: पोष: २४८३ आत्मधर्म : १३ :
असंख्य प्रदेश एटला ने एटला रहीने, संसार अवस्थामां जीवनी आकृतिमां संकोच–विकास थया करे
छे, पण मुक्ति थया पछी सिद्धदशाना पहेला समये जेवो आकार होय तेवो आकार सदाय रहे छे, पछी त्यां
संकोच–विकास थतो नथी. अहीं ‘चरमशरीरथी किंचित् न्यून आकारे अवस्थित’ एवा असंख्य प्रदेशीपणाने
नियतप्रदेशत्व शक्तिनुं लक्षण कह्युं, चरमशरीर तो मोक्षगामीने ज होय; एटले मोक्षगामी जीवनी वात लीधी.
जे जीव आत्मानी शक्ति तरफ वळ्यो छे ते अल्पकाळमां ज चरमशरीरी थईने अशरीरी–सिद्ध थई जशे.
प्रश्न:– सिद्धदशामां आकार होय?
उत्तर:– हा; जीवना असंख्य प्रदेशो छे तेनो सिद्धदशामां पण आकार होय छे.
प्रश्न:– सिद्धदशामां जीवनो केवो आकार होय?
उत्तर:– चरमशरीरथी किंचित् न्यून, एटले के मोक्षदशा पहेलांनुं जे छेल्लुं शरीर हतुं ते शरीरना
आकारथी जराक ओछा मापनो आकार सिद्धदशामां होय छे. अहीं ‘चरमशरीरथी किंचित् न्यून’ कह्युं छे, तेने
बदले चरमशरीरथी त्रीजा भागे न्यून केटलाक माने छे तेमनी मान्यता बराबर नथी. शरीरना केश–नख वगेरे
केटलाक भागमां आत्मप्रदेशो नथी–ते बाद करीने किंचित्न्यून आकार कहेवाय छे.
बधाय सिद्धभगवंतोने ज्ञान सरखुं, आनंद सरखो, प्रभुता सरखी, आत्मप्रदेशोनी संख्या सरखी, परंतु
आकार एक सरखो ज बधायनो होय–एवो नियम नथी. जो के एकसरखा आकारवाळा पण अनंता सिद्ध छे,
छतां बधाय सिद्धनो आकार एकसरखो ज होतो नथी; कोईनो आकार मोटो होय, कोईनो नानो होय; जेमके
बाहुबली भगवान परम धनुष ऊंचा हता ने महावीर भगवान १ धनुष ऊंचा हता, सिद्धदशामां पण तेमनो
आकार ते प्रकारे जुदो जुदो ज छे.
प्रश्न:– सिद्ध भगवान तो बधाय सरखा, छतां त्यांय मोटा–नानापणुं?
उत्तर:– ए तो एम बतावे छे के आकारना मोटा–नानापणा साथे ज्ञान–आनंदनुं माप नथी. सवा–
पांचसो धनुषनो मोटो आकार होय माटे तेने ज्ञान–आनंद वधारे, ने एक धनुष जेवडो आकार होय माटे तेने
ज्ञानआनंद ओछा–एम नथी. प्रदेशो तो बंनेना सरखा ज छे. कोई जीवनो आकार नानो होय छतां बुद्धि उग्र
पण होय, ने कोई जीवनो आकार मोटो भेंस जेवो होय छतां बुद्धि अल्प पण होय; केमके ज्ञान वगेरे गुणनुं
कार्य जुदुं छे, ने प्रदेशोना आकारनी रचना थवानुं कार्य जुदुं छे. ओछी अवगाहना होय तेथी कांई आत्मानी
शक्तिओ के प्रदेशो ओछा थई जता नथी, ने ओछी अवगाहनाने कारणे कांई आत्माना परिपूर्ण ज्ञान–आनंद
के प्रभुताने बाधा आवती नथी, तेथी मुक्तदशा थतां आत्मानो आकार सर्वव्यापक थई जाय–एवुं कांई नथी.
जेनी द्रष्टिमां आत्मानी स्वभावशक्तिनो महिमा न आव्यो तेनी द्रष्टि बाह्यक्षेत्र उपर गई, एटले
बाह्यमां क्षेत्रनी विशाळताथी (सर्वव्यापकपणाथी) आत्मानो महिमा कल्प्यो, पण आ शरीरप्रमाण मारा
आत्माना असंख्य प्रदेशमां ज मारी अनंतशक्तिथी परिपूर्ण प्रभुता भरी छे. एनो विश्वास न आव्यो. एटले
आत्माने शरीरप्रमाण न मानतां सर्वव्यापक माने छे तेने आत्माना स्वभावनी खबर नथी, ते मिथ्याद्रष्टि छे
एम जाणवुं.
अहो, आत्मानी एकेक शक्तिना, वर्णनमां केटली स्पष्टता भरी छे! आवी निजशक्तिने ओळखे तो
अंतरमां भगवान आत्मानो प्रसिद्ध अनुभव थया विना रहे नहीं.
आत्मानी शक्ति शुं तेना स्वभावनी प्रतीत करीने तेना अनुभवमां लीन थवुं ते धर्म छे. आत्मा
असंख्य चैतन्य प्रदेशोनो पिंड छे, ने तेमां ज्ञानादि अनंत गुणो छे. आत्मामां प्रदेशोनी संख्या थोडी छे ने
गुणोनी संख्या अनंती छे. प्रदेश अपेक्षाए जे एक अंश छे ते बीजे ठेकाणे नथी, एवा असंख्य अंशोरूप
आत्मानुं स्वक्षेत्र छे. आत्मामां अनंतगुणो छे ते दरेक गुण तो असंख्य प्रदेशमां व्यापीने रहेलो छे, पण
आत्माना असंख्य प्रदेशोमांथी एक प्रदेश बधा प्रदेशमां व्यापतो