परोपकारपरायणता का मूर्तिमान रूप सोनगढ़
आत्मार्थी सत्पुरुष का समागम पाकर आज हम अतिशय गौरव का अनुभव कर रहे हैं।
सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र तीनों ही आवश्यक है। साधुत्व एवं संतत्त्व की साधना में रत्नत्रय प्रमुख
साधन है। आपने सांसारिक वैभव और इन्द्रिय सुखों को तिलांजलि देकर आजन्म ब्रह्मचारी रहते हुए
श्रीमद् कुन्दकुन्दस्वामी प्रभृति आचार्यो द्वारा प्रणीत विश्वभारती के अनुपमरत्न समयसार, प्रवचनसार
आदि महान ग्रन्थों का गंभीर अध्ययन कर अन्तर्द्रष्टि प्राप्त की हैं। अनेक संकटो एवं बाधक परिस्थितियों
को आह्वान करते हुए शांति और सहिष्णुतापूर्वक अपने निश्चित ध्येय एवं लक्ष्य की ओर अग्रसर बने हुए
हैं। आपकी श्रद्धा, साहस और द्रढ़ता की जितनी सराहना की जाय, थोड़ी है।
का स्वाभाविक चित्र प्रस्तुत कर श्रोताओं को आत्मदर्शन की ओर प्रैरणा प्रदान करती हैं। अपनी
उद्बोधक वाणीद्वारा आप भौतिक सुखों की लालसा में निमग्न जनता को आत्मज्ञान की ओर झुकने के
लिये सदैव उपदेश करते रहते हैं। आपके द्वारा के गई भारतीय संस्कृति एवं आत्मधर्म की महान् सेवा
भारत के धार्मिक इतिहास में चिरस्मरणीय रहेगी।
जिनेन्द्र भगवान श्री सीमंधर स्वामी से प्रार्थना करते है कि आपका सदुद्रेश्य सफल हो और आप चिरायु
रह कर विश्व हितकारी जिनशासन की पताका फहराते हैं।