याय बुद्धि छोड. शांतिनो दरियो
तारा आत्मस्वभावमां भर्यो छे, तेमां द्रष्टि कर तो तने शांतिनुं वेदन थाय, एना सिवाय बीजे क्यांयथी तने
शांतिनुं वेदन थाय तेम नथी.
भगवान आत्मा बताववो छे. लोको कहे छे के अमुक नेता तो पगना धमधमाटथी धरतीने धु्रजावे छे. –पण ए
तो बधुं देहनुं अभिमान छे, अहीं तो कहे छे के भाई! तारो आत्मा देहथी तो जुदो ने त्रिकाळ ध्रूजारा वगरनो
स्थिर–निष्क्रिय छे, तो ते परने कंपावे ए वात क्यां रही? माटे तारा आत्माना स्वभाव सामे जो... तो तारी
अनंत शक्तिओनुं शुद्ध परिणमन ऊछळतां पर्यायमांथी कंपन पण छूटीने सादि–अनंत अकंप एवी सिद्धदशा
प्रगटशे.