Atmadharma magazine - Ank 158
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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वर्ष चौदमुं सम्पादक मागशर
अंक बीजो रामजी माणेकचंद दोशी २४८३
धर्मपिताना धामां
तीर्थंकरो अने संतोना पुनित चरणोथी पावन
थयेली भूमिमां ज्ञानीओ ज्यारे तीर्थयात्रा करवा जाय
छे त्यारे तेमने एम नथी लागतुं के अमे परदेशमां
आव्या छीए; पण तेमने तो एवा भावो उल्लसे छे
के अहो! आ तो अमारा धर्मपितानो देश! तीर्थंकरो
अने संतो अमारा धर्मपिता छे... अमे अमारा
धर्मपिताना आंगणे आव्या छीए... अमे अमारा
धर्मपितानो ज्ञान अने आनंदनो वारसो लेवा आव्या
छीए... हे नाथ! आप अमारा धर्मपिता छो... अमे
आपना पुत्र छीए... आपना पगले पगले... आपना
पुनित पंथे सिद्धिधाममां आवीए छीए...
आम भगवानना पगले पगले चालनारा
संतो ज भगवाननी खरी यात्रा करे छे.
नमस्कार हो... ए सिद्धिधामना यात्रिक संतोने.