करीने लगभग सवालाख रूा. ना
खर्चे जे भव्य–उन्नत जिनमंदिर तैयार
थयुं छे, तेमां उपरना भागमां
भगवान श्रीनेमिनाथ प्रभुनी
वेदीप्रतिष्ठानो महोत्सव कारतक सुद
९ थी १२ सुधी धामधूम पूर्वक
ऊजवायो. महोत्सवनी विधि माटे
मंडप श्रीजिनमंदिरना मंडपमां ज
करवामां आव्यो हतो. मंडपमां श्री
नेमिनाथ भगवान तेमज महावीर
भगवान बहु ज शोभता हता.
झंडारोपण विधि बाद प्रथम
अढीद्वीपमंडलनी रचना करीने
उल्लासपूर्वक वीस विहरमान
भगवंतोनुं पूजन करवामां आव्युं
हतुं. त्यारबाद ईन्द्रोनी प्रतिष्ठा अने
यागमंडल पूजनविधान थयुं हतुं.
वेदीशुद्ध–कलशशुद्धि–ध्वजशुद्धि वगेरे
कार्यक्रमो पण भक्तिपूर्वक थया हता.
तेमां केटलीक अगत्यनी विधिओ पू.
बेनश्रीबेनना पवित्र हस्ते थई हती.
भगवाननी अद्भुत भक्ति करावता–सीमंधर भगवान केवा वहाला? –के जेवा अंतरना ज्ञान वहाला, ए
वाणीथी केम कहेवाय? –एम अद्भुत भक्ति करता, तो वळी क्यारेक ऊभा ऊभा नेमिनाथ भगवानने
संबोधीने अद्भुत भक्ति करता... ‘म्हारा नेमिपिया गीरनारी चाल्या...” तथा “साहेली मारी नेमीश्वर
बनडानें गीरनारी जातां रोक लीजोये...” ईत्यादि स्तवनथी अद्भुत भक्ति करता.
जयजयनादथी जिनमंदिर छवाई गयुं. भक्तजनोए अपार हर्षथी जिनेन्द्रभगवानना स्वागत कर्या. पछी तरत
ज उपरना भागमां कलश तथा ध्वज चडाववा माटे पू. गुरुदेव शिखर उपर पधार्या. पू. बेनश्रीबेन पण शिखर
उपर पधार्या हता. भक्तोना महान जयजयकार वच्चे पू. गुरुदेवे धर्मध्वजने हाथ लगाडयो... ने जिनमंदिर
उपर आकाशमां लगभग ७५ फूट ऊंचे ए जिनेन्द्रदेवनो धर्मध्वज फरफरवा लाग्यो. तथा ४ा फूट जेवडो मोटो
‘सुवर्णकलश’ चडाववामां आव्यो. ने सुवर्णपुरीना