Atmadharma magazine - Ank 158
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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: २२ : आत्मधर्म : १५८
सोनगढमां नेमिनाथ भगवानी वेदीप्रतिष्ठानो भव्य महोत्सव
तीर्थधाम सोनगढमां श्री
दिगंबर जिनमंदिरनो पुनरोद्धार
करीने लगभग सवालाख रूा. ना
खर्चे जे भव्य–उन्नत जिनमंदिर तैयार
थयुं छे, तेमां उपरना भागमां
भगवान श्रीनेमिनाथ प्रभुनी
वेदीप्रतिष्ठानो महोत्सव कारतक सुद
९ थी १२ सुधी धामधूम पूर्वक
ऊजवायो. महोत्सवनी विधि माटे
मंडप श्रीजिनमंदिरना मंडपमां ज
करवामां आव्यो हतो. मंडपमां श्री
नेमिनाथ भगवान तेमज महावीर
भगवान बहु ज शोभता हता.
झंडारोपण विधि बाद प्रथम
अढीद्वीपमंडलनी रचना करीने
उल्लासपूर्वक वीस विहरमान
भगवंतोनुं पूजन करवामां आव्युं
हतुं. त्यारबाद ईन्द्रोनी प्रतिष्ठा अने
यागमंडल पूजनविधान थयुं हतुं.
वेदीशुद्ध–कलशशुद्धि–ध्वजशुद्धि वगेरे
कार्यक्रमो पण भक्तिपूर्वक थया हता.
तेमां केटलीक अगत्यनी विधिओ पू.
बेनश्रीबेनना पवित्र हस्ते थई हती.
आ मंगल प्रसंगे बहारगामथी हजार जेटला भक्तजनोए आवीने उल्लासथी भाग लीधो हतो. रात्रे
जिनमंदिरमां पूज्य बेनश्रीबेन उल्लासभरी विधविध तरेहनी भक्ति करावता हता. क्यारेक बेठा बेठा सीमंधर
भगवाननी अद्भुत भक्ति करावता–सीमंधर भगवान केवा वहाला? –के जेवा अंतरना ज्ञान वहाला, ए
वाणीथी केम कहेवाय? –एम अद्भुत भक्ति करता, तो वळी क्यारेक ऊभा ऊभा नेमिनाथ भगवानने
संबोधीने अद्भुत भक्ति करता... ‘म्हारा नेमिपिया गीरनारी चाल्या...” तथा “साहेली मारी नेमीश्वर
बनडानें गीरनारी जातां रोक लीजोये...” ईत्यादि स्तवनथी अद्भुत भक्ति करता.
भगवाननी प्रतिष्ठाविधिनो प्रसंग घणो ज अद्भुत हतो. जिनमंदिरना उपरना भागनी नूतनवेदीमां
गुरुदेवे अतिशय बहुमानपूर्वक परमपूज्य त्रिलोकनाथ नेमिप्रभु भगवानने बिराजमान कर्या... ने
जयजयनादथी जिनमंदिर छवाई गयुं. भक्तजनोए अपार हर्षथी जिनेन्द्रभगवानना स्वागत कर्या. पछी तरत
ज उपरना भागमां कलश तथा ध्वज चडाववा माटे पू. गुरुदेव शिखर उपर पधार्या. पू. बेनश्रीबेन पण शिखर
उपर पधार्या हता. भक्तोना महान जयजयकार वच्चे पू. गुरुदेवे धर्मध्वजने हाथ लगाडयो... ने जिनमंदिर
उपर आकाशमां लगभग ७५ फूट ऊंचे ए जिनेन्द्रदेवनो धर्मध्वज फरफरवा लाग्यो. तथा ४ा फूट जेवडो मोटो
‘सुवर्णकलश’ चडाववामां आव्यो. ने सुवर्णपुरीना