: मागशर: २४८३ : ७ :
परमपूनित तीर्थधाम श्री सम्मेदशिखरजी
एम भक्तिथी गातां गातां, जयजयकारपूर्वक सम्मेदशिखरजीने याद करता जता हता... वच्चे झाडी अने
पहाडीना रमणीय द्रश्यो जोतां शिखरजी धामनां द्रश्यो याद आवता हता.
सोनगढथी विहार करीने लगभग दस वागे वल्लभीपुर आव्या. वल्लभीपुरना ठाकोरसाहेबे पू. गुरुदेवनुं
सन्मान कर्युं. दरबारगढना गेस्टहाउसमां उतारो हतो. बपोरे पू. गुरुदेवना प्रवचनमां हजार उपरांत माणसोए
लाभ लीधो. सोनगढथी पण अनेक मुमुक्षु भाई–बहेनो आव्या हता. पू. गुरुदेवे पद्मनंदी पचीसीना
एकत्वअधिकारनी पहेली गाथा उपर मंगल प्रवचन कर्युं.
रात्रिचर्चामां वल्लभीपुरना राजा प्रवीणसिंहजीए प्रश्न पूछयो के: “आ जीवने कोई पण कारण वगर
क्यारेक खूब प्रसन्नता देखाय छे ने क्यारेक ते खूब खेदखिन्न बनी जाय छे–तेनुं शुं कारण हशे? ”
तेना उत्तरमां पू. गुरुदेवे कह्युं: जीवने मंदकषाय होय ने ए जातनो सातानो उदय होय एटले तेवी
प्रसन्नता लागे पण ते कांई खरी प्रसन्नता नथी. जीव पोताना अकषायी आनंदने चूकी गयो छे एटले
मंदकषायमां तेने प्रसन्नता लागे छे. आत्मा पोते आनंद स्वभावी छे, ते आनंदस्वभावी आत्माना भानपूर्वक
तेना अतीन्द्रिय आनंदनुं जे वेदन थाय ते ज खरी प्रसन्नता छे. ज्ञानस्वभावने पकडतां जे आनंद आवे ते
अतीन्द्रिय आनंद कहेवाय... ने तेमां ज आत्मानी खरी प्रसन्नता छे. ज्ञानस्वभावी आत्माना लक्ष वगर जे
प्रसन्नता देखाय छे ते तो सातानो उदय छे, ने जे खेदखिन्नता थाय छे ते असातानो उदय छे. आत्माना लक्ष
वगर जे प्रसन्नता लागे छे ते कांई खरो आनंद नथी, ते तो मंदकषाय छे, एटले ते पण कषाय छे–दुःख छे.
आत्मानी अकषायी शांतिनुं वेदन थाय ते ज खरी प्रसन्नता छे.
वल्लभीपुरमां विहारनी शुभ शरूआतमां ज पू. गुरुदेवना चरणोमां एक राजवीनुं शिर झूकयुं... ए एक
मंगळसूचक प्रसंग बन्यो.
रात्रिचर्चा पूरी थतां वल्लभीपुरनो कार्यक्रम पूरो थयो.
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कारतक वद एकम, सोमवार ता. १९
सवारमां वहेला उठीने श्री जिनेन्द्र भगवाननुं स्तवन कर्युं... ने पू. गुरुदेवे वल्लभीपुरथी पाटणा तरफ
विहार कर्यो. विहारमां वच्चे ‘मूळ धराई’ गाम आव्युं, त्यां बंधायेली नवी निशाळमां पू. गुरुदेवना पगलां
करावीने तेनुं उद्घाटन कर्युं... त्यांथी आगळ पाटणा पहोंचता लोकोए उमंगथी स्वागत कर्युं.