Atmadharma magazine - Ank 159
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957)
(Devanagari transliteration).

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: ८ : आत्मधर्म : पोष: २४८३
पू. गुरुदेवे पहेली ज वार अर्ध्य चडाव्यो
मागसर सुद १३ सवारमां पार्श्वप्रभुना दर्शन करीने पू. गुरुदेव भरूचथी अंकलेश्वर तरफ पधार्या... आ
भगसागरने सम्यक्त्वरूपी सेतु द्वारा ओळंगी जईए. एवी भावना भावतां भावतां गुरुदेवनी साथे साथे
नर्मदा नदीनो १ माईल लांबो पूल ओळगी गया... हवे अमे पुष्पदंत–भूतबलि जेवा महान् श्रुतधर संतोनी
पावनभूमिमां जता हता. जे भूमिमां ए महान् संतो पूर्वे विचर्या ते भूमिमां वर्तमान संतोनी साथे विचरतां
बहु आनंद थतो हतो.
अंकलेश्वर ७ाा वागे पहोंच्या, त्यांथी सीधा पांच माईल सजोद गामे पू. गुरुदेव साथे गया. अहीं
बिराजमान श्री शीतलनाथ भगवान अद्भुत छे, जाणे चोथा काळना होय एवा प्रतिमाजी छे ने सन्मुख
बेसतां ज आत्मध्याननी प्रेरणा जागे छे. गुरुदेवे अने भक्तजनोए घणा ज भावथी प्रभुजीने सर्वांगे
निहाळ्‌या... स्तुति करी... अने अर्ध्य चडाव्यो... अहीं पू. गुरुदेवे श्री जिनेन्द्रदेवने अर्ध्य चडाववानी पहेली ज
वार शरूआत करी, गुरुदेव भावपूर्वक ज्यारे भगवानने अर्ध्य चडावता हता त्यारनुं द्रश्य घणुं भक्तिभर्युं हतुं
ने ए द्रश्य देखीने भक्तोने घणो हर्ष थतो हतो.
श्रुतधाम अंकलेश्वर
सजोदमां श्री शीतलनाथ भगवानना दर्शन करीने पू. गुरुदेव श्रुतधाम अंकलेश्वरमां पधार्या... भक्तोए
प्रेमथी स्वागत कर्युं. बे हजार वर्ष पहेलांं अहीं श्रुतनो मोटो उत्सव ऊजवायो हतो... गाममां लगभग
२०,०००नी वस्ती छे, दि. जैनोना २० घर छे; चार पुराणा जिनमंदिरो छे, तेमां अनेक पुराणा जिनप्रतिमा
बिराजमान छे. अनेक स्थळे मुनिओना प्रतिमा पण छे. सांजे श्रुतधर संतोनी अने जिनवाणीमातानी अद्भुत
भक्ति पू. बेनश्रीबेने करावी हती. आ अंकलेश्वरनी यात्रानुं विशेष वर्णन हवे पछी आपशुं.
सुरतनुं शानदार स्वागत
मागसर सुद १४–अंकलेश्वरथी पू. गुरुदेव कीम गामे पधार्या; ने पूर्णिमाना रोज सुरत पधार्या. पू.
गुरुदेवने सत्कारवा सुरत थनगनी रह्युं हतुं... ने सुरतनी सुरत ज जाणे बदलाई गई हती. गुरुदेव पधारतां
सुरतनी जनताए उमंगभेर स्वागत कर्युं. चंदावाडीमां ऊतारो हतो... अनेक जिन–मंदिरो छे तेना दर्शन कर्या.
बपोरे बीसन्ट हालमां प्रवचन हतुं ने हजारोनी संख्यामां जनता श्रवण करवा आवी हती. रात्रिचर्चामां पण
मोटी संख्यामां जिज्ञासुओ लाभ लेता हता.
मागसर वद एकमे, सुरतथी ३ माईल दूर कतार गामे पू. गुरुदेव अने सौ भक्तजनो आव्या, त्यां श्री
कुंदकुंदस्वामी, धरसेन–पुष्पदंत–भूतबलिस्वामी, जंबुस्वामी, विद्यानंदीस्वामी, रविसेनस्वामी, जयसेनस्वामी,
योगीन्दुस्वामी, जिनसेनस्वामी, अकलंकस्वामी वगेरे अनेक संतोना पुनित चरणकमळ छे. त्यां भक्तिथी दर्शन
कर्या. अहींनुं वातावरण उपशांत हतुं... त्यां दर्शन–भक्ति करीने सौ पाछा सुरत आव्या. प्रवचन बाद
जिनमंदिरमां भक्ति थई हती. अहीं चंदावाडीना जिनमंदिरमां एक नानकडा सुवर्ण–प्रतिमा हता. रात्रे चर्चामां
पू. गुरुदेवे आत्माना शांतरसनुं (–समकितीना आनंदनुं) अद्भुत वर्णन कर्युं हतुं. पू. गुरुदेव सुरत पधारतां
बे दिवसमां घणी प्रभावना थई, ने मूलचंद किसनदास कापडिया, वगेरे दि. समाजना सौ जिज्ञासुओ घणा
प्रसन्न थया. ‘जैनमित्र’मां आ प्रसंगनी भावभरी नोंध प्रगट थई हती.
मागसर वद बीजे, सवारमां जिनेन्द्रदेवना दर्शन करीने पू. गुरुदेव सुरतथी पलसाणा पधार्या; त्रीजने
दिवसे नवसारी पधार्या; ने चोथना रोज चीखली गामे पधार्या. चीखलीमां लोकोए प्रेमथी स्वागत कर्युं... बपोरे
थीएटरमां पू. गुरुदेवनुं प्रवचन हतुं. आखुं थीएटर विद्यार्थी भाई–बहेनोथी चीक्कार भराई गयुं हतुं. प्रवचन
बाद अहींना हेड मास्तरे पू. गुरुदेव प्रत्ये घणो प्रमोद बताव्यो हतो.
पांचमना रोज चीखलीथी वलसाड आव्या... गीतासदनमां सुंदर प्रवचन थयुं... सांजे एक गृहचैत्यमां
पार्श्वनाथ प्रभुना दर्शन करवा गुरुदेव पधार्या हता. रात्रे चर्चामां पुण्य अने पुरुषार्थ बाबत सरस चर्चा चाली हती.
आदिवासीनो प्रदेश
छठ्ठना रोज वलसाडथी वापी गामे आव्या... ने बीजे दिवसे (सातम–आठम भेगा) तलासरी गामे
आव्या... हवेना आ गामो ते आदिवासी लोकोनो