: पोष: २४८३ आत्मधर्म : ७ :
हतुं. र्कांलेजना प्रीन्सीपल–प्रोफेसर अने एकडीया भणतो बाळक ए बधा एक साथे एक सभामां बेसीने
गुरुदेवनुं प्रवचन सांभळता.
मागसर सुद चोथ सवारे विहार करीने पू. गुरुदेव मीयांगाम पधार्या... भक्तोए उमंगथी स्वागत कर्युं.
त्यारबाद श्री जिनेन्द्र देवना दर्शन कर्या. बपोरे शणगारेला मंडपमां गुरुदेवनुं प्रवचन थयुं.
पालेजमां प्रतिष्ठा महोत्सव
मीयांगामथी विहार करीने मागसर सुद पांचमे पू. गुरुदेव पालेजपुरीमां पधार्या. भक्तमंडळे
उल्लासपूर्वक गुरुदेवनुं स्वागत कर्युं. अहीं नवुं जिनमंदिर बंधायेल छे तेमां वेदी प्रतिष्ठानो महोत्सव हतो.
पालेजनुं रळियामणुं जिनमंदिर तथा अनंतनाथ–सीमंधरनाथ वगेरे भगवंतोनी मुद्रा नीहाळतां नीहाळतां
गुरुदेवना हृदयमां आनंदनी ऊर्मिओ जागती हती. पू. गुरुदेव अहीं जे दुकानमां बेसता हता ते दुकान तथा
ज्यां अफीणना केईसनो प्रसंग बनेलो ते स्थळ वगेरे भक्तोए जोयुं. जयां पूं गुरुदेव एकांतमां विचार–मंथन
करता ते ओरडी पण जोई. मागसर सुद सातमे पालेजनी हाटडीमां भक्तजनोए उमंगथी भक्ति करी...
चोपडामां गुरुदेवना हस्ताक्षर कराव्या. गुरुदेवे हसतां हसतां “कार करीने कह्युं के “आ भगवाननी वाणी छे.”
मागसर सुद ८थी वेदीप्रतिष्ठानी विधिनो प्रारंभ थयो. प्रतिष्ठामंडपमां जिनेन्द्रदेवनुं स्थापन अने
झंडारोपण थयुं अने पछी अढी द्वीप (वीस विहरमान जिनेन्द्रदेव) नुं पूजन विधान शरू थयुं. बपोरे पू.
गुरुदेवनुं प्रवचन थयुं हतुं. रात्रे जिनेन्द्र–भजन थयुं हतुं. बीजे दिवसे पण सीमंधरादि वीस विहरमान
भगवाननुं पूजन चाल्युं. दसमना रोज नांदीविधान, ईंद्रप्रतिष्ठा, यागमंडल विधान, जलयात्रा, तथा वेदिशुद्धि
वगेरे विधि थई हती. पू. बेनश्री–बेनजीना पवित्र हस्ते वेदीशुद्धिनी केटलीक महत्त्वनी क्रियाओ जोईने भक्तोने
आनंद थतो हतो. पू. गुरुदेवना प्रवचनमां दोढ हजार जेटला माणसो आव्या हता...ने गुरुदेवे सम्यग्दर्शननो
घणो सरस महिमा समजाव्यो हतो.
मागसर सुद ११–ते पालेजमां अनंतनाथ भगवाननी प्रतिष्ठानो मंगलदिन छे. “तमारां शा करीए
सन्मान...पधारो अनंतनाथ भगवान.” ईत्यादि भक्तिपूर्वक जिनेंद्र भगवंतोने जिनमंदिरमां पधराव्या...
चालीश हजारनुं नूतन जिनालय
सवानव वागतां पू. गुरुदेव पधार्यां... जिनेन्द्र–भगवंतोनी पासे तेमना नंदन पधार्या... मांगळिक
संभळावीने गुरुदेवे भगवाननी बेठक उपर मंगल स्वस्तिक कर्यो अने पछी भक्तोना महान जयजयकार वच्चे
हृदयना शुद्धभावे ने पावन हस्ते प्रभुजीने वेदी उपर बिराजमान कर्या... हृदयमां स्थापेला नाथने जिनमंदिरमां
पण स्थाप्यां. पछी सौ संतोए हीरामाणेक–रत्नोथी भगवानने वधाव्यां. अहींनुं जिनमंदिर लगभग ४०, ०००
रूा. ना खर्चे तैयार थयुं छे; तेमां नीचे मूळनायक श्री अनंतनाथ भगवान तथा शांतिनाथ भगवान अने
सीमंधर भगवान बिराजे छे, ने उपरना भागमां पार्श्वनाथ भगवान, अभिनंदन भगवान अने अमरनाथ
भगवान बिराजे छे. आ उपरांत बाजुना ज्ञानमंदिरमां श्री समयसारजी–जिनवाणी–मातानी स्थापना करवामां
आवी छे. प्रतिष्ठा बाद पू. गुरुदेवे घणा भावथी मांगळिक संभळाव्युं हतुं. शांतियज्ञ अने प्रवचन बाद भव्य
रथयात्रा नीकळी... रथयात्रा माटे खास हाथी आवेल हतो... गजराज उपर जिनराज अतिशय शोभता हता...
पालेजमां आ रथयात्रा अद्भुत हती... ने रात्रे भक्ति थई हती. पालेजमां प्रतिष्ठा–महोत्सव प्रसंगे त्यांना
भक्तजनो–शेठ कुंवरजीभाई, आणंदजीभाई वगेरेए घणो उत्साह बताव्यो हतो.
मागसर सुद १२–सवारमां पू. गुरुदेव जिनमंदिरे दर्शन करवा पधार्यां अने अनंतनाथ भगवाननी
स्तुति करी. अभिनंदनस्वामीने अभिनंद्या... ने जयजयकारपूर्वक पालेजथी विहार करीने भरूच पधार्यां. रात्रे
चर्चामां सम्यग्दर्शन अने जातिस्मरण ज्ञान वगेरे बाबत सुंदर तत्त्वचर्चा चाली हती.
पू. गुरुदेव जैन धर्मनी प्रभावना करता करता विचरी रह्या छे. पू. गुरुदेव ज्यां ज्यां पधारे छे त्यां त्यां
आत्मा अने परमात्मानी चर्चाना नाद गूंजी ऊठे छे; गुरुदेवना आगमननी आगाही: थतां ज आखी नगरीनुं
वातावरण अध्यात्ममय बनी जाय छे, ए तेओश्रीनो अजोड प्रभाव छे. सेंकडो ने हजारो लोको जिज्ञासापूर्वक
गुरुदेवनो पावन संदेश सांभळे छे.