मुमुक्षु नो मार्ग
नियमसारना १६५मा श्लोकमां टीकाकार मुनिराज कहे छे के:
हुं मुमुक्षुंमार्गे जाउं छुं... मुमुक्षुओ जे मार्गे चालीने मुक्ति पाम्या ते मार्गे हुं जाउं छुं. मारा स्वभावरूप
कारण परमात्मानो आश्रय करीने... सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र प्रगट करीने हुं मोक्षमार्गे जाउं छुं–के जे मार्गे
मुमुक्षुओ चाल्या छे. पूर्वे जे सिद्धभगवंतो थया तेओ आ मार्गे चालीने ज मुक्त थया छे, हुं पण हवे ते ज मार्गे
जाउं छुं, विभावना मार्गे हुं जतो नथी. अनादिनो पुण्य–पापरूपी जे संसारमार्ग तेने छोडीने हवे हुं ज्ञानानंद
स्वभावमां वळुं छुं... हवे हुं वीतरागी मोक्षमार्गे जाउं छुं. बधाय मुमुक्षुओने आ एक ज मोक्षमार्ग छे. मुमुक्षुओ
ते मार्गनुं अनुसरण करो.
“श्रमणो जिनो तीर्थंकरो आ रीत सेवी मार्गने
सिद्धि वर्या, नमुं तेमने, निर्वाणना ते मार्गने.”
आत्मधर्मना ग्राहकोने
आ अंकथी “आत्मधर्म”नुं प्रकाशन आनंद प्रेस–भावनगरथी थाय छे. अत्यार सुधी तेनुं प्रकाशन
वल्लभविद्यानगरथी थतुं तेने बदले हवेथी भावनगरथी थशे. अने व्यवस्था पण त्यांथी ज थशे, माटे व्यवस्था
बाबतनो पत्रव्यवहार हवेथी नीचेना सरनामे करवो:– आनंद प्रेस–भावनगर
– सर्वज्ञदेवे जे कह्युं ते झीलीने –
संतो सर्वज्ञना मार्गे चाल्या जाय छे
श्री पंचास्तिकायनी १०मी गाथामां...‘भण्णंति सव्वण्हू’ एम कहीने कुंदकुंदाचार्यदेव जाहेर करे छे के
सर्वज्ञ भगवाने जे कह्युं छे ते अमे झील्युं छे.
अहो, सर्वज्ञनाथ! आपे सर्वज्ञताथी जगतना सर्व पदार्थोने एक क्षणमां उत्पाद–व्यय–ध्रौव्यात्मक जोया,
अने जेवा जोया तेवा ज कह्या. हे देव! पदार्थोनुं आवुं स्वरूप आपना सिवाय बीजा कोईए प्रत्यक्ष जोयुं नथी
ने बीजे क्यांय कह्युं नथी. अने आपना शासनना भक्त सिवाय बीजो कोई तेनी यथार्थ प्रतीत करी शकतो
नथी.
हे सर्वज्ञ भगवान! आप कहेनारा, अने अमे ते सांभळनारा! आपे जे कह्युं ते अमे झील्युं.......ते
झीलीने अमे पण आपना मार्गे चाल्या आवीए छीए...तेथी अमे पण हवे अल्पकाळे आपना जेवा सर्वज्ञ
थवाना छीए. [का. सुद १४: विहार पहेलांना सोनगढना छेल्ला प्रवचनमांथी]
‘अमे हवे प्रभुना मार्गमां भळ्या छीए.’
जेने अंर्तपलटो थाय तेने कोईने पूछवा जवुं न पडे, तेनुं अंतर बेधडक पडकार मारतुं साक्षी आपे के
अमे हवे प्रभुना मार्गमां भळ्या छीए, सिद्धना संदेशा आवी चूकया छे, हवे टूंका काळे सिद्ध थये छूटको, तेमां
बीजुं कांई थाय नहि, फेर पडे नहि.
सम्यग्दर्शन प्रगट थतां आत्मानो अनुभव थाय छे. जेवो सिद्धभगवानने अनुभव होय छे तेवो चोथे
गुणस्थाने समकिती जीवने अनुभव होय छे; सिद्धने पूर्ण अनुभव होय छे ने समकितीने अंशे अनुभव होय
छे,–पण जात तो ते ज. समकिती आनंदसागरना अमृतनो अपूर्व स्वाद लई रह्यो छे, आनंदना झरणामां मोज
माणी रह्यो छे.
जेने साची श्रद्धा प्रगटे तेनुं आखुं अंतर फरी जाय, हृदयपलटो थई जाय, अंतरमां ऊथलपाथल थई
जाय, आंधळामांथी देखतो थाय; अंतरमां ज्योत जागे तेनी दशानी दिशा आखी फरी जाय.
–पू. बेनश्रीबेन लिखित समयसार–प्रवचनोमांथी
वार्षिक लवाजम रूपिया त्रण : : : छूटक नकल चार आना