: ૧૪ : આત્મધર્મ ૨૪૮૩ : માહ :
। श्रीवीतरागाय नमः।
आध्यात्मिक संत आत्मार्थी सत्पुरुष श्री कानजी स्वामी
की सेवा में सादर समर्पित
अभनन्दन पत्र
सत्पुरुष
जैन पुरातत्त्व से सम्पन्न, शान्तिकेन्द्र, कुलभूषण आदि दिगम्बर मुनियों की साधनास्थली,
जैनरक्षक विजयसिंह कछवाहा की राजधानी, प्राचीन जैन संस्कृति के केन्द्र ग्वालियर के इस
ऐतिहासिक नगर में अध्यात्मयोगी श्री कानजी स्वामी का स्वागत करते हुये हमें परम हर्ष हो रहा है।
संतप्रवर!
आपका यह संघ ५०० धार्मिक बन्धुओं के साथ सोनगढ़ (सौराष्ट्र) से श्री सम्मेदशिखरजी को
वन्दनार्थ जाते हुए मार्ग में इस नगर में आया है इससे हमें हार्दिक आनन्द हो रहा है। शान्तिरस की
जो विमलधारा सौराष्ट्र से प्रारम्भ होकर अनेक नगरों व उपनगरों में होती हुई अविरुद्ध प्रवाह से बढ़ती
हुई इस नगर में आई है। उससे हमें शान्ति और आत्मज्ञान का जो शुभ संदेश मिला है उसने हमारे
हृदय की ज्योति को जगा दिया है।
अध्यात्म योगिन्!
आपने सांसारिक वैभव व इन्द्रिय सुखों का परिहार करके बालब्रह्मचारी रहकर आध्यात्मिक
ग्रन्थों के अध्ययन से जो आत्मज्ञान प्राप्त किया है वह अद्वितीय हैं। आपने श्रीमद् कुन्दकुन्दस्वामी द्वारा
रचित समयसार का अध्ययन करके जो अन्तर्द्रष्टि प्राप्त की है और डसके द्वारा अपने सदुपदेशों एवं
आध्यात्मिक प्रवचनों से मानव कल्याण का प्रशस्त मार्ग दर्शाया है उससे संसार में भटकते हुये प्राणियों
के हृदय में आशा का नया संचार जाग्रत हो गया है। आपके द्वारा की गई भारतीय संस्कृति एवं
आत्मधर्म की महान् सेवा भारत के धार्मिक इतिहास में चिरस्थाई रहेगी।
इस पुनीत अवसर पर बृहत्तर ग्वालियर का दिगम्बर जैन समाज हृदय से अभिनन्दन करता
हुवा श्री १००८ भगवान जिनेन्द्र देव से प्रार्थना करता हैं कि आप चिरायु हों एवं आपका आत्मज्ञान का
शुभ संदेश संसार के कोने कोने में सूर्य की प्रखर किरणों की भांति फैले, यही हमारी शुभ कामना हैं।
लश्कर विनीत
दिनांक ९ फरवरी १९५७ दिगम्बर जैन समाज
बृहत्तर ग्वालियर म. प्र.