: पोष: २४८३ आत्मधर्म : १७ :
आनंदमय मांगळिक
[बरवाळा धामां पू. गुरुदेवनुं मंगलाचरण]
कारतक वद त्रीज
आत्माना अतीन्द्रिय आनंदनुं
वेदन थाय ते मांगळिक छे
मांगळिक एटले शुं? मंग एटले आत्मानी पवित्रता, तेने जे लावे ते मांगळिक छे. अथवा मंग एटले
पाप, तेने जे गाळे–नाश करे ते मांगळिक छे. आत्माना ज्ञानानंदस्वरूपनी श्रद्धा करवी–ज्ञान करवुं–एकाग्रता
करवी एवो जे भाव ते पोते मंगळ छे. तीर्थंकर भगवंतोए जे परमानंददशा प्राप्त करी ते क्यांथी करी? पोताना
आत्मामांथी ज ते दशा प्राप्त करी छे. सुख–आनंद–शांति ते आत्मामां ज छे, बहारना विषयोमां क्यांय सुख–
शांति के आनंद नथी. आवा आत्मानुं भान करवुं ते मंगळ छे.
हुं कोण छुं–शुं मारुं स्वरूप छे ते जीवे कदी विचार्युं नथी. भगवान कहे छे के अहो जीवो! तमे देहादिथी
भिन्न चैतन्यतत्त्व छो... ज्ञान ने आनंद तमारो स्वभाव ज छे, पण तेने भूलीने जीव बहारमां सुख मानीने
संसारमां रखडे छे, ते अमंगळ छे; ने आत्माना ज्ञानद्वारा तेनो जे नाश करे ते मंगळ छे. आत्माना अतीन्द्रिय
आनंदनुं वेदन थाय ते मांगळिक छे.
आत्मानी सम्यक्श्रद्धा–ज्ञान करीने जेओ परमात्मा थया एवा अर्हंतो मांगळिक छे, सिद्धो मांगळिक छे,
साधुओ मांगळिक छे, ने तेमनो करेलो धर्म ते मांगळिक छे. पोते तेनुं भान करे तो पोतामां मंगळ थाय.
आत्माना ज्ञान वगर जन्म–मरणनो कदी आरो आवे तेम नथी.
भाई, आ देह तारो नथी, तेमां तारो आनंद नथी. आनंद तो तारा आत्मामां छे. तेनुं तें कदी भान कर्युं
नथी. अनंतकाळनो अजाण्यो मार्ग सत्समागम वगर अने पोतानी पात्रता वगर समजाय तेवो नथी. भगवान
तीर्थंकर देवोए जे कर्युं ते प्रमाणे करवानुं जगतने कह्युं. आत्माना ज्ञानानंद स्वभावमां ज परमात्मा थवानी
ताकात छे: तेमां एकाग्रतावडे ज अनंता जीवो परमात्मा थया अने भगवाने ए ज उपदेश आप्यो के आत्माना
ज्ञानानंदस्वरूपमां एकाग्रता करो. आ संतोनो राह छे. जेम कस्तूरीमृग पोतामां रहेली कस्तूरीनी सुगंध
बहारमां ढूंढे छे, तेम अज्ञानी प्राणी पोताना आनंद–स्वभावने भूलीने बहारमां आनंद ढूंढे छे. आत्माना
ज्ञानानंद स्वरूपनुं भान करवुं ते ज जगतमां उत्कृष्ट मंगळ छे. मंगळ तेने कहेवाय के जेनाथी सुखनी प्राप्ति अने
वृद्धि थाय, संसारमां पुत्रजन्म, लग्न वगेरेने मंगळ प्रसंग कहे छे ते तो लौकिक छे, ते खरेखर मंगळ नथी.
मंगळ तो तेने कहेवाय के जेनाथी आत्माने सुखशांति थाय ने दुःख टळे.
बापु! अनंत अनंत काळथी तारो आत्मा संसारमां परिभ्रमण करे छे... अनंत अनंत शरीरो तें धारण
कर्या ने छोडया, पण आत्मा देहथी भिन्न शुं चीज छे तेनुं तें कदी भान कर्युं नथी. अहिंसारूप धर्म ते मंगळ छे.
पण अहिंसानुं स्वरूप शुं छे? तेनी पण जीवने खबर नथी. एक क्षणनी अहिंसा मुक्ति आपे. –ते कई
अहिंसा? परजीवने बचाववानो शुभ राग थाय ते खरेखर अहिंसा नथी. पण हुं ज्ञानानंदस्वरूप आत्मा छुं–
एवा भानपूर्वक तेमां लीन रहेतां रागादिनी उत्पत्ति ज न थाय ने शांतिनी उत्पत्ति थाय ते ज खरी अहिंसा छे;
आवी वीतरागी अहिंसा ते धर्म छे, अने ते मंगळ छे. आ प्रमाणे मंगळ कर्युं.
केटलीक शक्तिओ
[पृष्ठ १६नुं अनुसंधान]
छूटी जाय, देह छूटवाना प्रसंगे पण आवा स्वभावना लक्षे शांति हाजर रहे. शरीरमां हुं छुं ज नहीं, हुं तो मारा
असंख्य प्रदेशमां ज छुं–एवा भिन्नताना बोधवडे मृत्युप्रसंगे पण समाधि रहे छे.
चोवीसमी नियतप्रदेशत्व शक्तिनुं वर्णन अहीं पूरुं थयुं.