Atmadharma magazine - Ank 158
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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: मागशर: २४८३ : २१ :
जाय...शुं एने कांई खबर छे के ‘हुं आ बळदना शरीरथी जुदो आत्मा छुं?’ एने तो एम ज छे के हुं आ
बळदनुं शरीर ज छुं, मने तरस लागी छे ने हुं पाणी पीउं छुं. –पण देहथी भिन्न आत्मानो तेने कांई विचार
नथी. तेम जे जीवो आवो मनुष्य अवतार पामीने पण देहथी भिन्न आत्मानो विचार नथी करता तेओ पण...
ढोर जेवा छे...
भाई रे! आवो मनुष्य अवतार मळ्‌यो, तो हवे आत्माना स्वरूपनो जराक विचार तो करो.... के–
“हुं कोण छुं... क्यांथी थयो... शुं स्वरूप छे मारुं खरुं?”
अरे जीव! बीजा तो बधाय काम करवा माटे तने नवराश मळे छे ने त्यां तो होंस करे छे; तो हे भाई!
आत्मानुं कल्याण करवा माटे एक वार तेना विचार माटे अवकाश ले... ने तेनी होंश कर. आवो मनुष्य अवतार
वारंवार नथी मळतो... देवोने पण दुर्लभ एवो आ मनुष्य अवतार छे, देवो पण मनुष्य अवतारने झंखे छे के
“क्यारे मनुष्य अवतार पामीने अमे अमारी मुक्ति पामीए ने आ भवचक्रमांथी आत्माने छोडावीए!’ आ रीते
देवोने पण प्रिय एवो मनुष्य–अवतार पामेला हे देवानुप्रिय! देहथी भिन्न तारुं ज्ञानानंदस्वरूप छे तेनो तुं
विचार कर. आत्मानी ओळखाण वगर आ भवचक्रथी ऊगरवानो बीजो कोई आरो नथी.
जेम चणो सेकाई जाय पछी ते ऊगतो नथी ने मीठो लागे छे, तेम जेणे पोताना आत्मानुं सम्यक् भान
कर्युं छे ते जीव फरीफरीने आ भवभ्रमणमां पडतो नथी ने आत्माना आनंदनो स्वाद तेने आवे छे.
जेम अफीणमां कडवास छे, साकरमां गळपण छे, तेम आत्मामां आनंद छे; आत्मा पोते ज आनंदस्वरूप
छे. आनंदस्वरूप आत्मानी वात सांभळवा पण जीवोने नवराश नथी मळती! अरे, ईन्द्रो अने देवो पण जे
वात सांभळवा माटे स्वर्गमांथी अहीं आवे छे ते वात सांभळवा अहींना जीवोने नवराश पण मळती नथी, –
आत्माना हितनी दरकार पण करता नथी, ने संसारना धंधामां अवतार एळे गुमावे छे. सत् समजवा टाणे
तेनी जेओ दरकार करता नथी अने मांस–शिकार–दारू–परस्त्रीलंपटपणुं वगेरे महापाप करे छे तेओ अहींथी
मरीने नरकमां जाय छे. नरकमां महातीव्र दुःखवेदना होय छे. त्यां पण कोई जीवने एवो विचार ऊगे के अरेरे!
में पूर्वे आत्मानी दरकार करी नहि ने महापापमां जीवन वीताव्युं... संतो ज्ञानीओ मने कहेता हता के ‘तुं देहथी
भिन्न ज्ञानआनंदस्वरूप छो–तेनी ओळखाण कर.’ –पण ते वखते में तेनी दरकार करी नहि. –आम विचार
करतां करतां, पूर्वे आत्मानुं जे स्वरूप सांभळ्‌युं हतुं ते लक्षमां लईने तेनी ओळखाण करे छे. श्रेणिक राजा
अत्यारे नरकमां छे, पण तेमने त्यां पण आत्माना ज्ञानानंदस्वरूपनुं भान छे... ने त्यांथी नीकळीने तेओ
तीर्थंकर थवाना छे.
भाई! सत्समागमे शांतिथी श्रवण–मनन करीने आत्मानुं भान करवा जेवुं छे. जेणे आत्मानुं भान न
कर्युं तेणे कांई कर्युं नथी; भले व्रत–तप के दया–दान करे तो पण आत्माना हित माटे तेणे खरेखर कांई कर्युं नथी.
आत्माना भान वगर एकेय भव घटतो नथी. पूर्वे अनंतकाळमां बीजुं बधुं कर्युं, पुण्य करीने अनंतवार
स्वर्गनो देव पण थयो, –पण पूर्वे आत्मानी समजण एक क्षण पण करी नथी तेथी संसारमां ज रखडयो, माटे
आवो मनुष्य भव पामीने हवे जीवनमां आत्मानी समजण करी लेवा जेवुं छे.
(अनुसंधान पृष्ठ ८ थी शरू)
कह्युं के: ‘हे जीव! तीर्थंकर भगवाननो टेलिफोन आव्यो छे के जेवो अमारो आत्मा छे तेवो ज ज्ञान ने
आनंदस्वरूप तारो आत्मा छे, तेने तुं ओळख, वळी सम्यग्ज्ञान प्राप्त करीने आत्मामां मंगल–साथिया पूरवानी
बहु सरस वात पू. गुरुदेवे करी हती.
आ रीते जैनधर्मनो मंगलसंदेश फेलावता फेलावता अने पुनित पगलावडे पृथ्वीने पावन करता करता
पू. गुरुदेव शाश्वत तीर्थ सम्मेदशिखरजी धामनी यात्रा अर्थे विचरी रह्या छे. पू. गुरुदेवनो मंगल विहार भव्य
जीवोने कल्याणकारी हो... जयवंत हो.
(पू. गुरुदेवना मंगल विहारना सोनगढथी धंधुका सुधीना समाचार अहीं प्रसिद्ध कर्यां छे... त्यार
पछीना समाचारो हवे पछी प्रसिद्ध थशे.)