
एकलुं ज्ञान ज नथी पण आनंद वगेरे अनंतशक्तिओ पण निर्मळ पर्यायसहित अनुभवाय छे. एकेक शक्तिनो
जुदो जुदो अनुभव नथी पण अभेद आत्माना अनुभवमां अनंतशक्तिनो रस भेगो ज छे. ते ओळखाववा
अहीं आत्मानी शक्तिओनुं अद्भुत वर्णन आचार्यदेवे कर्युं छे. तेमां २४मी ‘नियनप्रदेशत्व शकित’ छे. ते केवी
छे?–“आत्मानुं निजक्षेत्र असंख्य प्रदेशी छे, ते अनादिसंसारथी मांडीने संकोच–विस्तारथी लक्षित छे अने
मोक्षदशामां ते चरमशरीरना परिमाणथी कंईक ऊणा परिमाणे अवस्थित थाय छे; आवुं लोकाकाशना माप
जेटला असंख्य आत्म–अवयवपणुं ते नियत–प्रदेशत्व शक्तिनुं लक्षण छे.”–आवी पण एक शक्ति आत्मामां छे.
संख्या छे तेटली ज आत्माना अवयवोनी संख्या छे; अने ते दरेक अवयव ज्ञान–आनंद वगेरे शक्तिथी
भरेला छे.
संसारदशामां ते ते शरीरप्रमाणे आत्माना प्रदेशोनो संकोच–विस्तार थाय छे. हाथीना मोटा शरीरमां जे आत्मा
रहेलो छे तेना असंख्य प्रदेशो तेटला विस्तार पाम्या छे, ने कीडीना शरीरमां जे आत्मा रहेलो छे तेना असंख्य
प्रदेशो तेटला संकोच पाम्या छे, छतां असंख्य प्रदेशो तो बंनेमां सरखा ज छे.