Atmadharma magazine - Ank 160
(Year 14 - Vir Nirvana Samvat 2483, A.D. 1957).

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: ૧૨ : આત્મધર્મ ૨૪૮૩ : માહ :
आपकी प्रवचन शैली अनुपम और प्रभावक होने से श्रोतागण मन्त्रमुग्ध हो जाते हैं। आपकी वाणी
में संसार दुख से सन्तप्त प्राणियों को दुख से छूटने व शाश्वत सुख का माग दिखलाई पड़ता है। आप
निश्चय व्यवहार, उपादान निमित्त, द्रव्य का स्वतन्त्र परिणमन आदि का सुन्दर विवेचन करते है और
श्रोताओं को जड़ कर्म एवं मोह, राग आदि से पृथक् नित्य, शुद्ध, चैतन्यस्वरूप आत्मा का स्वाभाविक
चित्र प्रस्तुत कर आत्मदर्शन की ओर प्रेरणा प्रदान करते है।
श्रीमान्
हमें आशीर्वाद दें कि हम छात्रावास के छात्र अपना सफल विद्यार्थी जीवन समाप्त कर जैन धर्म
के सच्चे भक्त बनें। हम आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि आप भविष्य में भी इस छात्रावास के प्रति
कृपाभाव बनायें रखेंगे। आपने इस छात्रावास के छात्रों को अपना स्वागत करने का जो अवसर दिया
हैं, उसके लिये हम अत्यन्त आभारी हैं। हम भगवान महावीर से आपके स्वास्थ्य तथा दीर्धायु की
कामना करते हैं।
श्रद्धावनत
छात्रावास के छात्र (ग्वालीयर–लश्कर)
• • •
। श्रीवीतरागाय नमः।
आध्यात्मिक संत आत्मार्थी सत्पुरुष श्री कानजी स्वामी की सेवा में सादर समर्पित
सम्मन पत्र
सम्माननीय!
हमारा सौभाग्य हैं कि हम जिस महान् व्यक्तित्व के पुण्य सम्पर्क की वर्षो से प्रतीक्षा कर रहे थे
हमारी वह मनोकामना आज सफल हो गई। वर्तमान वीस तीर्थंकर्रो की निर्वाणभूमि तीर्थराज श्री
सम्मेदशिखर की वन्दना करने के पवित्र संकल्प को लेकर आप सौराष्ट से ५०० धार्मिक बंधुओं के साथ
मार्ग में आनेवाले सिद्धक्षेत्रों की वन्दना करते हुए यहां पधारे हैं। दो दिन से हमें आप अपनी
लोककल्याणकारिणी अमृतमयी वाणी का रसास्वादन करा रहे हैं। आज इस मंगलवेला में मध्यप्रदेश के
आत्मज्ञानपिपासु नागरिकों के समक्ष आप के प्रति बहुमान प्रकट करते हुए हम अपने को गौरवान्वित
मानते हैं।
आत्मार्थिन्!
अनंत दुःखमय संसार की स्थिति का अवलोकन कर आपने उच्चतम तत्त्वज्ञान का अध्ययन एवं
मनन किया और उसकी महत्ता से अन्य मुमुक्षु जनों को अवगत कराकर उनका पथ प्रदर्शन किया।
इस विनाशकारी अणु युग के भौतिक वातावरण के विरुद्ध आध्यात्मिकता का प्रसार कर आपने सहस्रों
दिग्भ्रांत मानवों का जीवन ही परिवर्तित कर दिया है! आपकी