Atmadharma magazine - Ank 159
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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: पोष: २४८३ आत्मधर्म : ११ :
अनेकान्तमूर्ति भगवान आत्मानी
[२४]
नियतप्रदेशत्व शक्ति
आत्मामां अनंत शक्तिओ होवा छतां ते ज्ञानमात्र छे, ज्ञानभावमां बधुं समाई जाय छे, एटले के ज्ञाने
अंतर्मुख स्वभाव साथे एकता करीने ज्यां आत्म–स्वभावने अनुभवमां लीधो त्यां आत्माना अनुभवमां
एकलुं ज्ञान ज नथी पण आनंद वगेरे अनंतशक्तिओ पण निर्मळ पर्यायसहित अनुभवाय छे. एकेक शक्तिनो
जुदो जुदो अनुभव नथी पण अभेद आत्माना अनुभवमां अनंतशक्तिनो रस भेगो ज छे. ते ओळखाववा
अहीं आत्मानी शक्तिओनुं अद्भुत वर्णन आचार्यदेवे कर्युं छे. तेमां २४मी ‘नियनप्रदेशत्व शकित’ छे. ते केवी
छे?–“आत्मानुं निजक्षेत्र असंख्य प्रदेशी छे, ते अनादिसंसारथी मांडीने संकोच–विस्तारथी लक्षित छे अने
मोक्षदशामां ते चरमशरीरना परिमाणथी कंईक ऊणा परिमाणे अवस्थित थाय छे; आवुं लोकाकाशना माप
जेटला असंख्य आत्म–अवयवपणुं ते नियत–प्रदेशत्व शक्तिनुं लक्षण छे.”–आवी पण एक शक्ति आत्मामां छे.
बहारमां जे आ नाक–कान वगेरे शरीरना अवयवो छे ते तो जड छे, ते कांई आत्माना अवयव नथी.
आत्मा तो अरूपी–अवयववाळो छे, ने असंख्य प्रदेशो ते ज तेना अवयवो छे. लोकाकाशना प्रदेशोनी जेटली
संख्या छे तेटली ज आत्माना अवयवोनी संख्या छे; अने ते दरेक अवयव ज्ञान–आनंद वगेरे शक्तिथी
भरेला छे.
आत्माना प्रदेशो लोक जेटला होवा छतां ते लोकमां फेलाईने रहेलो नथी, केवळी–समुद्घात वखते मात्र
अमुक समये ज लोकव्यापकपणे तेना प्रदेशो विस्तरे, अने ते समुद्घात केवळज्ञानीने ज होई शके. ए सिवाय
संसारदशामां ते ते शरीरप्रमाणे आत्माना प्रदेशोनो संकोच–विस्तार थाय छे. हाथीना मोटा शरीरमां जे आत्मा
रहेलो छे तेना असंख्य प्रदेशो तेटला विस्तार पाम्या छे, ने कीडीना शरीरमां जे आत्मा रहेलो छे तेना असंख्य
प्रदेशो तेटला संकोच पाम्या छे, छतां असंख्य प्रदेशो तो बंनेमां सरखा ज छे.
प्रश्न:– ज्यारे मोटा शरीरमां विस्तार पामे त्यारे जीवना प्रदेशो वधी जाय, ने ज्यारे नाना शरीरमां
संकोच पामे त्यारे जीवना प्रदेशो घटी जाय–एम बने के नहीं?
उत्तर:– ना; आत्माना ‘नियत असंख्य प्रदेश’ छे, ते तो त्रिकाळ तेटला ज रहे छे, तेमां एक पण प्रदेश