
आनंद एम भिन्न भिन्न क्षेत्र नथी, पण एकेक प्रदेशे सर्वे गुणो एक साथे रहेला छे. एटले, एक प्रदेशे सर्वे
गुणो छे पण एक प्रदेशे सर्वे प्रदेशो नथी.
थया ज करे एवो पण आत्मानो स्वभाव नथी; असंख्यप्रदेश अनंतगुणथी भरेला कायम रह्या करे–एवो
स्वभाव छे. सिद्धदशा थतां आत्माना असंख्य प्रदेशो संकोच–विस्तार थया विना एम ने एम स्थिर रही जाय
छे. संकोच–विकासरूप भिन्न भिन्न आकारो–वडे आत्मा एकरूप लक्षित थतो नथी, केमके कोई पण आकार
त्रिकाळ नथी रहेतो, तेथी संकोच–विस्तारवडे तो मात्र एक समयनो व्यवहार लक्षित थाय छे, ने आत्मानुं
असंख्यप्रदेशीपणुं तो त्रिकाळ एकरूप रहे छे, एटले ते द्रव्यनो स्वभाव छे. –आम होवा छतां एकलुं असंख्य
प्रदेशीपणुं ते कांई आत्मानुं लक्षण नथी, केम के असंख्यप्रदेशीपणुं तो धर्मास्तिकाय वगेरे जड द्रव्योमां पण छे;
आत्मानुं लक्षण तो ‘ज्ञान’ छे, तेना वडे ज आत्मा लक्षित थाय छे. अहीं ‘ज्ञानलक्षण’ तेने ज कह्युं के जे ज्ञान
अंतर्मुख थईने आत्माने लक्षित करे,–आत्माने प्रसिद्ध करे,–आत्मानो अनुभव करे. जो राग साथे एकता करीने
रागने ज प्रसिद्ध करे–तेनो ज अनुभव करे, ने रागथी भिन्नपणे आत्माने न प्रसिद्ध करे,–न अनुभवे तो ते
ज्ञान खरेखर ज्ञान ज नथी पण अज्ञान छे, ने तेने आचार्यदेव आत्मानुं लक्षण नथी कहेता. अहीं तो ज्ञानवडे
पोते पोताना आत्माने प्रसिद्ध करवानी वात छे; जे ज्ञान पोते पोताना आत्माने प्रसिद्ध न करे ने परने ज
प्रसिद्ध करे तो तो ते परनुं लक्षण थई गयुं, ते आत्मानुं लक्षण न थयुं.–एटले के ते ज्ञान मिथ्या थयुं.
आत्मामां ज एवी लायकात छे के तेना प्रदेशो संसार–अवस्थामां संकोच–विकास पामे. ते उपरांत अहीं तो एम
बतावे छे के संकोच–विकास जेटलुं ज आत्मानुं त्रिकाळी स्वरूप नथी, असंख्यप्रदेशीपणु नियत छे–एकरूप छे,
तेथी ते जीवनुं कायम स्वरूप छे. आ उपरांत प्रदेशोमां एवुं पण नियतपणुं छे के तेनुं स्थान पण बदले नहि,
संकोच–विकास थाय पण नीचेनो प्रदेश उपर आवी जाय के उपरनो प्रदेश नीचे आवी जाय–एम प्रदेशनुं स्थान
पलटे नहि. आत्माना आवा असंख्य प्रदेशोनो निर्णय आगमथी ने युक्तिथी थाय, पण छद्मस्थने ते प्रत्यक्ष न
देखाय; जेम ज्ञान–आनंदनुं तो साक्षात् वेदन थाय छे, तेम असंख्य प्रदेशो साक्षात् न देखाय; परंतु, जेटला
भागमां मने मारा ज्ञान–आनंदनुं वेदन थाय छे तेटला असंख्य प्रदेशमां ज मारुं अस्तित्व छे–एम निर्णय थई
शके.
अमुक ज आकारवाळो कही शकातो नथी, पण ‘असंख्यप्रदेशी जीव’ एम कही शकाय छे. असंख्य प्रदेश कह्या ने
छतां तेने निश्चय कह्यो, केमके असंख्यप्रदेशी कहीने कांई असंख्य भेद नथी बताववा, पण जीवनुं नित्य एकरूप
स्वरूप बताववुं छे. जीवमां असंख्य–प्रदेशीपणुं निगोददशा वखते पण छे ने सिद्धदशा वखते पण छे,–
अनादिअनंत छे, तेथी तेने निश्चय कह्यो. अने निगोददशाना संकोचरूप आकार वखते सिद्धदशानो आकार नथी,
तथा सिद्धदशाना आकार वखते निगोद वगेरेनो आकार नथी, ए रीते संकोच–विकासरूप आकारमां एकरूपता
नथी पण ते क्षणिक अने जुदा जुदा अनेक रूप छे तेथी तेने व्यवहार कहेवाय छे.
वगेरेनो आकार आत्मा करे–एम कदी बनतुं नथी. बळदना शरीर उपर कांकरो पडतां आखुं य शरीर