सफल हो गई। तीर्थराज श्री सम्मेदशिखर की वन्दना करने के लिए सोनगढ़ से ५००
धार्मिक बन्धुओं के साथ मार्ग में अनेक सिद्धक्षेत्रों की वन्दना करते हुए आप यहां पधारे है।
आपने अपनी अमृतमयी वाणी द्वारा अनेक आत्मज्ञान–पिपासुओं की प्यास को बुझाया है।
आप का आज बिहार प्रान्त की इस आरानगरी में आत्मज्ञान–पिपासुओं के समक्ष स्वागत
करतें हुए हमें परम हर्ष हो रहा है।
और संघर्षवादी युग में स्वार्थ और वैमनस्य तथा संघर्षरूपी नदी में डूबते हुए अनेकोंं
दिगभ्रान्त मानवों का जीवन आपने मानवता के सच्चे साँचे में ढाल दिया है। आप में
अनेक अनुपम गुण विद्यमान हैं, जिनका मूर्तिमान रूप सोनगढ़ है जहाँ जैनधर्म की
उज्जवल पताका फहरा रही है।
का सच्चा साधन रत्नत्रय है। आपने सांसारिक वैभव और ऐन्द्रियिक सुखों को तिलाञ्जलि
देकर आजन्मब्रह्मचारी रहकर श्रीमद्कुन्दकुन्द स्वामी द्वारा रचित समयसार आदि ग्रन्थोंं
के अध्ययन से अन्तर्द्रष्टि प्राप्त कर मानव मात्र के कल्याण का प्रशस्त मार्ग दर्शाया है। आप
की इस कल्याणकारिणी अन्तर्मुखी प्रवृत्ति की जितनी प्रशंसा की जाय, थोड़ी है।