Atmadharma magazine - Ank 160
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957).

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: માહ : ૨૪૮૩ આત્મધર્મ : ૧૧ :
अभनन्दन पत्र
महान् आध्यात्मिक सन्त
श्री कानजी स्वामी की सेवा में सम्मान प्रस्तुत
सत्पुरुष!
जैन पुरातत्त्व से सम्पन्न, देवसेन, शान्तिसेन, कुलभूषण, आदि दिगम्बर मुनियों की
साधनास्थली, जैन रक्षक विजयसिंह कछवाडा की राजधानी, शस्यश्यामला उपत्य का ग्वालियर की
पुण्यभूमि में स्थित जैन छात्रावास अपने आत्मार्थी श्री कानजी स्वामी का स्वागत करता हुआ आत्म
विभोर हो रहा है।
भारतीय संस्कृति में अतिथि की देवसंज्ञा मानी गई है, फिर आप जैसे अतिथि की, जो महत्
पुरुषों के योग्य समस्त मानवोचित गुणों से अलंकृत हैं, हम किस प्रकार अभ्यर्थना करें, समझ में नहीं
आता। आपके ज्ञान–चक्षुओं को खोलनेवाला अमृत सरोवर श्री ‘समयसार’ से आपको अत्यधिक प्रेम है।
परम उपकारी, समयसार मर्मज्ञ आप जैन जाति के जीवनदाता हैं। आपकी दिव्यवाणी के उत्कृष्ट प्रवाह
द्वारा जैन जाति में समयसार के अभ्यास की रुचि जागृत हुई। आपकी अध्यात्म सरिता की धारा में
डुबकी लगाते ही हृदय में श्री समयसार को पढ़ने की तीव्र अभिलाषा उत्पन्न होती है। समयसार के
प्रणेता, आपके प्रवचन जैन साहित्य की अमर निधि हैं।
आध्यात्मिक पथ–प्रदर्शन!
आपकी ज्योतिर्मय आत्मा से न जाने कितने अज्ञानान्धकार में भटकते हुये प्राणियों को ज्ञान का
प्रकाश मिला। आपकी छत्रछाया में ही आज के अनेकों जैन लेखकों को ज्ञान, उत्साह, और प्रेरणा
मिली। आपके सान्निध्य में रहकर अनेक विद्वानोंने कई आध्यात्मिक ग्रन्थों की रचना की है, अनुवाद
किये हैं और सम्पादन किया है। इस युग के महान् आध्यात्मिक सन्त आपकी वाणो संसारी प्राणियों के
लिये अमृत वाणी है।
महात्मा।
आप जैन धर्म के उन मक्तों में से हैं जिन्होंने अपने जीवन और यौवन के सुख स्वप्नो और
भौतिक आकर्षणों का परित्याग कर मानवमात्र की मोक्ष साधना में ‘महाभिनिष्क्रमण’ किया है।
भारत के महान् आध्यात्मिक सन्तो में आपका विशिष्ट स्थान है। आप बालब्रह्मचारी हैं और अपनी
२४ वर्ष की उम्रसे ही संसार से विरक्त रहकर शास्त्राभ्यास और सत्यान्वेषण में लगे रहे हैं।
आपकी द्रढ़ मानता है कि ‘जैन धर्म विश्व धर्म है’ आन्तरिक तथा बाह्य दिगम्बरता के विना कोई
जीव मोक्ष नहीं पा सकता।