Atmadharma magazine - Ank 159
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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: १२ : आत्मधर्म : पोष: २४८३
घटतो के वधतो नथी. गमे तेटलो मोटो आकार थाय तेथी कांई एकेय प्रदेश वधी जतो नथी, तेम ज गमे तेटलो
नानो आकार थाय तो पण एकेय प्रदेश घटी जतो नथी. नाना के मोटा गमे ते आकारमां सरखे–सरखा असंख्य
प्रदेशो रहे छे.
प्रश्न:– तो पछी, ज्यारे जीवनो आकार संकोचाय त्यारे तेना प्रदेशो नाना मापना थई जाय अने ज्यारे
जीवनो आकार विकास पामे त्यारे तेना प्रदेशो मोटा थई जाय एम छे?
उत्तर:– ना; प्रदेश एटले सौथी छेल्लो अंश; ते कदी नानो–मोटो थतो नथी. एक जीव पहेलांं कीडीना
शरीरमां रहेलो हतो त्यारे तेनो आकार तेवो संकोचायेलो हतो, ने पछी ते ज जीव हाथीना शरीरमां आवता
तेनो आकार विस्ताररूप थयो, पण तेथी कांई ते जीवना प्रदेशो मोटा नथी थई गया, प्रदेशो तो एवडा ने
एवडा ज छे, तेमनी संख्या पण एटली ने एटली ज छे.
प्रश्न:– जो जीवना प्रदेशोनी संख्या पण घटती–वधती नथी ने तेना प्रदेशोनुं माप पण नानुं–मोटुं थतुं
नथी, प्रदेशो जेटला छे तेटला ज रहे छे ने जेवडा छे तेवडा ज रहे छे,–तो जीवमां संकोच–विस्तार कई रीते
थाय छे?
उत्तर:– प्रदेशोनी ते प्रकारनी हीन–अधिक अवगाहनाथी संकोच–विस्तार थाय छे; लोकना असंख्य प्रदेश
अने एक जीवना असंख्य प्रदेश ए बंने सरखा छे; लोकना एकेक प्रदेशे जीवना जेम जेम वधु प्रदेशो
अवगाहीने रहे तेम तेम जीवना आकारनो संकोच थाय छे, ने लोकना एक प्रदेशे जीवना जेम जेम ओछा प्रदेशो
रहे तेम तेम जीवना आकारनो विकास थाय, ए रीते संकोच–विस्तार थाय छे. दाखला तरीके–जीव ज्यारे आखा
लोकमां अवगाहीने रह्यो होय त्यारे लोकना दरेक प्रदेशे जीवनो एकेक प्रदेश छे, अने ज्यारे अर्धा लोकने
व्यापीने जीव रहे त्यारे लोकना दरेक प्रदेशे जीवना बब्बे प्रदेशो होय, ए ज प्रमाणे ज्यारे लोकना असंख्यातमा
भागने व्यापीने जीव रहे त्यारे लोकना एकेक प्रदेशे जीवना ‘असंख्यातमा भागना असंख्य’ प्रदेशो रहेला छे.
जीवना असंख्य प्रदेशोनुं माप एटलुं मोटुं छे के तेने असंख्यथी भागतां पण असंख्य आवे छे. वळी जीवनो
अवगाहन स्वभाव पण एवो ज छे के गमे तेटलो ते संकोचाय तो पण असंख्य प्रदेशने तो ते रोके ज;
संकोचाईने एक ज प्रदेशमां जीवना बधा प्रदेशो रही जाय–एवो संकोच जीवमां कदी थतो नथी. कंदमूळनी,
सोयनी अणी उपर रहे एटली नानी कटकीमां पण असंख्य शरीरो छे ने एकेक शरीरमां अनंत जीवो रहेला छे,
ते दरेक जीवे पण असंख्य प्रदेशो रोकया छे.
प्रश्न:– आखा लोकना प्रदेशो तो असंख्यात ज छे, ने लोकमां जीवो तो अनंतानंत छे, तो ते बधा जीवो
लोकमां कई रीते समाया?
उत्तर:– जीवनो अमूर्त स्वभाव छे एटले ज्यां एक जीव रहेलो छे त्यां ज बीजा जीवना प्रदेशो पण रही
शके छे, अने ए रीते भिन्न भिन्न अनंत जीवोना अनंत प्रदेशो एक प्रदेशे रही शके छे. एक ज जीवना पूरा–
असंख्य प्रदेशो एक प्रदेशे कदी न रहे (केमके जीवना प्रदेशोमां ज ए प्रकारनो संकोच थवानो स्वभाव नथी),
परंतु जुदा जुदा अनंत जीवोना अनंत प्रदेशो एक ज प्रदेशे रहेला छे. ए रीते लोकना असंख्य प्रदेशोमां
अनंतानंत जीवो समायेला छे. लोकाग्रे ज्यां एक सिद्धभगवान छे त्यां ज बीजा अनंत सिद्धभगवंतो बिराजे
छे, छतां बधा भिन्न भिन्न छे, दरेकने पोतपोतानो आनंद जुदो छे, दरेकने पोतपोतानुं ज्ञान जुदुं छे, दरेकने
पोतपोताना आत्मप्रदेशो जुदा छे, ए रीते एक क्षेत्रे अनंतसिद्धो होवा छतां दरेकनुं अस्तित्व जुदुं जुदुं छे. जे
अज्ञानीओने आवा स्वभावनी खबर नथी तेओने एवो भ्रम थाय छे के मुक्तजीवो एकबीजामां ज्योतमां
ज्योत मिलाय–तेम भळी गया छे, ने त्यां जीवो जुदा जुदा नथी. परंतु आचार्यदेव कहे छे के जीवमां नित्य–
असंख्य प्रदेश होवारूप शक्ति छे, तेथी पोताना स्वतंत्र असंख्य प्रदेशरूपे ते त्रिकाळ टकी रहे छे.
* “असंख्य”ना एक बीजाथी चडियाता नव प्रकारो छे, तेमांथी जीवना प्रदेशोनुं जे असंख्यपणुं छे ते
आठमा प्रकारनुं छे, तेने “मध्यम असंख्यात असंख्यात” कहेवाय छे. तेनो असंख्यातमो भाग ते पण
असंख्य छे.